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बहुगुणा जी की पुण्यतिथि: हिमालय का चन्दन हेमवती नन्दन

1974 में गोमती तट पर इस्लामी अध्ययन केन्द्र नदवा में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित हो रहा था। साउदी अरब के शेख भी आये थे। उनका परिचय उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा से कराया गया।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Deepak Kumar
Published on: 17 March 2022 3:01 PM GMT
Hemvati Nandan Bahuguna death anniversary
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बहुगुणा जी की पुण्यतिथि।

Hemvati Nandan Bahuguna Death Anniversary: उन दिनों (1974) गोमती तट पर इस्लामी अध्ययन केन्द्र नदवा (Islamic Studies Center Nadwa) में अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित हो रहा था। साउदी अरब के शेख भी आये थे। उनका परिचय उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा (UP Congress Chief Minister Hemvati Nandan Bahuguna) से कराया गया। शेख ने उन पर तुरन्त टिप्पणी की: "वही वजीरे आला जिसने यहां इतना बेहतरीन इन्तजाम किया?" बहुगुणाजी ने आभार व्यक्त किया और एक अनुरोध किया: "कृपया वजीरे आजम से इस बात को मत कहियेगा।" दशकों के अनुभव के आधार पर उन्होंने यह कहा था। इन्दिरा गांधी तब प्रधानमंत्री थीं। बहुगुणाजी ने परिहास भी किया था। इन्दिराजी पहले पौधा बोतीं हैं। फिर कुछ वक्त के बाद उखाड़ कर परखती हैं कि कहीं जड़ जम तो नहीं गई! यही नियम वे नामित मुख्यमंत्रियों पर लगाती थीं। कुछ ही दिनों बाद बहुगुणाजी का कार्यकाल कट गया। इस घटना का भी ऐतिहासिक विवरण है। उनको मुख्यमंत्री पद से हटाने उनके कांग्रेसियों ने अभियान छेड़ दिया था। अगुवाई गोरखपुर के सांसद नरसिंह नारायण पाण्डेय कर रहे थे।

कई कांग्रेसी उन्हें नगद नारायण पाण्डेय (Narayan Pandey), कुछ गांजा पाण्डे भी कहते थे। वे कांग्रेस चुनाव प्रचार हेतु बड़ौदा (मई 1975) आये थे। मैं वहां "टाइम आफॅ इण्डिया" का संवाददाता था। मेरा सवाल था कि वे बहुगुणाजी के विरूद्ध क्यों खड़े हैं? पाण्डेय का तर्क था: "यह मुख्यमंत्री अपनी जनसभाओं में प्रधानमंत्री की स्टाइल में बुलन्द बल्लियां लगवाता है, ऊंचा मंच बनवाता है।" फिलहाल नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) का विकल्प लेकर कांग्रेसी भी बदलाव में जुट गये। स्पष्ट था कि इन्दिरा गांधी को अपना सिंहासन डोलता नजर आया क्योंकि आन्ध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री जलगम वेंगल राव के अलावा सारे मुख्यमंत्रियों में बहुगुणाजी निर्विवाद तौर पर एक गगनभेदी रहनुमा हो गये थे। उत्तर प्रदेश में बिजली का उत्पादन जरूरत से कहीं ज्यादा हुआ था। पहली बार ही ऐसा हुआ था। उनके प्रशासनिक नैपुण्य और संगठनात्मक क्षमता का लोहा सभी प्रदेश के लोग मानते थे। डाह और कुढ़न में कांग्रेसी लाजवाब होते हैं। बस प्रधान मंत्री के कान भरने शुरू हो गये।

