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उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट 2018: आखिर खुल गया सिमसिम

raghvendra
Published on: 23 Feb 2018 1:44 PM IST
उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट 2018: आखिर खुल गया सिमसिम
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Live: UP इन्वेस्टर्स समिट: राष्ट्रपति- समिट का सफल आयोजन बड़ी बात

योगेश मिश्र योगेश मिश्र

आम के आम गुठलियों के दाम। कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना। इन दोनों कहावतों के जितने भी पक्ष और संभावनाएं हो सकती हैं उन सबको इन्वेस्टर्स समिट में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक साथ हासिल कर लिया। आधुनिक राज्य व्यवस्था में विकास के लिए बाहरी निवेश अनिवार्य हो गया है। जहां जितना निवेश हो रहा है उसे उतना ही विकसित राज्य अथवा देश कहा जाता है। अब विकास के लिए सूचकांकों का उतना महत्व नहीं रह गया है क्योंकि यह मान्यता प्रबल हो गई है कि निवेश सूचकांकों को बदल देगा। इस मान्यता के मद्देनजर योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाले उत्तर प्रदेश ने देश के ग्रोथ इंजन होने की सफल इबारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में बीते 21 व 22 फरवरी को लिख दी। देश के तमाम नामचीन उद्योगपतियों ने राज्य के एक साल के बजट के बराबर यानी चार लाख 28 हजार करोड़ का निवेश करने के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।

हालांकि सहमति पत्र (एमओयू) पर दस्तखत कर निवेश की प्रतिबद्धता जताना और फिर मुकर जाना भी उद्योगपतियों का शगल रहा है। मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश यादव के राज में भी अनेक एमओयू पर साइन हुए। इसके लिए कुछ मुख्यमंत्रियों ने दिल्ली, मुंबई व कर्नाटक का रुख किया तो कुछ ने विदेशों में भी रोड शो किया। राज्य सरकारों के साथ अनुबंध पत्रों पर हस्ताक्षर कई बार मेगा मीडिया शो भी बना है, लेकिन इस बार का आयोजन महज इस लिहाज से नहीं बल्कि कई और मामलों में भी अलहदा रहा। पहली बार किसी राज्य में निवेश की संभावनाओं की खिड़कियां और द्वार खोलने में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ ही केंद्रीय कैबिनेट भी लगी है। यह पहला मौका है कि राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री दोनों ही उस राज्य से हैं जहां निवेश के लिए अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर हुए हैं। प्रधानमंत्री की उपस्थिति में औद्योगिक घरानों ने कागजी खानापूर्ति नहीं की बल्कि संकल्प के बोल भी बोले। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले गुजरात को छोड़ दें तो शायद इतने औद्योगिक सितारे पहली बार किसी एक फलक पर एक साथ नजर आए।

अगले वर्ष लोकसभा का चुनाव होना है। पिछली बार का चुनाव नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस की सत्ता विरोधी रुझान की लहर पर चढक़र जीत लिया था। इस बार वह खुद सरकार में हैं। हर सरकार के खिलाफ थोड़ी कम, थोड़ी ज्यादा नाराजगी रहती ही है और वह भी नरेन्द्र मोदी सरकार जो कठोर फैसले लेने के लिए अडिग है। मोदी से कुछ तबकों की नाराजगी से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में मोदी के लिए जरूरी है कि वह एंटी इनकमबैंसी को डेवलपमेंट में ट्रांसलेट करें।

80 सीटों वाले प्रदेश के लिए यह सीन जरूरी है। देश के चुनावी नतीजों पर सबसे ज्यादा असर डालने वाले समीकरण उत्तर प्रदेश व बिहार से बनते हैं। नीतीश कुमार के मार्फत मोदी ने बिहार को साध लिया है। निवेश के इस मेगा इवेंट के साथ यहां भी संभावनाओं के द्वार खोल दिए गए हैं। खेल का मैदान और गेम का रूल सब बदल दिया है। समाजवादी सरकार के लिए कानून व्यवस्था कोढ़ बन गई थी। योगी सरकार के लिए भी इसकी गुत्थी सुलझाना इनकाउंटर के मामलों को छोड़ दिया जाए तो अबूझ बन रहा था, लेकिन पांच हजार उद्यमियों से केंद्र व राज्य सरकार ने मिलकर अप्रत्यक्ष ढंग से यह कहलवा लिया कि आल इज वेल।

यह मीडिया से ज्यादा इम्पैक्ट रखता है क्योंकि जनता के मनोविज्ञान में अभी भी सरकारी प्रचार से ज्यादा अहमियत कारोबारी टिप्पणियों की है। इस मकसद में सरकार कामयाब है। समिट में आए देश के तकरीबन सारे बड़े उद्यमियों द्वारा दिए गए सकारात्मक संदेशों ने ‘यूपी बदल रहा है’ पर मोहर लगा दी। सूबे में उद्योग का परिदृश्य बदलने में समय लगेगा पर अगले चुनाव में सत्ताधारी दल की संभावनाओं को अभी से पंख लग गए। इसके नतीजे दोनों उपचुनावों में साफ पढ़े जा सकेंगे।

