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विघ्नहर्ता का विघ्न कौन हरेगा ?

करीब छह दशक (1960) हुए कुतुबमीनार से भगवान विष्णु की काली मूर्ति पायी गयी थी जो अब संग्राहालय में सुरक्षित है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के लौह स्तंभ भी इसी मीनार में लगे है।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Shashi kant gautam
Published on: 7 April 2022 6:02 PM IST
Who will defeat the obstacle of Vighnaharta
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विघ्नहर्ता का विघ्न कौन हरेगा: Photo - Social Media

भाजपा—शासित, ''आप''—नियंत्रित दिल्ली में हमारे प्रातस्मरणीय, आराध्य गणेश उलटे लटके हैं। समीप ही गणपति की दूसरी प्रतिमा सलाखों के पीछे कैद है। मोहम्मद गोरी (Mohammad Ghori) के गुलाम कुतुबुद्दीन ने अपनी मीनार के निचले खंभे पर इन दोनों विग्रहों को प्लास्तर से जड़वाया था। मंदिर को भग्न करके, ठीक 829 वर्षों पूर्व। अब तक करोड़ों पर्यटक इसे देख चुके होंगे। नेहरु (Pandit jawaharlal nehru) से नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) के संज्ञान में भी रहा होगा। आज (7 अप्रैल 2022) यह त्रासद तथ्य सद्य (ताजा) हो गया, ''इंडियन एक्सप्रेस'' (Indian Express) के मुखपृष्ठ पर छपी रिपोर्टर ए. दिव्या की रपट के मार्फत।

इस समाचार के स्रोत हैं एक जागरुक श्रमजीवी, पत्रकार, ज्ञानी, भावनाशील, स्वयंसेवक संघ के साप्ताहिक ''पांचजन्य'' के 22 वर्षों तक संपादक रहे पूर्व भाजपायी सांसद, तिब्बत—मुक्ति संघर्ष के योद्धा, तमिलप्रेमी, ओस्मानिया (मुस्लिम) विश्वविद्यालय (हैदराबाद) से शिक्षित तरुण विजय, देहरादूनवासी। राष्ट्रीय म्यूजियम अधिकरण के अध्यक्ष के नाते तरुणजी ने भारतीय पुरातत्व सर्वे संस्थान को पत्र लिखा कि इन प्राचीन प्रतिमाओं को संवार कर संग्रहालय में रखा जाये। मस्जिद के तले उनका दिखना अपमानजनक है। धार्मिक भावनाओं को आहत करता है। भारत राष्ट्र की अस्मिता पर ठेस है, आघात है। तोमर राजा अनंगपाल द्वारा निर्मित मंदिर और अन्य 27 जैन उपासना स्थलों को भग्न कर उनके मलबे का इस मीनार में इस्तेमाल किया गया है।

इस्लामियों का पहला हमला

सदियों पूर्व का किस्सा है। इस्लामियों का पहला हमला था। दक्षिण दिल्ली में हजार वर्ष पूर्व क्षत्रियों का प्रभाव था। राय पिठोरा शासक थे लाल कोट के। तब तक अरब इस्लामी लुटेरे आर्यावर्त तथा हस्तीनापुर में आये नहीं थे। तत्कालीन राज भवनों में विष्णु, यक्ष और वक्रतुण्ड—विघ्नेश्वर गणपति की मूर्तियां सुशोभित होती थीं। जैन तीर्थाकरों की प्रतिमाओं को भी इन सब हिन्दू मूर्तियों के साथ मध्य अफगानी गोर क्षेत्र के डाकुओं ने तोड़ा, गारद बनाया, फिर मीनार में लगाया। सारे आस्था केन्द्रों को शहीद कर डाला। क्षत की गयी इमारतों में विष्णु स्तंभ, ध्रुव स्तंभ आदि शामिल थे।

