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UP चुनाव: नोटबंदी पर था जनमत संग्रह, तो मतदाताओं ने लगाया पक्ष में ठप्पा

aman
By aman
Published on: 11 March 2017 4:47 PM IST
UP चुनाव: नोटबंदी पर था जनमत संग्रह, तो मतदाताओं ने लगाया पक्ष में ठप्पा
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लखनऊ: यूपी के विधानसभा चुनाव को नोटबंदी पर जनमत संग्रह माना जा रहा था। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती, समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष और सीएम अखिलेश यादव, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी किसी भी जनसभा में नोटबंदी को लेकर जनता की हुई परेशानी को उठाने से नहीं चूके।

ऐसा कर उन्होंने सहानुभूति लेने की लाख कोशिश की, लेकिन जनता चुप रही। नोटबंदी को लेकर हुए नफा-नुकसान को जनता अपने नजरिए से देख रही थी।

नोटबंदी पर जनता ने अखिलेश के तर्क को ख़ारिज किया

आउट गोईंग सीएम अखिलेश यादव अपनी हर सभा में कहते थे कि नोट काला और सफेद नहीं होता। उसका लेन-देन काला और सफेद होता है। नोटबंदी को लेकर लगी लाइन में एक महिला के जन्म लेने वाले बच्चे का भी जिक्र वो हर सभा में करते थे, जिसे बैंक वालों ने ही 'खजांची' नाम दिया था। वो हर सभा में कहते कि नोटबंदी के कारण लगी लाइन में 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई जिसे आर्थिक मदद उनकी सरकार ने दी, केंद्र की मोदी सरकार ने नहीं। अखिलेश सरकार ने ऐसे हर व्यक्ति को दो-दो लाख की आर्थिक मदद दी। लेकिन जनता को दो-दो लाख रुपए या सीएम की बात पसंद नहीं आई।

मायावती ने भी कोई मौका नहीं छोड़ा

बसपा प्रमुख मायावती भी हर चुनावी सभा में नोटबंदी का सवाल उठाती रहीं। वो कहती थीं, कि किसानों, गरीबों और मजदूरों को इससे घोर परेशानी हुई। मजदूरों को काम मिलना बंद हो गया और वो बेरोजगार हो गए। केंद्र सरकार ने अब तक नहीं बताया कि कितना काला धन आया। केंद्र सरकार ने कहा था कि इससे जाली नोटों पर लगाम लगेगी और आतंकवाद रुकेगा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। आतंकवाद पहले की ही तरह है और जाली नोटों की खेप भी आ रही है।

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राहुल की दलील भी नाकाफी

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नोटबंदी पर दलील थी कि पीएम मोदी ने अपने सात-आठ उद्योगपति दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए नोटबंदी की थी। जनता को तकलीफ देना उनका मकसद था। राहुल कहते थे, मोदी सरकार ने जनता को लाइन में लगाया, अब जनता उन्हें चुनाव में लाइन में लगाएगी।

बीजेपी का 'वनवास' खत्म

लेकिन जनता ने इन नेताओं की दलील पर कोई ध्यान नहीं दिया और नोटबंदी पर अपनी मुहर लगा दी। नोटबंदी पर मोदी के पक्ष में झमाझम वोट बरसे। संभवतः इतनी बड़ी जीत की उम्मीद तो बीजेपी नेताओं को भी नहीं थी। हालांकि पीएम मोदी अपनी सभाओं में जुटी भीड़ को देख जीत के प्रति आश्वस्त थे। तभी वो कहा करते थे कि 'होली 11 मार्च को मनाई जाएगी और वो भी केसरिया होली। सच में बीजेपी के लिए ये होली शुभ संकेत लेकर आई है। पार्टी 14 साल बाद सत्ता में वापसी करेगी। बीजेपी नेता इसे 14 साल के 'राम के वनवास' के रूप में देखते हैं।

सत्ता का गुरूर चूर हुआ

बीजेपी के प्रदेश महासचिव विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि सत्ता का गुरूर चूर हुआ है। भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए जनता ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया। सपा सरकार में जमीन पर कब्जा और गुंडागर्दी इस कदर थी कि पुलिस भी कार्रवाई करने से कतराती थी।

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मायावती ने उतारी खीज

चुनाव परिणाम को मायावती ने ईवीएम मशीन में गड़बड़ी बताया। उनका सवाल था कि मुस्लिम इलाके में भी वोट बीजेपी को कैसे मिल गए। यदि नरेंद्र मोदी में दम है तो वो बेलेट पेपर से चुनाव करावा देख लें। केंद्र सरकार और बीजेपी ने ईवीएम मशीन में छेड़छाड़ कर चुनाव जीता है।

जीत के लिए हुए दो एक्सपेरिमेंट:

पहला एक्सपेरिमेंट:

माया ने खेला दलित-मुस्लिम कार्ड

इस चुनाव में सत्ता हासिल करने के लिए दो एक्सपेरिमेंट किए गए। पहला एक्सपेरिमेंट बसपा ने किया। मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड कर चुनाव जीतने की कोशिश की और इसीलिए 100 से ज्यादा मुस्लिम को टिकट बांटे। मायावती को ये लगा कि दलित और मुस्लिम वोट उसे सत्ता दिला सकते हैं लेकिन ये बिना ग्राउंड पर काम किए किया गया प्रयोग था। दलितों की तरह मायावती ने मुसलमानों को भी वोट बैंक मान लिया। मायावती इस बात को समझने चूक गयीं कि दलित अब उनकी जागीर नहीं रहे। दलितों की नई पौध विकास और अपने करियर पर ध्यान देती है। अब दलित इस बात पर खुश नहीं होते कि मायावती 4 लाख के पलंग पर सोती हैं। हाल के सालों में दलितों में पढा-लिखा तबका तेजी से जागरूक हुआ है। हालांकि मायावती को 23 प्रतिशत वोट मिले और कुल वोटों की संख्या भी एक करोड से ज्यादा थी। इसके बावजूद मायावती 20 सीटों पर ही सिमट गईं।

दूसरा एक्सपेरिमेंट:

सपा ने कांग्रेस से हाथ मिला, चली सियासी चाल

दूसरा एक्सपेरिमेंट सीएम अखिलेश यादव ने किया कांग्रेस के साथ गठजोड कर। यह पहला मौका था जब हमेशा कांग्रेस के विरोध की राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव की पार्टी ने कांग्रेस का दामन थामा और उसे तालमेल के तहत 105 सीटें लड़ने को दी। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने एक नया नारा गढा.. 'यूपी को ये साथ पसंद है' लेकिन जनता को ये साथ ऐसा नापसंद हुआ कि कांग्रेस 6 सीटों पर सिमट गई। इस साथ में सपा को भी ग्रहण लगा और 58 सीटें ही मिल सकीं। गठबंधन के पहले कांग्रेस नारा दिया करती थी '27 साल यूपी बेहाल'।

बीजेपी 300+

बीजेपी अकेले 300 का आंकडा पार कर गई और उसे 307 सीटें मिल रही हैं। सहयोगी अपना दल को 9 और भारत समाज पार्टी को पांच सीटें मिली हैं।

अब 2024 की करें तैयारी

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम पर नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला का बयान महत्वपूर्ण है कि विपक्षी दलों को 2019 नहीं बल्कि 2024 के चुनाव की तैयारी करनी चाहिए। क्योंकि 2019 तक तो विपक्ष में कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता, जो नरेंद्र मोदी को चुनौती दे सके।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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