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बेटी जब बहू बने !!
हमारी बिरादरी की यह अटल मान्यता है कि कैमरा कभी भी झूठ नहीं बोलता। यदि कहीं आवाज की रिकॉर्डिंग हुयी तो कदापि नहीं।
हमारी बिरादरी की यह अटल मान्यता है कि कैमरा कभी भी झूठ नहीं बोलता। यदि कहीं आवाज की रिकॉर्डिंग हुयी तो कदापि नहीं। बल्कि पुख्ता बन जाती है। फिर भी दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (एक टीवी एंकर ने उनके कुलनाम के दो अक्षरों के मध्य ''व'' जोड़ दिया था) एक चौथायी हो गये।
मशहूर टीवी मसखरे जो पार्टी के मुखिया हैं ने अपनी व्याख्या से बाकी कसर निकाल दी। मुख्यमंत्री ने हिन्दीभाषी श्रमिकों को ''भैइये'' कहा था। प्रदेश से उन सब को हकालने का आह्वान भी किया था। सब स्पष्ट है। यूं पश्चिम भारत में यूपी—बिहार वालों को वर्षों से ''भईया'' कहकर पुकारते हैं। ममता बनर्जी उन्हें सीधे ''यूपी'' के गुण्डे बोलकर उच्चारित करतीं हैं। बाकी को आपनी बंगाली कहकर पुकारती हैं।
बीवी-बहन-बेटी और बहू
मगर काबिले गौर बात तो कल (17 फरवरी 2002) प्रियंका वाड्रा ने कह दी। श्रोताओं को मुग्ध करने हेतु उन्होंने प्रगट कर दिया कि वे पंजाब की पतोहू हैं। आज तक तो यह रिश्ता अंजाना था। वे यूरेशियन है, मां की ओर से रोमन-हिन्दवी हैं। पारसी दादा के रक्त समूह के कारण सनातनी नहीं रहीं। मजहब ईसाई है।
राजनेताओं की दबंगई तो देखी सुनी जाती रही, मसलन बीवी-बहन-बेटी और बहू। अथवा भाई-भतीजा, बेटा और साला। किन्तु बहू या दामाद बस यदाकदा ही दिखते अथवा याद आते हैं। शायद इसलिए भी कि वे पराये परिवार में आते हैं। फिर भी विगत लोकसभा के आम निर्वाचन में एक दामाद का रातों रात नामी गिरामी हो जाना करामाती था।
कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर हमला बोलना हो तो वह दामाद अत्यंत सुलभ मुद्दा है। भले ही किसी मेनिफेस्टों में उल्लिखित न भी हुआ हो। वह बीवी के आवास का वासी है अतः मान्य तौर पर घरजमाई नहीं है। फिर भी राष्ट्र की अर्थनीति पर प्रभाव डालता है, खासकर किसानों से भूमि अधिग्रहण वाले मामले में। सृष्टि के वक्त से ही ऐसा हो रहा है।
सौरमंडल के नौ ग्रह तो मनुष्य के भाग्य को निर्दिष्ट करते आये है। मगर दामाद को दसवां ग्रह कहा गया है। ''कन्या राषि स्थितो नित्यः, जामाता दशमो ग्रहः।'' ससुराल में उसे पाहुना पुकारा जाता है। हालांकि मछली की भांति यह मेहमान भी तीन दिन बाद गंधाने लगता है। बशर्तें राजयोग की धनी सास की नासिका का रंध्र अवरूद्ध न हो, अर्थात जुकाम न हो।
सम्यक संदर्भ और परम्परा की दृष्टि से प्रियंका से पहले जन्मी नेहरू वंश की अन्य बेटियों का भी उल्लेख हो जाय। मोतीलाल नेहरू की बड़ी बेटी विजयलक्ष्मी ख्यात राष्ट्रनायिका थीं। किशोरावस्था में अपने पिता के अंग्रेजी दैनिक ''इन्डिपेन्डेन्ट'' के सम्पादक सैय्यद होसैन से प्रेम विवाह करना चाहती थीं।
किन्तु मोतीलाल नेहरू की विनती पर पं. मदन मोहन मालवीय तथा महात्मा गांधी ने हस्तक्षेप किया और सौराष्ट्र के ब्राह्मण बैरिस्टर रंजीत सीताराम पण्डित से पाणिग्रहण कराया गया। रंजीत पंडित अत्यंत सात्विक पुरूष थें और सैय्यद होसैन के प्रणय प्रसंग को जानकर भी मोतीलाल नेहरू के जामाता बनना उन्होंने स्वीकारा।
