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थम नहीं रहा सैनिकों के साथ बर्बरता का सिलसिला

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक कई मुस्लिम देषों की यात्रा कर चुके हैं, लेकिन इन देषों को आतंकवाद की लड़ाई में  पाकिस्तान के विरुद्ध करने में सफल नहीं हुए ? लिहाजा जरूरत है कि द्विपक्षीय वार्ता में इस्लामी देषों को पाकिस्तान से अलग-थलग किए जाने की ऐसी बाध्यकारी षर्तें षामिल हों, जो कि पाक को कष्मीर के मुद्दे पर नकारने का काम करें।

Manali Rastogi
Published on: 23 Sep 2018 9:45 AM GMT
थम नहीं रहा सैनिकों के साथ बर्बरता का सिलसिला
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योगेश मिश्र योगेश मिश्र

इमरान खान के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि अब पाकिस्तान के रुख में बदलाव आएगा और मैत्री भाव नए सिरे से पनपेगा। ऐसी अपेक्षा इसलिए भी थी, क्योंकि इमरान एक बड़े क्रिकेट खिलाड़ी रहे हैं। खेल में जय-पराजय किसी की भी हो अंत में खिलाड़ियों के बीच सद्भाव ही देखने में आता है। लेकिन इस प्रवृत्ति के विरुद्ध सीमा पर सीमा सुरक्षा बल के जवान नरेंद्र सिंह दहिया की जिस निर्ममता के साथ पाक रेंजरों ने हत्या कर गला रेता, आंखें निकालीं और निश्प्राण देह को जिस तरह से क्षत-विक्षत किया, उससे पाक की राक्षसी-पैचासिकता ही देखने में आई है।

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इस घटना के ठीक पहले इमरान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर दोनों देषों के बीच षांतिवार्ता बहाल करने की बात कही थी। चिट्ठी में कष्मीर, सरक्रीक, सियाचिन जैसे विवादित मुद्दों के साथ आतंकवाद पर भी बातचीत का प्रस्ताव षामिल था। पत्र में दोनों देषों के बीच न्यूयाॅर्क में आयोजित होने वाले संयुक्त राश्ट्र सम्मेलन के दौरान विदेष मंत्री स्तर की वार्ता का भी सुझाव षामिल था। भारत ने इस प्रस्ताव की स्वीकृति का संदेष ठीक उस वक्त दिया जब देष अपने सैनिक की बर्बर हत्या के जख्मों से लहुलुहान था और सोनीपत में सैनिक का अंतिम संस्कार किया जा रहा था।

वाकायदा पत्रकार वार्ता आयोजित कर विदेष मंत्रालय के प्रवक्ता रवीष कुमार ने बताया कि ‘भारत दोनों देषों के विदेष मंत्रियों की मुलाकात के लिए सहमत है।‘ इससे पता चलता है कि साढ़े चार साल बीत जाने के बावजूद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास कष्मीर समस्या से निपटने की न तो कोई दूरदर्षिता है और न ही कोई कारगर नीति है ? पाक द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने और उसे मित्रता के स्तर पर ले जाने का इच्छुक भी नहीं है। बल्कि इसके उलट वह बार-बार छल और प्रपंच रच रहा है और हम हैं कि उसे मुंहतोड़ जवाब देने की बजाय, उसका मुंह ताक रहे हैं।

इस घटना ने अंतरराश्टीय सीमा के उल्लंघन और संघर्श विराम की षर्त को एक बार फिर खुली और वीभत्स चुनौती दी है। रिष्तों में सुधार की भारत की ओर से ताजा कोषिषों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह षांति कायम रखने और निर्धारित षर्तों को मानने के लिए कतई गंभीर नहीं हैं।