करीब छह दशक (1960) हुए कुतुबमीनार से भगवान विष्णु की काली मूर्ति पायी गयी थी जो अब संग्राहालय में सुरक्षित है। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के लौह स्तंभ भी इसी मीनार में लगे है। ग​णितज्ञ वाराह मिहिर के नाम पर बनी दक्षिण दिल्ली में मेहरौली है जहां गुलाम सुलतान कुतुबुद्दीन ने अपनी मीनार खड़ी की थी। इसी स्थान पर गत सदी में इंदिरा गांधी ने अपना फार्म हाउस निर्मित किया था। चौधरी चरण सिंह (जनता पार्टी सरकार के गृहमंत्री) ने इसकी खुदाई करायी थी। इस सूचना पर कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल की अपनी अर्जित सम्पत्ति यहीं गाड़ी थी। आज पांच एकड़ वाले इस फार्म हाउस का उनके वंशज—द्वय राहुल—प्रियंका ने उद्योगपति जिग्नेश शाह को सात लाख रुपये के मासिक किराये पर लीज पर दिया है।

राजपूत रजवाड़े, फूट के शिकार होते रहे

वैश्विक मुस्लिम इतिहास (Global Muslim History) में कुतुब मीनार का साम्राज्यवादी महत्व है। भारत पर अरब आक्रमणकारी ने यहीं इस्लामी फतह का झण्डा गाड़ा था। यह मीनार दारुल—इस्लाम का परिचायक है। फिर गोरी के बाद गजनी से एक महमूद आया था जिसने सोमनाथ लूटा था। सिलसिला बाबर से होता हुआ अहमदशाह अब्दाली तथा नादिरशाह तक चलता रहा। और हिन्दू शासक, खासकर राजपूत रजवाड़े, फूट के शिकार होते रहे अथवा अपनी बहन— बेटियों को हरम में भेजते रहे। राय पिठौरा तोमर ने इसी स्थल पर अपने किले से एक ध्यान स्थल बनवाया था जहां से उनकी लावण्यमयी पुत्री यमुना माता के प्रात: दर्शन कर उपासना करती थी। कुतुबुद्दीन और उसके दामाद इल्तुतमिश ने उस दीवार को ही ध्वस्त कर डाला।

यह सम्पूर्ण प्रकरण कुछ ज्वलंत प्रश्न उठाता है। सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा पर 1755 किलोमीटर (25 सितम्बर 1990) चले जनसंघ (फिर भाजपा) के पुरोधा लालचन्द किशनचन्द आडवाणी इतने वर्षों तक दिल्ली के अपने आवास पृथ्वीराज रोड से केवल दस किलोमीटर दूर मेहरौली क्यों नहीं गये ? वे संघर्ष द्वारा भगवान शूपकर्ण, एकदंत, कृष्णपिंगलाक्ष गजानन भगवान को कुतुबुद्दीन की कैद से मुक्त कराते? भारत को अखण्ड बनाने हेतु यातायात बस द्वारा लाहौर तक यात्रा करने वाले अटल बिहारी बाजपेयी भी मीनार से पार्वतीपुत्र को मुक्त कराने की तनिक को शिश कर सकते थे। क्यों नहीं करा पाये? उनके नेहरुमार्का सेक्युलरिज्म के लिये क्या यह हानिकारक माना जाता ? याद है वे आंदोलन के दौरान अयोध्या नहीं जा पाये थे।

बड़ा काला दिन

बल्कि 6 दिसम्बर 1991 के दिन बाबरी ढांचे को ध्वस्त करने को उन्होंने राज्यसभा में ''बड़ा काला दिन'' करार दिया था। अचरज मुझे होता है कि प्रमुख जनसंघी अग्रणी विजय कुमार मलहोत्रा, मदन लाल खुराना, केदारनाथ साहनी, राम भज, हंसराज गुप्ता आदि जिन्होंने दिल्ली पर वर्षों राज किया क्यों कुतुब मीनार पर धावा क्यों नहीं बोला ? ये महारथी मेरे साथ आपातकाल में तिहाड़ जेल में थे। वे सब दो नंबर वार्ड में रहे। मैं तथा जॉर्ज फर्नांडिस व अन्य कैदी 17 नम्बर वार्ड में थे। भेंट होती थी।

हम सब उपकृत हैं भाई तरुण विजय के। उन्होंने एक रिसते घाव को छुआ। अब अयोध्या और काशी को भव्यता दिलाने वाले सत्तासीन राजपुरुषों से आग्रह है कि इस ऐतिहासिक, मर्मघाती अत्याचार का खात्मा करें। जम्बू द्वीप में गणेश कैद में नहीं रहेंगे। प्रण करें।

Shashi kant gautam

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