वक्फ : संदर्भ और खतरा, क्यों हिल रहा सेकुलर ढांचा

Waqf Amendment Bill: मुस्लिम अलगाववाद जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पक्की की थी, मोहम्मद अली जिन्ना मार्का जनद्रोही नेता उभर कर आ गए। भारतीय सेकुलर गणराज्य फिर हिल डुल रहा है।

K Vikram Rao
Published on: 11 April 2025 8:26 PM IST
वक्फ : संदर्भ और खतरा, क्यों हिल रहा सेकुलर ढांचा
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Waqf Amendment Bill 

Waqf Amendment Bill: ब्रिटिश राज द्वारा 1923 में बनाए मुस्लिम वक्फ एक्ट का संशोधन कर नरेंद्र मोदी सरकार ने यूं तो सुधारवादी और प्रगतिवादी संपत्ति अधिनियम बनाया है। मगर इस पर प्रतिक्रिया का सामना करने के लिए न पार्टी न शासन ने पर्याप्त तैयारी की थी। नतीजे में कई जगह कानून और व्यवस्था की चरचराने की आवाज सुनाई पड़ रही है। मुस्लिम अलगाववाद जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पक्की की थी, मोहम्मद अली जिन्ना मार्का जनद्रोही नेता उभर कर आ गए। भारतीय सेकुलर गणराज्य फिर हिल डुल रहा है। इस पर हर भारत प्रेमी को गंभीरता से सोचना होगा।

इस संदर्भ में मेरी नई किताब "अब और पाकिस्तान नहीं" (प्रकाशक : पंकज शर्मा "अनामिका पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स" पता : 4697/3, 21-ए अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली, मो0 9868345527) में 15 अगस्त 2008 पर लिखे मुस्लिम अलगाववाद का खतरा वाला लेख फिर परोस रहा हूं।

स्वाधीनता के इकसठ वर्ष बाद भी यदि भारतीय राष्ट्र-राज्य फिर मजहब के कारण विभाजन की कगार पर आ जाये, तो हर देशभक्त हिन्दुस्तानी को आत्मचिन्तन करना होगा कि इस्लाम के नाम पर पड़ोस में एक कौम स्थापित होने के बावजूद खण्डित भारत में सेक्युलर अवस्थापना क्यों दृढ़ नहीं हो पाई है ? गांधीजी द्वारा वर्णित भारतमाता की दो आखें (हिन्दु-मुसलमान) क्या काना बनाना चाहती हैं?

इसी पसमंजर में स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र के सर्वोच्च मुस्लिम राजनेता मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा लिखी आत्म-कथा की चन्द पंक्तियों को दुबारा पढ़ने की जरूरत है ताकि भारत में पनपते रहे राष्ट्रवादी मुस्लिम सोच तथा जिन्नावादी सोच में विषमता परखी जा सके। इससे मुमकिन है सारे भारतीय मुसलमानों की देशभक्ति पर लगता सवालिया चिन्ह मिटे, या कम से कम फीका पड़ सके।

वर्ना खतरा है कि सेक्युलर भारत कहीं धर्मप्रधान राज्य न बन जाये। मौलाना आजाद ने लिखा (इंडिया विन्स फ्रीडम: पृष्ठ 208) था कि 14 अगस्त 1947 (पाकिस्तान का स्थापना दिन) के बाद भारत में रह गये मुस्लिम लीगी राजनेता मेरे पास आये। उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना का अपने कराची प्रस्थान के अवसर पर दिया गया संदेशा दिखाया। जिन्ना ने इन मुस्लिम राजनेताओं को सुझाया था कि भारत का विभाजन हो गया है अतः ये मुसलमान अब भारत के निष्ठावान नागरिक बनकर रहें। इन मुस्लिम लीगी नेताओं ने मुझसे शिकायत की कि जिन्ना ने उन्हें धोखा दिया।“

मौलाना आजाद की राय में भारत में रह गये इन मुस्लिम राजनेताओं की बेवकूफी थी जब वे यह समझते थे कि पाकिस्तान के मायने हैं कि मुसलमान चाहे जहां हो एक अलग कौम माने जायेंगे। ”आपकी इसी बेवकूफी के कारण हिन्दुओं के दिमाग में आक्रोश और नाराजगी पैदा हो गई,“ उन्होंने कहा। मौलाना आजाद ने याद भी दिलाया कि इसी भ्रम में मुसलमानों ने पाकिस्तान के पक्ष में 1946 के मतदान में वोट दिया था। मुसलमान प्रत्याशियों का ही समर्थन किया था। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सेक्युलर राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता रफी अहमद किदवई तीन चुनाव क्षेत्रों से पराजित हुए और जीते तो सयंुक्त मतदान क्षेत्र से जहां हिन्दू वोटर बहुमत में थे।