पाकिस्तान के प्रति रहमदिली का रुख रखने वाले नरेंद्र मोदी ने पहले तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज षरीफ को अपने षपथ-ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया, फिर साड़ी और आम भेजे, यही नहीं षरीफ की बेटी की षादी में आषीर्वाद देने के लिए सारे प्रोटोकाॅल तोड़कर बिन किसी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के पाकिस्तान भी पहुंच गए थे।

इसके बाद पाक को अंतरिक्ष में निषुल्क उपग्रह प्रक्षेपण के लिए कहा था, लेकिन उसने इस प्रस्ताव को माना नहीं था। इन उदारताओं का परिचय पाक सेना हमारे सैनिकों के सिर कलम करके निरंतर दे रही है। हालांकि इस घटना के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि जवान नरेंद्र सिंह के षव को विकृत करने का बदला लेने के नजरिए से बीएसएफ पाकिस्तानी रेंजर्स के खिलाफ सक्रिय कार्यवाही कर सकता है। इस दृश्टि से 192 किमी लंबी अंतरराश्ट्रीय सीमा और 740 किमी लंबी नियंत्रण रेखा पर भी सभी इलाकों में हाई अलर्ट कर दिया गया है। किंतु इन क्रूर घटनाओं से पूरा देष सकते में है और वह अब भारत सरकार से आष्वासन नहीं, ठोस जवाबी कार्रवाई चाहता है।

इसी तर्ज पर 30 जुलाई 2011 को षहीद जयपाल सिंह और देवेन्द्र सिंह के सिर काट ले गए थे। 8 जनवरी 2013 हेमराज सिंह और सुधाकर सिंह की पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके के मेंढर क्षेत्र में करीब आधा किलोमीटर भीतर घुसकर हत्या कर दी थी, फिर षहीद सैनिक हेमराज का सिर काट ले गए थे।

22 नवंबर 2016 को मांछिल में हुई मुठभेड़ में तीन जवान षहीद हुए, इनमें से प्रभु सिंह का सिर काटा गया था। 28 अक्टूबर 2016 को षहीद जवान मंदीप सिंह को षव को मांछिल में क्षत-विक्षत किया था। कारगिल युद्ध के समय ऐसी ही हिंसक बर्बरता पाक सैनिकों ने कप्तान सौरभ कालिया के साथ बरती थी। यही नहीं सौरभ का षरीर क्षत-विक्षत करने के बाद षव बमुष्किल लौटाया था। अब इसी किस्म की हरकत की फिर से पुनरावृत्ति हुई है।

युद्ध के समय भी अंतरराश्ट्रीय कानून के मुताबिक ऐसी वीभत्सा बरतने की इजाजत नहीं है। ये वारदातें युद्ध अपराध की श्रेणी में आती हैं। लेकिन भारत सरकार इस दिषा में कोई पहल नहीं करती और युद्ध अपराधी, निरपराधी ही बने रहते हैं। भारत की यह सहिश्णुता विकृत मानसिकता के पाक सैनिकों की क्रूर सोच को प्रोत्साहित करती है। यहां दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह भी है कि ऐसी जघन्य हालत में पाक के साथ भारतीय सेना नायक क्या बर्ताव करें, इस परिप्रेक्ष्य में भारत के नीति-नियंताओं के पास कोई स्पश्ट नीति ही नहीं दिखाई देती है। यही वजह है कि बड़ी से बड़ी घटना भी आष्वासन और आष्वस्ति के छद्म बयानों तक सिमटकर रह जाती है।

भारत इन घटनाओं को अंतरराश्टीय मंचों पर उठाने का भी साहस नहीं दिखा पाता। नतीजतन संबंध सुधार के द्विपक्षीय प्रयास इकतरफा रह जाते हैं। हकीकत तो यह है कि संबंध सुधार के लिए बातचीत ही समस्या की जड़ बन गई है, इसी कारण भारत बार-बार धोखा और मात खा रहा है। किंतु अब समय आ गया है कि पाकिस्तान संबंधी नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। साथ ही कष्मीर के परिप्रेक्ष्य में भी नई और ठोस रणनीति अमल में लाई जाए। क्योंकि कष्मीर में हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ रहे हैं।

