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Up Election 2022 : जानें उत्तर प्रदेश का राजनैतिक परिदृश्य तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण

Up Election 2022 : 90 का दशक भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही दृष्टि एक बड़े परिवर्तन का युग माना जाता है।

Dr.Vinamra sen singh
Published on: 23 Jan 2022 11:34 AM GMT
Opinion news
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Up Election 2022 : जानें उत्तर प्रदेश का राजनैतिक   

Up Election 2022 : उत्तर प्रदेश के चुनाव (Up Election update) पर हर बार देशभर की निगाहें टिकी रहती हैं। कहते हैं दिल्ली (Delhi) का सफ़र बिना लखनऊ (Lucknow) के सम्भव नहीं। इसके पीछे मज़बूत कारण भी है। यहाँ लोकसभा (Loksabha seat) की 80 सीटें हैं और विधानसभा (Vidhansabha seat) की 403।

इस उत्तर प्रदेश ने देश को आधा दर्जन से अधिक प्रधानमंत्री दिए। इसी लिए आज़ादी के बाद से अबतक राजनीति में उत्तर प्रदेश की धाक बरकरार है ज्यों कि त्यों। राजनैतिक दृष्टि से यह प्रदेश कभी कांग्रेस (Congress) का गढ़ था। कहा जाता था कि कुत्ते के गले में भी यदि कांग्रेस का टिकट लटका दूजा जाए तो वह भी चुनाव जीत जाएगा। लेकिन आगे चलकर कांग्रेस का यही घमण्ड उसे ले बीता और कांग्रेस

शाहबानो का मामला तूल पकड़ रहा था

सत्ता से ऐसी बेदख़ल हुई कि आजतक वह अपनी वापसी के लिए तरस रही है । 90 का दशक भारतीय राजनीति की दशा और दिशा दोनों ही दृष्टि एक बड़े परिवर्तन का युग माना जाता है। उन दिनों राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे। देशभर में शाहबानो का मामला तूल पकड़ रहा था। गुज़ारा भत्ता के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय के दिए फ़ैसले को राजीव गाँधी ने संसद में क़ानून बना कर न्यायालय के फ़ैसले को पलट दिया। यही से भारतीय राजनीति में तुष्टिकरण की नीति ने अपना कदम रखा। देशभर में राजीव गाँधी का विरोध होने लगा। अब सामान्य जन भी उनपर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाने लगे।इस आरोप से बचने के लिए राजीव गाँधी ने 1 फ़रवरी 1986 को बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया। और फिर यहीं से शुरू हुआ तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण की राजनीति का।

भाँपा और कश्मीर से कन्याकुमारी तक की एक रथयात्रा

भारतीय जनता पार्टी अब कांग्रेस के बरकस अखिल भारतीय स्तर पर अपना पैर जमा रही थी। भाजपा में दो प्रमुख नेता थे, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी। लालकृष्ण आडवाणी ने देश की नब्ज़ को भाँपा और कश्मीर से कन्याकुमारी तक की एक रथयात्रा निकाली। मुद्दा था अयोध्या का राम मंदिर। आडवाणी की इस रथयात्रा से सारा देश गूँज उठा नारों से - जहां राम का जन्म हुआ है मंदिर वहीं बनाएँगे, आधी रोटी खाएँगे मंदिर वहीं बनाएँगे आदि ।

इधर लालकृष्ण आडवाणी अपनी रथयात्रा के माध्यम से राम मंदिर के मुद्दे पर देश के हिन्दुओं को एक करने का प्रयास कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस और समाजवादी सरीखे अन्य क्षेत्रीय दल मुस्लिम तुष्टिकरण को और भी धार देने में जुट गए। अब धीरे धीरे देश में एक बारीक ही सही लेकिन रेखा तो खिंच ही चुकी थी "तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण" की।

मुलायम सिंह के आदेश पर यूपी पुलिस कार सेवकों को रोकने लगी

6 दिसम्बर 1992 का दिन था। लाखों की तदात में लोग विश्व हिंदू परिषद और आडवाणी की योजना के अनुसार कारसेवा के लिए अयोध्या की ओर कूच कर रहे थे। उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। मुलायम सिंह के आदेश पर उत्तर प्रदेश की पुलिस कारसेवकों को रास्ते में ही रोकने लगे। बावजूद इसके लाखों लोग अयोध्या पहुँच गए और देखते ही देखते बाबरी मस्जिद नेस्तोनाबूत हो गयी। इसकी प्रतिक्रिया में मुलायम सिंह यादव ने पुलिस को गोली चलाने के आदेश दे दिया। कई कारसेवक पुलिस की गोली से निर्माता से मारे गए। यह सब तत्कालीन मुलायम सरकार ने मुसलमानों में अपनी पैठ बनाने के लिए किया।

यहाँ से शुरू हुई हिन्दू मुसलमान की राजनीति। एक तरफ़ भारतीय जनता पार्टी का दावा रहा कि वह भारतीय संस्कृति और उसकी विरासत की सुरक्षा और समृद्धि के लिए संघर्षरत हैं तथा तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ हिन्दू हितों के रक्षक की भूमिका निभाना उनका दायित्व है, वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस सपा बसपा आदि पार्टियाँ भाजपा को साम्प्रदायिक पार्टी घोषित कर स्वयं को अल्पसंख्यकों का रहनुमा बताने में जुट गयीं।

हम अक्सर भूल जाते हैं कि लोकतांत्रिक ढाँचे में जनता की अदालत ही सबसे बड़ी अदालत है। कांग्रेस सपा और बसपा के राजनैतिक कृत्यों ने बार बार भाजपा को मजबूत किया। कभी मनमोहन सिंह का यह बयान कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, या मुलायम सिंह यादव की पार्टी का मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्कर में SIMI और अन्य आतंकवादी संगठनों के पक्ष में बयान देना या बसपा और सपा का हिन्दू मुसलिम दंगों में भागीदार होना और उसके बाद एकतरफ़ा मुसलमानों का पक्ष लेना बरबस ही भारतीय जनता पार्टी को मज़बूत करता गया तथा जनता को विवश कर दिया तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण के साथ खडे होने के लिए।

लेखक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, हिन्दी एवं भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय हैं

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Ragini Sinha

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