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अब जातीय आरक्षण खत्म करें

देश के एक भी नेता या दल की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह इस अमर्यादित मांग का विरोध करें।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Chitra Singh
Published on: 7 May 2021 3:34 AM GMT
अब जातीय आरक्षण खत्म करें
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जातीय आरक्षण (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र में मराठा लोगों के आरक्षण को बढ़ाने वाले कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। महाराष्ट्र विधानसभा ने एक कानून सर्वसम्मति से पारित करके सरकारी नौकरियों और शिक्षा-संस्थाओं में प्रवेश के लिए मराठा जाति का कोटा 16 प्रतिशत बढ़ा दिया याने कुल मिलाकर जातीय आरक्षण 68 प्रतिशत हो गया, जो कि 50 प्रतिशत की सीमा का स्पष्ट उल्लंघन है।

जातीय आरक्षण की यह उच्चतम सीमा 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने तय की थी। सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, कई अन्य प्रांतों में अपने आप को पिछड़ा वर्ग कहनेवाले जाट, कापू, गूजर, मुसलमान आदि जाति-संगठनों ने अपने लिए आरक्षण बढ़ाने के लिए आंदोलन चला रखे हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र, बिहार, तमिलनाडु, पंजाब और राजस्थान आदि कई राज्यों ने तथाकथित पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की सीमा का पहले ही उल्लंघन कर रखा है या करना चाहते हैं। इन सब राज्यों ने अदालत से अनुरोध किया था कि वह उन्हें 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की अनुमति दे दे। इन राज्यों की इस मांग का समर्थन सभी दलों ने किया।

देश के एक भी नेता या दल की हिम्मत नहीं पड़ी कि वह इस अमर्यादित मांग का विरोध करें। वे विरोध कर ही नहीं सकते, क्योंकि इस मांग के पीछे उन्हें थोक वोट मिलने का लालच है। भारत की राजनीति इसीलिए लोकतांत्रिक कम और जातितांत्रिक ज्यादा है। आम आदमी अपना वोट डालते समय उम्मीदवार की योग्यता पर कम, अपनी और उसकी जाति पर ज्यादा विचार करता है। इस दूषित प्रक्रिया के कारण हमारा लोकतंत्र तो कमजोर होता ही है, सरकारी प्रशासन भी अपंगता का शिकार हो जाता है। उसमें नियुक्त होनेवाले 50 प्रतिशत अफसर यदि अपनी योग्यता नहीं, जाति के आधार पर नियुक्त होंगे तो क्या ऐसी सरकार लंगड़ी नहीं हो जाएगी ?

आरक्षण (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

इस जातीय आरक्षण का सबसे ज्यादा नुकसान तो उन्हीं अनुसूचित और पिछड़ी जातियों के लोगों को ही होता है, क्योंकि उनमें से निकले हुए मुट्ठीभर परिवारों का इन नौकरियों पर पीढ़ी दर पीढ़ी कब्जा हो जाता है जबकि इस आरक्षण का उद्देश्य था, भारत में एक समतामूलक समाज का निर्माण करना। लेकिन अब भी करोड़ों अनुसूचित और पिछड़े परिवार शिक्षा और उचित रोजगार के अभाव में हमेशा की तरह सड़ते रहते हैं। सरकार की जातीय आरक्षण नीति बिल्कुल खोखली सिद्ध हो गई है। अब नई नीति की जरुरत है। अब जाति के आधार पर नहीं, जरुरत के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए। अब नौकरियों में नहीं और उच्च-शिक्षा में नहीं लेकिन सिर्फ माध्यमिक शिक्षा तक सिर्फ जरुरतमंदों को आरक्षण दिया जाना चाहिए। 50 क्या, 70 प्रतिशत तक दिया जा सकता है। देखिए, भारत का रुपांतरण होता है या नहीं ?

Chitra Singh

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