TRENDING TAGS :
UPPSC: वर्ष 2024 परीक्षाओं का वर्ष या वर्ष भर की परीक्षा?
उत्तर प्रदेश में प्रतियोगी परीक्षाओं को लेकर बीते कई सालों अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। इन्हीं सभी सवालों को लेकर प्रतियोगी छात्र अनूप वर्मा ने न्यूज ट्रैक को एक लेख भेजा है, जिसमें प्रतियोगी छात्रों के दर्द को बयां किया है।
UPPSC: जब नया साल आने वाला होता है तो प्रत्येक व्यक्ति अपने कुछ लक्ष्य निर्धारित करता है, जो उसे अगले वर्ष पूरे करने होते है। ठीक इसी प्रकार एक प्रतियोगी छात्र का प्रत्येक वर्ष की जनवरी माह में एक ही लक्ष्य होता है इस वर्ष के अन्त तक किसी परीक्षा के परिणाम में अंतिम रूप से चयनित होना, हो भी क्यों प्ररिणाम न के जब पूर्व के दो वर्ष से आयोग रिकार्ड समय में भर्ती प्रक्रिया पूरी करा ले रहा हो। बात है जनवरी 2024 की सभी प्रतियोगी छात्र अपनी पूरी मेहनत के साथ तैयारी में लगे थे क्योंकि अगले माह से ही परीक्षाओं का दौर शुरु होना था। फरवरी माह में यूपी लोक सेवा आयोग ने समीक्षा अधिकारी तथा मार्च माह में यूपीपीएससी की परीक्षा तिथि निर्धारित की थी।
समीक्षा अधिकारी की परीक्षा 11 फरवरी को आयोजित की गई तथा परीक्षा के सकुशल सम्पन्न होने की सूचना भी आयोग द्वारा दी गई परन्तु परीक्षा देने बाद प्रतियोगी छात्रों के परीक्षा केंद्र से घर पहुँचने से पहले ही प्रश्नपत्र लीक होने की खबर आती है। पहले सभी को यह एक अफवाह मात्र लगती है परंतु अगला दिन आते-आते पर्याप्त साक्ष्यों को देखकर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता था कि प्रश्नपत्र परीक्षा के पहले ही लीक हो चुका था। लेकिन आयोग यह बात किसी भी कीमत पर मानने को तैयार ही नही था कि पेपर लीक हुआ है। फिर सभी प्रतियोगी छात्रों ने एकजुट होकर परीक्षा देने से ज्यादा परीक्षा निरस्त कराने के लिए संघर्ष किया। यह संघर्ष 1 सप्ताह से भी अधिक दिनों तक चला जिस दौरान प्रतियोगी छात्रों को अनेक यातनाएं भी सहनी पड़ी।
अन्ततोगत्वा परिणाम छात्रों के पक्ष में आया और परीक्षा को रद्द कर पुनः छः माह के अन्दर कराने का आदेश दिया जो लगभग 10 माह के उपरान्त दिसंबर माह में होना प्रस्तावित है। तत्पश्चात बात आती है प्रदेश स्तर की सबसे बड़ी परीक्षा यूपी लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाले यूपीपीसीएस परीक्षा की, जो मार्च माह में प्रस्तावित थी लेकिन पूर्व परीक्षा आरओ-एआरओ की दुर्गर्ति को देख कर आयोग ने ऐसी परिस्थिति में नकल माफियाओं के सामने हाथ खड़े कर दिये तथा परीक्षा को स्थगित करने का निर्णय लिया गया। इसके बाद लोकसभा चुनाव-2024 का दौर प्रारम्भ होता है जिसका मतदान व परिणाम पूर्व निर्धारित तिथि पर सम्पन्न होता है जिसमें किसी भी प्रकार का कोई व्यवधान नहीं उत्पन्न होता है। काश! इसी प्रकार से परीक्षाएँ भी बिना किसी व्यवधान के सकुशल रूप से पूर्व निर्धारित तिथियों पर आयोजित करा ली जाती, तो कितना अच्छा रहता।
चुनाव की प्रक्रिया 3 माह में सम्पन्न हो जाती हैं और परीक्षा की तिथि 3 माह से निर्धारित नहीं हो पा रही है। कुछ दिनों के बाद आयोग परीक्षा कैलेण्डर जारी करता है जिसमें 27 अक्टूबर को यूपीपीसीएस की परीक्षा तथा 22 दिसंबर को समीक्षा अधिकारी की परीक्षा तिथि निर्धारित की गयी। सभी प्रतियोगी छात्र पुनः एक बार रणभूमि में उत्तर चुके थे, अपनी तैयारी को धार देना शुरु ही किये थे कि खबर आती है परीक्षा एक बार पुनः स्थगित कर दी गई है तथा अब दिसंबर माह में प्रस्तावित है। एक बार पुनः छात्रो का मनोबल घट जाता है क्योंकि छात्र उसी असमंजस की स्थिति में पुनः आ जाता है जिसमें वह 6 माह पूर्व था।