तकरीबन चार लाख 28 हजार करोड़ रुपए के निवेश पत्रों ने तकरीबन सभी क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश की सरकार को हर प्रश्न का देने के लिए उत्तर दे दिया है। यहां पांच करोड़ से ज्याद बेरोजगार हैं। इन बेरोजगारों को उम्मीद नजर आनी ही चाहिए। जब देश के जीडीपी का आकार तीन सौ फीसदी बढ़ रहा था तब उत्तर प्रदेश में इसकी दर तकरीबन 41 फीसदी थी। न्यू इंडिया के उदय के साथ न्यू उत्तर प्रदेश की रचना हताशा निराशा से अलग उम्मीद की किरण तो जगाती ही है। इस काम में योगी सरकार कामयाब होती दिखती है। उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय पार्टियों की सरकारों के पहले तक निवेश का स्वप्निल मुकाम पहले भी रहा है। आज योगी सरकार वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट की मुनादी पीटती है। एक दौर में यहां के हर शहर के पास औद्योगिक क्षेत्र खोले गए थे।

पिकअप और वित्त विकास निगम जैसी संस्थाएं बनायी गई थीं। उद्योग तो लगे, लेकिन बंद हो गए उद्योगों को आर्थिक मदद देने वाली संस्थाएं दिवालिया हो गईं। अभी भी कन्नौज का इत्र, फिरोजाबाद का कांच, बनारस की साडिय़ां, भदोही का कालीन, मेरठ के खेल के सामान, सहारनपुर के लकड़ी के सामान, मुरादाबाद का पीतल उद्योग, बरेली के बेंत के फर्नीचर, आगरा व कानपुर का चमड़े का सामान, टांडा की दरियां, अलीगढ़ का ताला, अमेठी का अचार, संभल का पुदीना, लखनऊ का चिकन और दशहरी आम, कासगंज के घुंघरू सरीखे ऐसे कई आइटम हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश की पहचान न सिर्फ भारत में बनाई बल्कि विदेशों में भी परचम लहराया पर सबकी कमर टूट गई। कारण यह कि सबको सरकारी नीतियों के हवाले छोड़ दिया गया और नीतियों के संचालकों की नीयत में खोट था। इसलिए उत्पादों को बाजार नहीं मिल पाया। सरकार को बाजार देने का काम करना होगा क्योंकि नामचीन उद्योगपति अपने उत्पाद को भले ही मनमाने दामों पर बेच लें पर इलाकाई उत्पादों को उपभोक्ता और बाजार कैसे मिलेगा।

इसकी एक मिसाल दी जा सकती है। शिरडी के एक छोटे से गांव में साईं बाबा हुए। गांव शहर बना, हवाई अड्डा खुला, पांच सितारा होटल आ गए, आसपास के तकरीबन पांच-सात लाख लोग साईं बाबा के नाम से रोजगार कर अपना पेट भरने लगे। उत्तर प्रदेश भगवान राम की भी जमीन है। यहां कृष्ण की लीलाएं भी हैं, बुद्ध का जन्म भी हुआ और महाबीर की कर्मभूमि भी है। अयोध्या, मथुरा, काशी, कपिलवस्तु, सारनाथ, नैमिषारण्य, कुशीनगर कहीं भी जाइए तो विकास की बात तो दूर, रहने का अच्छा ठिकाना नहीं मिलेगा। नीति आयोग के मुताबिक प्रदेश के 53 जिले पिछड़े हैं। हमारे राजनेताओं ने इन जिलों को उद्योगपतियों के लायक छोड़ा ही नहीं है।

उद्योग के लिए बिजली, सड़क व पानी के साथ सुरक्षा चाहिए। सरकार ने जिस तरह उद्योगपतियों का इस्तकबाल किया उससे यह तो कहा जा सकता है कि सुरक्षा के लिए वह प्रतिबद्ध रहेगी। लेकिन शेष अवस्थापन सुविधाओं के लिए उसके बजट में पैसा ही नहीं है। इन सबके बाद योगी सरकार के सामने नरेन्द्र मोदी ने इनवेस्टमेंट समिट में उपस्थित होकर जॉब व पीपुल्स सेंट्रिक, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस सरीखा माहौल बनाने और बढ़ाने की जो जिम्मेदारी सौंपी है उसे अकेले योगी को पूरा करना होता तो शायद यकीन आसान होता है, लेकिन उसके लिए योगी को सहयोगियों और उनकी नौकरशाही की मदद की जरुरत होगी।

यदि अतीत से सबक लेते हुए इन सपनों और संकल्पों को जमीन पर उतारने की बात की जाए तो शायद यकीन आसन नहीं होगा क्योंकि उनकी सरकार और पिछली सरकारों के कामकाज में जिस आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा थी वह अभी नेपथ्य से बाहर नहीं आ पाई है। इसकी बानगी प्रधानमंत्री ने वन प्रोडक्ट-वन डिस्ट्रिक्ट के टच स्क्रीन पर उंगली रखके महसूस कर ली होगी। प्रदेश की चीनी मिलों का कायाकल्प नहीं हो पाया। गोरखपुर का फर्टिलाइजर शुरू होने का दावा अभी भी औंधे मुंह लेटा है। योगी आदित्यनाथ को मोदी की परीक्षा पास करनी है और मोदी को जनता की परीक्षा पास करनी है। ऐसे में उन्हें कथनी और करनी के सभी अंतरों को पाटना होगा नहीं तो ये पब्लिक है सब जानती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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