Monsoon Food Inflation: हरे हरे मुखड़े के लाल- लाल तेवर

Monsoon Food Inflation: हर साल का ट्रेंड है कि बारिश के दिनों में सब्जियों का लाल तमटमाया चेहरा देखना, जिसके कारण आम आदमी का जीना मुहाल हो चुका है, गृहिणी के लिए मुश्किल हो चला है घर के बजट को संभालना।

Anshu Sarda Anvi
Published on: 14 July 2024 10:59 AM GMT (Updated on: 14 July 2024 11:03 AM GMT)
Monsoon Food Inflation
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Monsoon Food Inflation

Monsoon Food Inflation: ऋतु परिवर्तन! मानसून का आगमन। चारों तरफ नदी, नाले, बाढ़ और बदहाल सड़कों का धंसना। ऐसा नहीं है कि प्रकृति सुंदर नहीं लग रही है, वह भी लग रही है। धुली- धुली, साफ-साफ पर हरियाली टोकरी का लाल चेहरा देखकर प्रकृति की रंगीनी देखने का स्वाद थोड़ा किरकिरा हो चला है। पिछले दो-तीन सप्ताह में सब्जियों के दाम आसमान छूने निकले हैं। कीमतें बाढ़ के पानी से भी अधिक तेजी से बढ़ रही हैं। यूं तो यह हर साल का ट्रेंड है कि बारिश के दिनों में सब्जियों का लाल तमटमाया चेहरा देखना, जिसके कारण आम आदमी का जीना मुहाल हो चुका है। गृहिणी के लिए मुश्किल हो चला है घर के बजट को संभालना। सब्जी वालों के साथ कितना ही मोल -भाव किया जा सकता है। वे लोग भी नुकसान खाकर तो सब्जी बेचना नहीं चाहेंगे। पूछने पर कहते हैं कि आगे से ही सब्जी नहीं आ रही है।


आखिर क्या कारण है कि बारिश दिनों में सब्जियों के इस तपते हुए बाजार का। 'बारिश से डर नहीं लगता है लेकिन सब्जियों के बढ़ते दाम से डर लगता है'- ऐसा कहना है एक ग्रहिणी का। टमाटर ₹100 किलो, प्याज ₹60 किलो, लाल- पीली शिमला मिर्च ₹400 किलो, आलू ₹50 किलो, लौकी ₹80 किलो, अदरक रू250 किलो, तोरई ₹100 किलो, भिंडी ₹80 किलो और करेला उसे भी क्यों पीछे रहना है किचन के स्वाद को कड़वा बनाने के लिए, वह भी बढ़ चला है। यही हाल फलों का भी है। बारिश और गर्मी की वजह से खराब होते टमाटर और अन्य सब्जियां। उत्पादन है पर उनका ट्रांसपोर्टेशन ठीक नहीं है।


सप्लाई चैन बाधित है, उसमें दिक्कतें हैं। यानी किसानों से आम आदमी तक के बीच सब्जियों का यह सफर बिचौलियों और दलालों की गलत भूमिका के साथ-साथ सरकार की अपनी भूमिका पर भी एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगता है। रिपोर्ट्स की माने तो सब्जियों के दाम बढ़ने का 30% कारण उत्पादन में कमी है तो 70% कारण सप्लाई चैन का उपयुक्त तरीके से समन्वय ना होना है।सब्जियों के थोक भंडारण की उचित व्यवस्था के अभाव या उसमें कमजोर होना सब्जियों के दामों पर निसंदेह असर डालता है।


आश्चर्य इस बात का नहीं होना चाहिए कि सब्जियों के दाम बड़े बल्कि इस बात का है कि हर साल बारिश के मौसम में सब्जियों के दाम बढ़ने की परिपाटी को रोकने के लिए पहले से ही सरकारों द्वारा कोई तैयारी क्यों नहीं की जाती है। आलू, प्याज , टमाटर जैसी रोज की सबसे बड़ी जरूरतों वाली सब्जियों के दामों से देश के आम आदमी की रसोई कराह रही है। सी आई आई की रिपोर्ट बताती है कि किसानों के पसीने और अथक परिश्रम से पैदा हुई फल, सब्जियों का 35% कोल्ड स्टोरेज के अभाव में बर्बाद हो जाता है।


महाराष्ट्र के लाचार किसानों का वह दर्द आज भी याद है जब किसानों ने प्याज को और कर्नाटक में टमाटर को खेत में ही दबा दिया था। यह उत्तर प्रदेश की कहानी है जब आलू को सड़कों पर फेंक दिया गया था क्योंकि मंडी ले जाने का भाड़ा भी आलू बेचकर नहीं मिल रहा था। अगर कोल्ड स्टोरेज की ठीक व्यवस्था होती तो किसान अपने पसीने की गाड़ी कमाई वाले इन फलों, सब्जियों को इस तरह से सड़कों पर क्यों फेंकता और क्यों बारिश के इन दिनों में सब्जियां आम आदमी की कमर तोड़ देतीआलू जो किसानों से बिचौलिए और सरकार ₹5-10 किलो के हिसाब से खरीदती हैं उसे ही बहुराष्ट्रीय कंपनियां आलू के चिप्स के पैकेट में 400 से ₹500 किलो का बनाकर बेचती हैं। जो टमाटर किसान ₹10 किलो बेचने पर मजबूर होता है वही टमाटर सब्जी मंडी में आकर ₹100 किलो बिकता है।


यानी उत्पाद की खरीद और उत्पाद का विपणन मूल्य दोनों में एक बहुत बड़ी असमानता है। कोल्ड स्टोरेज की क्षमता 10 वर्ष पहले 350 लाख टन थी वह पिछले 10 वर्षों में मात्र 11% बढ़कर 394 लाख टन हुई है। इसका अर्थ है कि सरकार किसानों और आम आदमी दोनों के इस कमरतोड़ दर्द से बिल्कुल भी अविचलित है। सब्जियों के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई दर बढ़ चुकी है। जून में खाद्य वस्तुओं की मुद्रा स्फिति 9.36 % होने के कारण महंगाई पिछले 4 महीने के उच्चतम स्तर पर 5.08% पर पहुंच गई है। क्या होगा आम आदमी का और खेतों में पसीना बहाते किसानों का तथा ग्रहिणियों के बजट का। इस हरियाली टोकरी के लाल तमतमाए चेहरे का कब रंग बदलेगा जिससे आम आदमी अपनी जेब के अनुसार बारिश के मौसम का मजा ले सके।

(लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं ।)

Shalini singh

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