अब सवाल यह उठता है कि क्या समीक्षा अधिकारी की परीक्षा पूर्व निर्धारित तिथि पर आयोजित हो जायेगी ? चर्चा यह भी है की परीक्षा एक से अधिक पाली में भी हो सकती है जिससे प्रतियोगी छात्रों को परीक्षा में सामान्यीकरण प्रणाली लागू होने का डर सता रहा है क्योंकि सामान्यीकरण किस आधार पर होगा तथा प्प्रश्न-पत्र के स्तर को कठिन व सरल किस आधार पर मूल्यांकित किया जायेगा क्या वह आधार सही मूल्यांकन करेगा इसकी शत-प्रतिशत कोई गारंटी नही है। छात्र निरंतर एक पाली में परीक्षा सम्पन्न कराने की मांग कर रहे परंतु छात्रों की माँग को दरकिनार कर परीक्षा एक से अधिक पाली में सम्पन्न कराने की तैयारी चल रही है। जहां सरकार एक तरफ “एक देश एक चुनाव” की बात कर रही है वही दूसरी तरफ सरकार के पास क्या इतने संसाधन नहीं है जो एक महत्वपूर्ण परीक्षा एक पाली सुरक्षित ढंग से में सम्पन्न करा सके या फिर यह सब जान-बूझ कर अपनों के लिए बैक डोर एंट्री तैयार की जा रही है।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि प्रदेश का सबसे बड़ा आयोग, प्रदेश की सबसे बड़ी परीक्षा एक वर्ष में दो बार स्थगित की जा चुकी है तथा अभी भी निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की जा सकी हैं जिससे प्रतियोगी छात्रों की स्थिति दिन प्रति दिन अत्यन्त दयनीय होती जा रही है। छात्र अपने माँ-बाप का सहारा बनने की उम्र में उन पर बोझ बनता जा रहा है। पिछले कई वर्षों से 10×10 के कमरे में स्वयं को खपा रहा है फिर भी सरकार व प्रशासन की नाकामी में पिसता जा रहा है स्थिति यह है कि महत्वपूर्ण त्यौहारों में भी छात्र अब घर नही जा पा रहे क्योंकि माँ-बाप से वादा जो किया था अधिकारी बन कर वापस लौटने का।
सरकार आयोग का गठन सुचिता के साथ समय पर परीक्षाओं का आयोजन कर रिक्त पदों पर नियुक्ति करने के लिए करती है। वर्तमान परिस्थिति में आयोग का कार्य भी छात्रों को ही करना यह रहा है चाहे वह प्रश्न पत्र लीक होने के बाद परीक्षा को रद्द करना हो या परीक्षा में सामान्यीकरण प्रक्रिया न लागू करके परीक्षा को एक ही दिन में सम्पन्न करने लिए हजारों की संख्या में छात्र एक बार पुनः सड़कों पर है,अगर सभी माँगो व कार्यों के लिए छात्रों को आन्दोलन ही करना पड़ रहा है तो आयोग को तत्काल। प्रभाव से भंग कर देना चाहिए।
ऐसी स्थिति में प्रतियोगी छात्रों की खराब मानसिक व आर्थिक स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है, क्या सरकार इसकी जिम्मेदारी लेगी या प्रशासन? प्रतियोगी छात्रों के समाने ऐसी असमंजस की स्थिति पैदा करने के लिए इतने बड़े प्रदेश में किसी अधिकारी या मंत्री की जवाबदेही नहीं है। यह एक अत्यन्त चिन्ता का विषय है जिस पर जल्द से जल्द सरकार को कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता है। मेरा सरकार व आयोग के आला अफसरों से निवेदन है अपने वातानुकूल ऑफिस से बाहर निकल कर छात्रों के संघर्ष को महसूस नहीं कर सकते तो देखिए तथा उनकी माँगो पर विचार कर न्यायसंगत निर्णय कर आयोग की चौखट से उन के चेहरों पर एक मुस्कान की किरण के साथ विदा कीजिए।
(लेखक - अनूप वर्मा, प्रतियोगी छात्र हैं और यूजीसी नेट क्वालीफाई कर चुके हैं।)