हेमवती नन्दन बहुगुणा, जो उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं के काफी चहेते रहे, ने लखनऊ में पत्रकारों को बताया था कि वे इलाहाबाद में एक मुस्लिम लीगी नेता की सभा में श्रोता थे। उस लीगी ने समर्थन किया इलाहाबाद के मुस्लिम बाशिन्दों की उस मांग का कि गंगातटीय इस नगर को भी पाकिस्तान में शामिल कर दिया जाय। इस कदर भ्रामक प्रचार इन मुस्लिम लीगियों ने आजादी के दिन तक किया था कि नब्बे प्रतिशत भारतीय मुसलमान जिन्ना के पक्षधर हो गये थे। त्रासदी तो उन भारतीय मुसलमानों की ज्यादा हुई जो सिंघ और आज के बांग्लादेश गये थे। उन्हें आज भी मोहजिर (शरणार्थी) कहा जाता है। हिंसा के वे बहुत शिकार होते हैं।

स्वाधीन भारत की नियति रही कि देा प्रकार की सोचवाले मुसलमान भारत में हैं: एक जो मौलाना आजाद, रफी अहमद किदवई की भांति राष्ट्रवादी और पाकिस्तान-विरोधी है। दूसरे वे जिन्नावादी जो भारत में पलकर, बड़े हो कर भी, अपनी सोच को सेक्युलर नहीं बना पाये। वे पाकिस्तान गये नहीं और स्वाधीनता के वातावरण में अपने को ढाल नहीं पाये। इसी सोच की परिणति है कि आज हिन्दू जम्मू और मुस्लिम कश्मीर विघटन की कगार पर जा पहुंचे हैं।

अब प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि स्वाधीन भारत आज अपने सेक्युलर चरित्र को कैसे बचाये?पहला कदम तो यही कि खान अब्दुल गफ्फार खान के सिद्धांत से भारत के जिन्नावादी सोच के मुसलमानों को प्रभावित और शिक्षित कराया जाय कि राष्ट्रीयता का आधार मजहब नहीं हो सकता। वह भौगोलिक होता है।

स्वाधीनता और बटवारे के इकसठ वर्ष बाद एक गंभीर पहलू उभर कर आता है कि दोनों विभाजित राष्ट्र अपना रिश्ता बेहतर क्यों नहीं बना पाये?इसका खास कारण है हिन्दुओं की असहिष्णुता और मुसलमानांे की उग्रवादिता। इसी का चरम परिणाम था भारत का विभाजन और पाकिस्तान का जन्म। गांधी जी ने इन दोनों सम्प्रदायों के अवगुणांे को दूर करने के सघर्ष में अपनी आहुति भी दे डाली। गांधी जी के अखण्ड भारत के प्रयासों को जवाहरलाल नेहरू ने क्षीण कर डाला। गांधी जी ने सुझाया था कि जिन्ना प्रधानमंत्री हो जाये, मगर अंग्रेज यहां से चले जायें। गांधी जी जानते थे कि ब्रिटिश राज के खात्मे के बाद जिन्ना के साथ गैर-मुस्लिम लीगी मुसलमान नहीं रह पाएंगे। जिन्ना को अपनी असली औकात, जो उनकी 1936-37 में थी, पता चल जायेगी। भारत का बटवारा नहीं होगा। इसे नेहरू और पटेल ने नहीं माना।

सोशलिस्ट पार्टी की नेता कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने इतिहास पर अपने साक्ष्य की रिकार्डिंग में कहा था कि जवाहरलाल नेहरू और वल्लभ भाई पटेल वृद्ध हो गये थे। वे अपने जीवन की गोधूलि की बेला पर सत्तासुख भोगने के लोभ का संवरण नहीं कर पाये। यदि गांधीजी के प्रयासों की वजह से कुछ और देर हो जाती तो भी स्वतंत्रता तो साल भर बाद मिल ही जाती। किन्तु नेहरू और पटेल बहुत जल्दी में थे। जिन्ना के साथ सौदा हो गया। भारत बट गया। डा. राममनोहर लोहिया ने भी अपनी पुस्तक भारत के ”विभाजन के अपराधी“ में इसी तथ्य को उज़ागर किया है।

Ramkrishna Vajpei

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