तत्पश्चात आई इंदिरा—नेहरू। इनसे प्रेम विवाह के बाद फिरोज गांधी ''नेशनल हेरल्ड'' और ''इंडियन एक्सप्रेस'' से जुड़े। वे रायबरेली से प्रथम सांसद (1952) थें। दिल्ली में ससुराल के सरकारी आवास (तीनमूर्ति भवन) में रहने के बजाय, सांसद के छोटे आवास में रहें।
फिरोज ने शायद स्पेनी कहावत सुनी थी कि शेर की पूंछ बनने के बजाय मूशक का सिर बनकर रहो। हालांकि राजीव और संजय के साथ पत्नी इन्दिरा अपने पिता के घर ही रहती थी। इन्दिरा गांधी द्वारा अंतर्धार्मिक विवाह के बाद और आगे बढ़कर ज्येष्ठ पुत्र राजीव ने इतालवी ईसाई सोनिया से शादी कर अपना। रक्त समूह बदल डाला था।
आज का नामीगिरामी दामाद है प्रियंका—पति राबर्ट वाड्रा जिसने सबसे लोकप्रिय और आकर्षक कांग्रेसी नेता प्रियंका गांधी का वरण किया। एक बार राबर्ट ने दावा किया था कि लोकसभा की 543 निर्वाचन क्षेत्रों से वे कहीं से भी लड़े तो विजयी होंगे। पर प्रियंका ने राबर्ट को राजनीति से परे ही रखा है। फिर भी बेचारे राबर्ट घुन की भांति अपने ससुरालवाले गेहूँ के साथ चुनाव में पिसते नजर आ रहें हैं।
राबर्ट वाड्रा विवाहोपरांत नया धंधा कर रहा है। जमीन का सट्टा। हरियाणा तथा डीएलएफ वाले पुष्टि कर देंगे। जब पूरा कुनबा गत लोकसभा निर्वाचन में अमेठी आया था, राहुल गांधी के नामांकन के दिन। उनकी भाजपाई हरीफ स्मृति मलहोत्रा—जूबीन ईरानी ने अमेठी के खेतिहरों को सावधान कर दिया था कि अपनी जमीन को बचायें। ''राबर्ट वाड्रा आ रहा है।'' उन पर अनगिनत मुकदमें भी चल रहे हैं। अधिकतर जमीन वाले। सस्ता खरीदना, महंगा बेचना। अब राबर्ट यूपी, न कि पंजाब के, वासी हैं। तो प्रियंका पंचनद प्रदेश के प्रति कैसे नाता रख सकती हैं ?
इसी भांति जून 1975 में गुजरात विधानसभा के मध्यावर्ती निर्वाचन में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी वोट मांगने आयीं थीं। बड़ौदा की जनसभा में वे बोलीं, ''मैं गुजरात भी बहूं हूं।'' उनके पति रहे फिरोज जहागीर घाण्डी (विकृत कर दिया गया : ''गांधी'') अग्निपूजक जोरास्ट्रियन (फारस से आये पारसी) थे। इस्लाम से पीड़ित होकर वे सब ईरान से दक्षिण गुजरात के बलसाड जिले के पारडी तालुका के निकट उदवाडा कस्बे में आठवीं सदी में बसे थे।
हालांकि फिरोज तो बाद में प्रयागराज में बस गये। उनकी मजार वहीं है। पति के निधन से पन्द्रह सालों बाद इंदिरा गांधी यूपी तथा दिल्ली में ही रहीं थीं। गुजरात के चुनाव (1975) के वक्त यह कांग्रेस अध्यक्ष को गुजरात की पुत्रवधू कहलाना अत्यधिक मुफीद अंदाज लगा। उसी दौर में सोशलिस्ट पुरोधा मधु लिमये भी चुनाव अभियान हेतु बड़ौदा आयें। जनसभा में वे बोले : ''अगर कही रोम में चुनाव हो तो इंदिरा गांधी स्वयं को इटली की सांस कहेंगी।''
सच्चाई यह है कि पारसी जन्मना होता है, अपरिवर्तनशील। अत: इंदिरा गांधी न पारसी है, , न कश्मीरी ब्राह्मणी रहीं। उन्होंने चतुरायी की । ''घाण्डी'' कुलनाम में वर्तनी बदल कर ''गांधी'' बन गयी। बापू तब जीवित थे। यह भारत पर धूर्ततम राजनीतिक खेल था। इसीलिये अमेरिकी पत्रिकायें ''टाइम'' तथा ''न्यूजवीक'' हमेशा (कोष्टक में) स्पष्ट कर देते थे कि इंदिरा गांधी का महात्मा गांधी से कोई भी नाता—रिश्ता नहीं है।'' फिर भी गांववाले वोटरों में मतिभ्रम तो बना ही रहता था।
अब अगर प्रियंका वधू बन भी जाये तो बेहतर होता कि वह ''कुड़ी पंजाबन'' बनने का यत्न करती। मगर बेड़ागर्क हो इन गेरुवाधारियों का। प्रियंका का खेल ही बिगाड़ दिया। अधर में लटका दिया। वह बेटी बन न पायी, अब बहू भी नहीं है।