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Water Crisis : जल-संकट चुनाव जीतने का नहीं, समाधान का माध्यम बने

Water Crisis : देश के कई भागों में भीषण गर्मी पड़ रही है, जैसे-जैसे गर्मी प्रचंड होती जा रही है, जल संकट की खबरें भी डराने लगी है। राजस्थान, दिल्ली, कर्नाटक आदि प्रांतों में पानी के लिये त्राहि-त्राहि मची है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 24 May 2024 8:31 PM IST (Updated on: 24 May 2024 8:33 PM IST)
Water Crisis : जल-संकट चुनाव जीतने का नहीं, समाधान का माध्यम बने
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Water Crisis (Pic - Social Media)

Water Crisis : देश के कई भागों में भीषण गर्मी पड़ रही है, जैसे-जैसे गर्मी प्रचंड होती जा रही है, जल संकट की खबरें भी डराने लगी है। राजस्थान, दिल्ली, कर्नाटक आदि प्रांतों में पानी के लिये त्राहि-त्राहि मची है। मध्यप्रदेश के छतरपुर ज़िले महर-खुवा गांव में जल-संकट की तस्वीरें भयावह एवं डराने वाली है। इस गांव में लगभग 100 आदिवासी परिवार रहते हैं, जिनके पास अब इतना भी पानी नहीं बचा है कि ये दिन में दो वक्त का खाना बना सकें और अपनी प्यास बुझा सकें। ऐसे हजारों गांव हैं, जहां पानी के अभाव में जीवन संकट में हैं। भारत अपने इतिहास के सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। लोकसभा चुनाव अन्तिम चरण की ओर अग्रसर है, आज हमारे उम्मीदवार मुफ्त बिजली और पानी देने का वादा करके चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन भारत में जिस तरह पानी का संकट गंभीर हो रहा है, उससे उनकी कथनी और करनी की असमानता ही बार-बार उजागर होती है। जल-संकट चरम पराकाष्ठा पर है, एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब पैसा देकर भी पानी खरीदना मुश्किल हो जाएगा। जल-संकट चुनाव जीतने एवं राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा तो है, लेकिन समाधान का नहीं। जल संकट ने राजनीतिक रंग तो ले लिया है, विभिन्न राजनीतिक दल एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं और पिस रहा आम आदमी। पैसे वालों के लिए पानी इतनी बड़ी समस्या नहीं है लेकिन जिन लोगों के पास पैसों की किल्लत है, वे पानी की किल्लत से भी जूझ रहे हैं क्योंकि टैंकर का पानी महंगा पड़ रहा है।

वास्तव में लगातार बढ़ती गर्मी के कारण जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है। इसके गंभीर परिणामों के चलते राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पानी की कमी ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। देश का आईटी हब बेंगलुरु गंभीर जल संकट से दो-चार है। जिसका असर न केवल कृषि गतिविधियों पर पड़ रहा है बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। केंद्रीय जल आयोग के नवीनतम आंकड़े भारत में बढ़ते जल संकट की गंभीरता को ही दर्शाते हैं। आंकड़े देश भर के जलाशयों के स्तर में आई चिंताजनक गिरावट की तस्वीर उकेरते हैं। देश में प्रमुख जलाशयों में उपलब्ध पानी में उनकी भंडारण क्षमता के अनुपात में तीस प्रतिशत की गिरावट आई है। जो हाल के वर्षों की तुलना में बड़ी गिरावट है। जो सूखे जैसी स्थिति की ओर इशारा करती है। महर-खुवा गांव की ही तरह अलवर जिले के कई गांव में लोग किसी एक मौसम में नहीं, बल्कि 12 महीनें भीषण जल संकट का सामना कर रहें है। इन गांवो में पानी का स्त्रोत है ही नहीं। इन इलाकों में पानी की इतनी कमी है कि लोग उसे अपने घरों में टैंकर में छिपाकर और ताला लगाकर सुरक्षित रखने लगे हैं।

Water Crisis (Pic - Social Media)