कपूर से बहुगुणा जी ने ये कहा

उन्हीं दिनों बहुगुणा जी दिल्ली गये थे। इन्दिरा गांधी ने अपने चाकर यशपाल कपूर को भेजा कि मुख्यमंत्री का त्यागपत्र ले आये। कपूर से बहुगुणा जी ने कहा कि लखनऊ से भिजवा देंगे। पर इन्दिरा गांधी ने कपूर को दुबारा भेजा। तब आहत भाव से बहुगुणा जी इन्दिरा गांधी से मिलने आये और वादा किया कि अमौसी वायुयानस्थल से वे सीधे राजभवन जायेंगे और गवर्नर को त्यागपत्र थमा देंगे। नारीसुलभ आनाकानी को देखकर बहुगुणाजी बोलेः "आप चाहती हैं कि इतिहास दर्ज करे कि महाबली प्रधानमंत्री ने एक अदना मुख्य मंत्री से अपने आवास पर ही इस्तीफा लिखवा लिया?" इन्दिरा गांधी के मर्म पर यह चोट थी। बहुगुणा जी को मोहलत मिल गई। मगर नियति ने बदला लिया। साल भर बाद लखनऊ से बहुगुणा जी लोक सभा के लिये (मार्च 1977) अपार बहुमत जीते। बस सत्तर किलोमीटर दूर राय बरेली में इन्दिरा गांधी हार गई। इतिहास रच गया।

फिर दो और दिलचस्प घटनायें हुई। जनता पार्टी सरकार टूटने पर इंन्दिरा गांधी (Indra Gandhi) ने अपने दोनों पुत्रों को बहुगुणा जी को वापस कांग्रेस में लाने के लिये भेजा। दोनों भांजे रूठे मामा को अपने झांसे में ले आये। बहुगुणा जी अपनी सहज प्रवृत्ति के कारण आग्रह टाल नहीं पाये। पार्टी का नवसृजित प्रधान सचिव का पद मिला। नाममात्र का था। शेर बूढ़ा हो जाय पर दहाड़ तो मार सकता है। बहुगुणा जी पौड़ी गढवाल से लोकसभा उपचुनाव के प्रत्याशी थें। उसी समय पायलटी छोड़कर राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) भी अमेठी के उपचुनाव में प्रत्याशी बने। शरद यादव ने टक्कर ली।

प्रधानमंत्री अपने इकलौते जीवित पुत्र के लिये अभियान करने अमेठी आई। वापसी पर अमौसी हवाई अड्ड़े पर संवाददाता साथियों के साथ मैं भी था। अमौसी से हेलिकाप्टर में आई फिर दिल्ली के लिये वायुसेना के जहाज में सवार होने के ठीक पहले दस मिनट का वक्त हमें मिला। साथियों ने मेरा आग्रह मानकर केवल पुत्र राजीव गांधी की विजय की बात की। मैं ने पूछा, "इन्दिरा जी, अगर गढ़वाल से बहुगुणा जी विजयी हुये तो?" वे ठिठकी, तिलमिलाईं, फिर रोष में बोली, "क्या होगा? लोकसभा में एक और बाधक आ जायेगा। व्यवधान करेगा। और क्या करेगा?" हमें सबको बढ़िया खबर तो मिल गई। पर ऐसा हुआ नहीं। मुख्य मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे। उपचुनाव ही निरस्त कर दिया गया। मगर बरेली कमिश्नरी के सूत्रों ने बताया कि बहुगुणा जी को भारी संख्या में मत मिलें थे।

इलाहाबाद में बहुगुणा जी दैनिक नेशनल हेरल्ड से जुड़े

बहुगुणा जी से हमारे संगठन (इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स) से काफी आत्मीय रिश्ते रहे। कारण भी था। इलाहाबाद में बहुगुणा जी दैनिक नेशनल हेरल्ड से जुड़े रहे। संपादक मेरे पिता स्व. श्री. के रामा राव थे। बहुगुणाजी से प्रथम भेंट मेंरी मुम्बई में 1964 में कांग्रेसी अधिवेशन में हुई थी। जवाहरलाल नेहरू के जीवन का यह अन्तिम था, उनके निधन के कुछ माह पूर्व। तब टाइम्स ऑफ इंडिया का संवाददाता होने के नाते नये प्रदेश हरियाणा पर मैं एक शोधवाली रपट तैयार कर रहा था। अविभाजित पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं से साक्षात्कार किया । तब यूपी कांग्रेस के एक महामंत्री थे बहुगुणा जी और दूसरे थे बाबू बनारसी दास जी। बहुगुणाजी ने जाट-बहुल पश्चिम यूपी के भू-भाग के हरियाणा में विलय की संभावना से इन्कार कर दिया था।

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Deepak Kumar

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