×

भारत पर अमेरिकी दादागीरी

अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के समुद्री कानून के अनुसार ही भारत के 370 कि.मी. के समुद्री क्षेत्र में अपना जंगी बेड़ा भेजा है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Opinion Writer Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shivani
Published on: 12 April 2021 9:40 AM IST
भारत पर अमेरिकी दादागीरी
X

अमेरिकन नेवी, फोटो-सोशल मीडिया 

लखनऊः भारत और अमेरिका के बीच आजकल जैसा मधुर माहौल बना हुआ है, उसमें अचानक एक कड़ुआ प्रसंग आन पड़ा है। हुआ यह है कि अमेरिकी नौसेना का सातवां बेड़ा हमारे 'सामुद्रिक अनन्य आर्थिक क्षेत्र' में घुस आया है और सरकार ने इस सीमा-उल्लंघन पर अमेरिकी सरकार से शिकायत की है। लेकिन अमेरिका ने दो-टूक शब्दों में कहा है कि अमेरिका ने किसी अन्तरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया है। बल्कि भारतीय दावे अनाप-शनाप हैं।

अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के समुद्री कानून के अनुसार ही भारत के 370 कि.मी. के समुद्री क्षेत्र में अपना जंगी बेड़ा भेजा है। लक्षद्वीप के पास के इस क्षेत्र में अपनी गतिविधि के लिए अमेरिका को किसी तटवर्ती देश की अनुमति लेने की जरुरत नहीं है। यही काम अमेरिका दक्षिण चीनी समुद्र में कर रहा है। दूसरे शब्दों में अमेरिका चीन को यह बताना चाह रहा है कि चीन के साथ वह वही बर्ताव कर रहा है, जो वह अपने मित्र भारत के साथ कर रहा है। भारत अमेरिकी चौगुटे का महत्वपूर्ण सदस्य है, इसके बावजूद इस मौके पर अमेरिका को यह विवाद खड़ा करने की जरुरत क्या थी ?

यह दाल-भात में मूसलचंद के आन पड़ने-जैसा मामला बन रहा है। यदि भारत के आर्थिक क्षेत्र में आने के पहले अमेरिका भारत को सूचना-भर भी दे देता तो यह विवाद शायद उठता ही नहीं लेकिन अमेरिका ने संयुक्तराष्ट्र संघ के समुद्री कानून का हवाला देते हुए कहा है कि उसकी धारा 58 में साफ लिखा है कि किसी भी देश के आर्थिक क्षेत्र में अपनी गतिविधियों के लिए तटवर्ती राष्ट्र की अनुमति आवश्यक नहीं है।


अमेरिका ने भारत के 370 कि.मी. के समुद्री क्षेत्र में जंगी बेड़ा भेजा

हाँ, तटवर्ती राष्ट्र की सिर्फ 12 मील की समुद्री सीमा में ही उसकी संप्रभुता रहती है। यह कानून 1982 में बना था। इस पर भारत ने 1995 में दस्तखत किए थे। 168 देशों ने इसे स्वीकार किया है लेकिन अमेरिका ने अभी तक इस पर अपनी मुहर नहीं लगाई है। इसके बावजूद अमेरिका का कहना है कि वह इस कानून का वैसे ही सम्मान करता है, जैसे कि भारत परमाणु अप्रसार संधि आदि का समर्थन करता है। अर्थात अमेरिका इस समुद्री कानून को मानने या न मानने में स्वतंत्र है। जबकि इसी कानून की धारा 88 कहती है कि ''खुला समुद्र शांतिपूर्ण गतिविधियों के लिए सुरक्षित'' रहना चाहिए। भारत का जोर इसी लक्ष्य पर है।

अमेरिका के युद्धपोत भारत के उस आर्थिक क्षेत्र में तरह-तरह की सामरिक गतिविधियां चला रहे हैं। इसी तरह के काम 2001 में ब्रिटेन ने भी भारत के सामुद्रिक क्षेत्र में शुरु किए थे। तब भी रक्षा मंत्री जाॅर्ज फर्नाडीस ने उसका विरोध किया था। कुछ समय पहले अंडमान के पास से एक चीनी जहाज को भारतीय जल-सेना ने खदेड़ दिया था। भारत ही नहीं, दुनिया के अन्य 28 तटवर्ती देशों ने उनके 'अनन्य आर्थिक क्षेत्रों' में इस तरह के अतिक्रमणों को रोकने की इच्छा प्रकट की है। आश्चर्य तो यह है कि एक तरफ अमेरिका सुदूर-पूर्व के समुद्र को 'हिंद-प्रशांत' नाम दे रहा है और दूसरी तरफ हिंद महासागर में भारत का कोई लिहाज़ नहीं कर रहा है। यह कैसी दादागीरी है?

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं। ये लेखक के निजी विचार है।)
Shivani

Shivani

Next Story