भारत के गांवों में रहनेवाले करीब 20 करोड़ परिवारों के घरों में नल नहीं है। इन परिवारों की औरतें पैदल चलकर, घंटों लाइन में लगकर पानी इकट्ठा करती हैं। इसी चुनौती से निपटने के लिए मोदी सरकार ने साल 2019 में हर घर में नल से पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन की घोषणा की। सरकार का दावा है कि अब तक 10 करोड़ घरों में नल लग गए हैं। लेकिन अभी हजारों गांवों में जल-संकट एक बड़ी समस्या बनी हुई है। एक नागरिक के रूप में हम आत्ममंथन करें कि बढ़ते जल-संकट के समाधान की दिशा में हमने क्या कदम उठाये। क्या पानी की फिजूल खर्ची को कम करने का कोई संकल्प लिया? गर्मी के आने पर हम हाय-हाय तो करने लगते हैं, लेकिन कभी हमने विचार किया कि हम इस स्थिति को दूर करने के लिये क्या योगदान देते हैं? क्या हम पौधा-रोपण की ईमानदार कोशिश करते हैं? हम जल के दुरुपयोग को रोकने का प्रयास करते हैं? क्या वर्षा जल सहेजने का प्रयास करते हैं ताकि तापमान कम करने व भूगर्भीय जल के संरक्षण में मदद मिले?

सच कहें तो हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के अनुरूप जैसी जीवन शैली विकसित की थी, वह हमें कुदरत के चरम से बचाती थी। राजस्थान में जल-संकट की संभावनाओं को देखते हुए आम नागरिक खुद के स्तर पर व्यापक प्रयत्न करता है। रेगिस्तान से जुड़े अनेक गांवों एवं शहरों में बने या बनने वाले मकानों में कुआ जरूर होता है, जहां बरसात के पानी को एकत्र किया जाता है, जो संकट के समय काम आता है। इसलिये गाँव के स्तर पर लोगों के द्वारा बरसात के पानी को इकट्ठा करने की शुरुआत करनी चाहिये। उचित रख-रखाव के साथ छोटे या बड़े तालाबों को बनाने के द्वारा बरसात के पानी को बचाया जा सकता है। हम महसूस करें कि बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों में बढ़ता दबाव भी तापमान की वृद्धि एवं ंजल-संकट का कारण है। बड़ी विकास परियोजनाओं व खनन के लिये जिस तरह जंगलों को उजाड़ा गया, उसका खमियाजा हमें और आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा। विलासिता के साधनों, वातानुकूलन के मोह, वाटर-पार्कों एवं होटलों में पानी के अपव्यय को रोकने के लिये जन-चेतना जागृत करने की अपेक्षा है।

Water Crisis (Pic - Social Media)

हमारे पुरखों ने मौसम अनुकूल खानपान, परंपरागत पेय-पदार्थों के सेवन तथा मौसम अनुकूल जीवन शैली के साथ-साथ जल-संरक्षण का ऐसा ज्ञान दिया, जो हमें मौसम के चरम में सुरक्षित रख सकता है। एक व्यक्ति के रूप में हम बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे जल-संकट से खुद व समाज को सुरक्षित कर सकते हैं। सरकार व समाज मिलकर जल-संकट का मुकाबला कर सकते हैं। भारत में जल-संकट की समस्या से निपटने के लिये प्राचीन समय से जो प्रयत्न किये गये है, वे दुनिया के लिये मार्गदर्शक हैं। देश के सात राज्यों के 8220 ग्राम पंचायतों में भूजल प्रबंधनों के लिए अटल भूजल योजना चल रही है। स्थानीय समुदायों के नेतृत्व में चलने वाला यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। साथ ही, नल से जल, नदियों की सफाई, अतिक्रमण हटाने जैसे प्रयास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उचित ही रेखांकित किया कि सभी राज्यों को मिलकर काम करना होगा तथा जल संरक्षण एवं उपयोग किये गये पानी को फिर से इस्तेमाल में लाने के उपाय करने होंगे। हमारे यहां जल बचाने के मुख्य साधन है नदी, ताल एवं कूप। इन्हें अपनाओं, रक्षा करो, अभय दो, इन्हें मरुस्थल के हवाले न करो। अन्तिम समय यही तुम्हारे जीवन और जीवनी को बचायेंगे।

धरती के क्षेत्रफल का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल से भरा हुआ है। परंतु, पीने योग्य जल मात्र तीन प्रतिशत है। इसमें से भी मात्र एक प्रतिशत मीठे जल का ही वास्तव में हम उपयोग कर पाते हैं। 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा। स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए डाटा में दर्शाया गया है कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है। नीति आयोग ने कहा है, ‘अभी 60 करोड़ भारतीय गंभीर से गंभीरतम जल संकट का सामना कर रहे हैं और दो लाख लोग स्वच्छ पानी तक पर्याप्त पहुंच न होने के चलते हर साल अपनी जान गंवा देते हैं।’ इन जटिल एवं विकराल स्थितियों एवं डरावने तथ्यों के बावजूद हम पानी का इस्तेमाल करते हुए पानी की बचत के बारे में जरा भी नहीं सोचते, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश जगहों पर जल संकट की स्थिति पैदा हो चुकी है।



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Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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