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सावरकर पर हमला क्यों?

Vinayak Damodar Savarkar Par Hamla Kyun: स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर पर एक पुस्तक का विमोचन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सावरकर पर किए जाने वाले आक्षेपों का कड़ा प्रतिवाद किया है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Shreya
Published on: 14 Oct 2021 10:27 AM IST
सावरकर पर हमला क्यों?
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विनायक दामोदर सावरकर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Vinayak Damodar Savarkar Par Hamla Kyun: स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) पर एक पुस्तक का विमोचन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने सावरकर पर किए जाने वाले आक्षेपों का कड़ा प्रतिवाद किया है। उन्होंने सावरकर को बेजोड़ राष्ट्रभक्त और विलक्षण स्वातंत्र्य-सेनानी बताया है। लेकिन कई वामपंथी और कांग्रेसी मानते हैं कि सावरकर माफी मांगकर अंडमान-निकोबार की जेल से छूटे थे। उन्होंने हिंदुत्व की संकीर्ण सांप्रदायिकता फैलाई थी। उन्होंने ही गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को आशीर्वाद दिया था।

गांधी-हत्याकांड (Gandhi Hatyakand) में सावरकर को भी फंसा लिया गया था। लेकिन उन्हें ससम्मान बरी करते हुए जस्टिस खोसला (Justice GD Khosla) ने कहा था कि इतने बड़े आदमी को फिजूल ही इतना सताया गया। स्वयं गांधीजी सावरकर से लंदन के 'इंडिया हाउस' (India House) में 1909 में मिले और 1927 में वे उनसे मिलने रत्नागिरी में उनके घर भी गए। दोनों में अहिंसा और उस समय की मुस्लिम सांप्रदायिकता को लेकर गहरा मतभेद था।

सावरकर अखंड भारत के कट्टर समर्थक थे। लेकिन जिन्ना के नेतृत्व में खड़े दो राष्ट्रों की सच्चाई को वे खुलकर बताते थे। वे मुसलमानों के नहीं, मुस्लिम लीगियों के विरोधी थे। हिंदू महासभा के अपने अध्यक्षीय भाषणों में उन्होंने सदा हिंदुओं और मुसलमानों के समान अधिकार की बात कही। उनके विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ '1857 का स्वातंत्र्य-समर' (1857 Ka Swatantraya Samar) में उन्होंने बहादुरशाह जफर, अवध की बेगमों तथा कई मुस्लिम फौजी अफसरों की बहादुरी का मार्मिक वर्णन किया गया है।

विनायक दामोदर सावरकर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

सावरकर का हिंदुत्व ही RSS की विचारधार का आधार बना

जब वे लंदन में पढ़ते थे तो आसफअली, सय्यद रजा हैदर, सिकंदर हयात खां, मदाम भिकायजी कामा वगैरह उनके अभिन्न मित्र होते थे। उन्होंने खिलाफत आंदोलन का विरोध जरुर किया। गांधीजी उसके समर्थक थे। लेकिन वही आंदोलन भारत-विभाजन की नींव बना। यह ठीक है कि सावरकर का हिंदुत्व ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh- RSS) की विचारधारा का आधार बना। लेकिन सावरकर का हिंदुत्व संकीर्ण और पोंगापंथी नहीं था। सावरकर की विचारधारा पर आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद और उनके भक्त श्यामजी कृष्ण वर्मा का गहरा प्रभाव था।

वह इतने निर्भीक और तर्कशील थे कि उन्होंने वेदों की अपौरूषेयता, गौरक्षा, फलित ज्योतिष, व्रत-उपवास, ब्राह्मणी कर्मकांड, जन्मना वर्ण-व्यवस्था, जातिवाद, अस्पृश्यता आदि को भी अमान्य किया है। वह ऐसे मुक्त विचारक और बुद्धिजीवी थे कि उनके सामने विवेकानंद, गांधी और आंबेडकर भी कहीं-कहीं फीके पड़ जाते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उनके सभी विचारों से सहमत नहीं हो सकता। सावरकर के विचारों पर यदि मुल्ला-मौलवी छुरा ताने रहते थे। तो पंडित-पुरोहित उन पर गदा प्रहार किया करते थे।

सावरकर (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

क्या है ब्रिटिश सरकार से माफी मांगने का मुद्दा?

जहां तक सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार (British Government) से माफी मांगने की बात है, इस मुद्दे पर मैंने कई वर्षों पहले 'राष्ट्रीय संग्रहालय' के गोपनीय दस्तावेज खंगाले थे और अंग्रेजी में लेख भी लिखे थे। उन दस्तावेजों से पता चलता है कि सावरकर और उनके चार साथियों ने ब्रिटिश वायसराय को अपनी रिहाई के लिए जो पत्र भेजा था, उस पर गवर्नर जनरल के विशेष अफसर रेजिनाल्ड क्रेडोक ने लिखा था कि सावरकर झूठा अफसोस जाहिर कर रहा है।

वह जेल से छूटकर यूरोप के आतंकवादियों से जाकर हाथ मिलाएगा। सरकार को उलटाने की कोशिश करेगा। सावरकर की इस सच्चाई को छिपाकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश कई बार की गई। अंडमान-निकोबार जेल से उनकी नामपट्टी भी हटाई गई। लेकिन मैं तो उस कोठरी को देखकर रोमांचित हो उठा, जिसमें सावरकर ने बरसों काटे थे। जिसकी दीवारों पर गोदकर सावरकर ने कविताएं लिखी थीं।

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