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Women Power: नारी शक्ति के नए युग का स्वागत

Women Power: ऐसा कहा जाता है, सरलता में ही सुंदरता है, और यही स्थिति इस बात में दिखाई देती है कि केंद्र और राज्य स्तर पर प्रतिनिधि संस्थानों में महिलाओं की उचित भागीदारी निर्धारित करने वाले महिला आरक्षण विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रूप में लागू होते हुए देखने में इस देश की महिलाओं ने 27 वर्षों तक इंतजार किया है।

Arjun Ram Meghwal
Published on: 16 Oct 2023 5:36 PM IST (Updated on: 16 Oct 2023 6:08 PM IST)
Welcome to the new era of women power
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नारी शक्ति के नए युग का स्वागत: Photo- Social Media

Women Power: लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी उल्लेखनीय बदलाव के लिए सर्वसम्मति से लिया गया निर्णय विशेष महत्व रखता है। यह समावेशी बदलाव लाने की सामूहिक भावना को दर्शाता है। हाल ही में भारत ऐसे ऐतिहासिक निर्णयों का साक्षी बना है जिनकी गूंज विश्व भर में सुनाई दे रही है, इनमें से एक है भारत की अध्यक्षता में आयोजित किए गए G-20 शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य देशों द्वारा दिल्ली घोषणा पत्र को सर्वसम्मति से स्वीकार करना तथा दूसरा है नारी शक्ति वंदन अधिनियम का पारित होना। एक बार फिर, जबकि वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य अनेक संदर्भों में भारी उथल-पुथल का सामना कर रहा है, उसी दौर में लोकतंत्र की गौरवमयी जननी भारत के मुकुट में एक और रत्न जुड़ गया है।

राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भागीदारी

नए संसद भवन के पहले विधायी एजेंडे ने यह माहौल बना दिया है कि महिलाओं के नेतृत्व में राष्ट्र की विकास यात्रा को और अधिक तेज गति प्रदान की जा सकती है। महिलाओं द्वारा राष्ट्र के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लंबे समय से की जा रही मांग को पूरा करते हुए मोदी सरकार ने संकल्प को सिद्धि में बदलने के लिए प्रतिबद्ध होकर नारी शक्ति वंदन विधेयक को संसद में पारित कराया है।

Photo- Social Media

ऐसा कहा जाता है, सरलता में ही सुंदरता है, और यही स्थिति इस बात में दिखाई देती है कि केंद्र और राज्य स्तर पर प्रतिनिधि संस्थानों में महिलाओं की उचित भागीदारी निर्धारित करने वाले महिला आरक्षण विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रूप में लागू होते हुए देखने में इस देश की महिलाओं ने 27 वर्षों तक इंतजार किया है। बहुत ही सरल रूप में हम यह कह सकते हैं कि नारी शक्ति जो आधी आबादी का गठन करती है, की लोकतांत्रिक प्रतिनिधि संस्थानों में हिस्सेदारी न्यूनतम थी और यह स्थिति प्राकृतिक नियम के विरुद्ध थी। बाध्यकारी सामाजिक मान्यताओं ने निर्णय की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को सीमित कर दिया तथा समाज द्वारा लिए गए निर्णयों का अनुपालन करने के लिए वह काफी हद तक बाध्य कर दी गईं।

हर क्षेत्र में देश का गौरव बढ़ा रही हैं महिलाएं

इन चुनौतियों के बीच, इस दृष्टिकोण के विरोध में अनेक अपवाद सामने आए, महिलाएं अपने पर थोपी गईं बाध्यकारी वर्जनाओं से बाहर निकलीं तथा आज के समय में महिलाओं ने हर क्षेत्र में देश को गौरवान्वित किया है। अब मोदी सरकार ने इस नैतिक कर्तव्य को सम्मानपूर्वक प्राथमिकता दी है तथा शीर्ष निर्णय कर्ता के रूप में महिलाओं की भूमिका को मान्यता देकर एक ऐतिहासिक गलती को दुरुस्त करने की दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है। विधायी क्षेत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम द्वारा प्रस्तावित लैंगिक न्याय महिलाओं के सम्मान को समग्र रूप में बल प्रदान करेगा तथा संतुलित नीति निर्माण के लिए समुचित परिस्थिति सृजित होगी।

यह एक विडंबना परंतु सत्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महिलाओं को समान मतदान का अधिकार देने में 144 साल लग गए। ब्रिटेन में महिलाओं को मताधिकार उनके द्वारा दृढ़ निश्चय पूर्वक दशकों तक मताधिकार की एक बड़ी लड़ाई लड़ने तथा एक विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में दिया गया। हमारे पूर्वज दूरदर्शी थे और उन्होंने आजादी के तुरंत बाद महिलाओं के लिए मतदान का अधिकार सुनिश्चित किया। अब देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष पूरे होने पर मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के युग को चिह्नित करते हुए भारत ने महिलाओं के लिए मताधिकार सुनिश्चित करने से आगे बढ़ते हुए उनके लिए संसद और विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व का अधिकार भी सुनिश्चित किया है।

बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने कहा था

पूज्य बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में 25 नवंबर 1949 को दिए गए अपने ऐतिहासिक भाषण में बोलते हुए विशेष रूप से यह पूछा था कि कब तक हम विरोधाभासों का यह जीवन जीते रहेंगे। इस अवसर पर उन्होंने देश को सामाजिक तथा आर्थिक असमानताओं के प्रति आगाह किया था। पिछले 9 वर्षों के दौरान मोदी सरकार द्वारा देश के निर्धन वर्ग के लोगों तथा आम जनता के कल्याण को ध्यान में रखकर लागू की जा रही नीतियों से उन विरोधाभासों को समाप्त किया जा रहा है। इस बात का यह प्रमाण है कि इस अवधि के दौरान देश के 13.5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर आ गये हैं। ऐतिहासिक नारी शक्ति वंदन अधिनियम एक व्यक्ति, एक वोट तथा एक मूल्य की भावना को साकार करने की दिशा में उठाया गया एक और कदम है।

एक अन्य दृष्टिकोण के आधार पर भारतीय दार्शनिक मूल्यों से हमें यह ज्ञात होता है कि स्त्री और पुरुष गुणों का सही संतुलन आंतरिक शांति, सद्भाव एवं व्यक्तिगत संतुष्टि प्रदान करके आत्म-साक्षात्कार की स्थिति उत्पन्न करता है। भौतिक दुनिया में, यही स्थिति सामाजिक ताने-बाने को मजबूत कर सकती है तथा इस धरती को मानव जाति के रहने के लिए एक सुंदर स्थान बनाने की दिशा में हमारे शेष लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति तथा मानवता के कल्याण के लिए महिलाओं में मौजूद उनकी ईश्वर प्रदत्त क्षमता का कितना उपयोग कर सकते हैं। महिलाओं में मौजूद दृढ़ता, रचनात्मकता, त्याग, ममता, करूणा, दया, समर्पण तथा विश्वास जैसे सहज गुण उन्हें नेतृत्व करने की विशिष्ट क्षमता प्रदान करते हैं तथा इसके लिए उन्हें शीर्ष प्रबंधन स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों से नेतृत्व पाठ्यक्रम प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता नहीं है। बस आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें उनका उचित स्थान दिया जाए तथा ऐसा करने मात्र से ही उनके क्षमता निर्माण को व्यापक बल मिलेगा तथा वे दूसरों द्वारा अनुकरण के लिए एक आदर्श मॉडल भी बनेंगी।

Photo- Social Media

महिला आरक्षण

संविधान (128वां संशोधन) अधिनियम मोदी सरकार के लिए कोई राजनीतिक कदम नहीं है, बल्कि यह विश्वास का प्रतीक है। जुलाई 2003 में, भाजपा ने रायपुर में आयोजित की गई राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की बैठक में संसद तथा राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण का एक प्रस्ताव पारित किया था। बाद में पार्टी द्वारा संगठन स्तर पर इस प्रयास को अमल में लाया गया तथा इसे अपने घोषणा पत्र में भी शामिल किया गया। अब यह पूरे देश के लिए बदलाव का एक माध्यम बन गया है। संसद का विशेष सत्र बुलाना तथा सर्वसम्मति-आधारित निर्णय के लिए सभी राजनीतिक दलों को राजी करना एक कठिन कार्य था, जिसे सरकार ने इस विषय की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए काफी सावधानीपूर्वक किया है। पहले इस नेक काम का विरोध करने वाले कुछ राजनीतिक दलों का इस विधेयक के लिए सहमत होना उनकी इच्छा से नहीं हुआ है बल्कि ऐसा करना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। पुराना संसद भवन संविधान निर्माण की प्रक्रिया तथा अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण का साक्षी रहा है और अब संसद का यह नया मंदिर आज लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाने के लिए हमारे जीवंत संविधान की छत्रछाया में सत्ता में महिलाओं की उचित भागीदारी का साक्षी बन रहा है।

भारत की अध्यक्षता में हाल में संपन्न G-20 देशों के शिखर सम्मेलन ने साबित कर दिया है कि वैश्विक चुनौतियों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए भारत काफी मायने रखता है। भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कगार पर है तथा इसके साथ ही नारी शक्ति वंदन अधिनियम लागू होने पर लोक सभा एवं राज्यों की विधानसभा में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का अनुपात वर्तमान के 15 प्रतिशत से बढ़कर 33 प्रतिशत हो जाएगा तथा इस प्रकार हमारे देश के लोकतांत्रिक संस्थानों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत वैश्विक औसत (26.7%) को पार कर जाएगा तथा दुनिया के कई विकसित राष्ट्रों की तुलना में काफी अधिक होगा। ऐसे अनेक ठोस उपायों को लागू करने से 21वीं सदी के दौरान देश को महिलाओं के नेतृत्व में प्रगति के पथ पर अग्रसर करने के संदर्भ में राष्ट्र के नजरिए में एक नया बदलाव आएगा।

बदलाव की आहट

नारी शक्ति वंदन अधिनियम, के प्रावधानों को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत पूर्व अपेक्षित संवैधानिक बाध्यता यह है कि महिलाओं के नेतृत्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए पहले जनगणना तथा परिसीमन से संबंधित कार्य पूरे किए जाएं। दृढ़संकल्पित मोदी सरकार संविधान की इस भावना के अनुरूप इस अधिनियम को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है। तथापि, बदलाव की आहट अभी से पूरे देश में महसूस की जाने लगी है। वर्तमान समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता में तेजी से बदलाव आ रहा है। आइए ! हम सब मिलकर विकसित भारत के निर्माण के लिए नारी शक्ति नेतृत्व के इस उज्ज्वल युग का स्वागत करें।

(लेखक केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार तथा बीकानेर से लोकसभा के सांसद हैं।)



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Shashi kant gautam

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