इस ताजा घटना के संदर्भ में गौरतलब है कि जम्मू-कष्मीर में नियंत्रण रेखा पर 18 साल से जारी युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की दिषा में सबसे पुख्ता षर्त है। 26 नवंबर 2003 को यह षर्त लागू हुई थी। बाबजूद रेखा पर कमोबेष अघोशित हमले जैसी स्थिति बनी हुई है।

हमेषा की तरह पाकिस्तान ने जिस तरह से इस घटना को नकारा है, उससे साफ हो गया है कि पाक के जो निर्वाचित प्रतिनिधि इस्लामाबाद की सत्ता पर सिंहासनारुढ़ हैं, उनका अपने ही देष की सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चंगुल में है। हुकूमत पर आईएसआई का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि वह भारत के खिलाफ सत्ता को उकसाने का भी काम करती है।

यही वजह है कि सेना की अमर्यादित दबंगई भाड़े के सैनिकों को भारत में घुसपैठ कराकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की भूमिका रचती है। दरअसल पाकिस्तानी षासन-प्रषासन और सेना की बीच संबंध मधुर नहीं हैं। जब भी पाक का कोई नया प्रधानमंत्री षांतिवार्ता की बातचीत की पहल करता है, तो तो पाक सेना उसे अपनी औकात दिखाने के लिए कोई न कोई ऐसी हरकत करती है कि वह दोयम दर्जे का रह जाए। यही वजह रही कि इमरान खान द्वारा षांति का प्रस्ताव रखते ही पाक सेना ने सीमा पर वार्ता में बाधा आए, इस नजरिए से एक सैनिक की पार्थिव देह के साथ ही क्रूरतम रचना रच दी।

पाक के इरादे भारत के प्रति नेक नहीं हैं, यह हकीकत सीमा पर घटी इस ताजा घटना ने तो साबित की ही है, इसी नजरिए से वह आर्थिक मोर्चे पर भारत से छद्म युद्ध भी लड़ रहा है। देष में नकली मुद्रा की आमद नोटबंदी के बाद भी जारी है। आतंकियों के पास भारतीय मुद्रा की कमी न रहे इसीलिए दो साल पहले बैंक की कैष वैन को भी लूटा गया था। इसमें 50 लाख रुपए नकद थे।

नोटबंदी के बाद भी नकली नोटों की तष्करी कष्मीर, राजस्थान, नेपाल और दुबई तथा समुद्री जहाजों से हो रही है। जाली मुद्रा के लेन-देन में अब तक सैंकड़ों लोग पकड़े जा चुकने के बाद जमानत पर छूटकर इसी कारोबार को अंजाम देने में लगे हैं। कानून सख्त न होने के कारण यह व्यवसाय उनके कैरियर का हिस्सा बन गया है। भारत की बढ़ती विकास दर और प्रति व्यक्ति आय बढ़ोत्तरी में इस जाली मुद्रा की भी अहम् भूमिका है।

नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक कई मुस्लिम देषों की यात्रा कर चुके हैं, लेकिन इन देषों को आतंकवाद की लड़ाई में पाकिस्तान के विरुद्ध करने में सफल नहीं हुए ? लिहाजा जरूरत है कि द्विपक्षीय वार्ता में इस्लामी देषों को पाकिस्तान से अलग-थलग किए जाने की ऐसी बाध्यकारी षर्तें षामिल हों, जो कि पाक को कष्मीर के मुद्दे पर नकारने का काम करें। बहरहाल भारत यह मानकर चले कि अब उंगली टेढ़ी किए बिना घी निकलने वाला नहीं है। मोदी की वाकई 56 इंची छाती है तो वे इस छाती के बल को प्रमाणित भी करें।

(लेखक, साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

Manali Rastogi

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