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2021 से क्या चाहता है दिल?
दुनिया के स्तर पर एक राष्ट्रीय हसरत तो फिर जगेगी कि भारत के संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में अभी मिली अल्पकालीन सदस्यता स्थायी बन जाये। आखिर हम अब चौथी बड़ी आर्थिक शक्ति हैं। आबादी में दूसरे नम्बर पर।
के. विक्रम राव
किस्म-किस्म की अपेक्षायें होंगी लोगों की। फिलहाल खाका तो सभी ने खींचा होगा। आम आशा यही होगी कि नया साल बीते वर्ष जैसा तो कतई न हो। बड़ा दु:ख दिया, दर्द दिया साल भर। तो पहली चाहत यही है कि सबका स्वास्थ्य चंगा रहे। चीन के विषाणु का सर्वनाश हो। वैश्विक स्तर पर युद्ध के बाद इतनी जानलेवा यही महामारी ही रही। लिस्ट में अगला नम्बर आयेगा कि तथागत बोधिसत्व पड़ोसी देश को बुद्धि दे कि वह अपने विस्तारवादी इरादे तज दे। पुराने रजवाड़ों की भांति जमीन कब्जियाना बंद करे वर्ना। इससे अपार हानि सभी की होगी। भारत आज 2001 में है, छह दशक पूर्व (अक्टूबर 1962) वाला नहीं। लाशें गिनना कठिन हो जायेगा।
दुनिया के स्तर पर एक राष्ट्रीय हसरत तो फिर जगेगी
दुनिया के स्तर पर एक राष्ट्रीय हसरत तो फिर जगेगी कि भारत के संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में अभी मिली अल्पकालीन सदस्यता स्थायी बन जाये। आखिर हम अब चौथी बड़ी आर्थिक शक्ति हैं। आबादी में दूसरे नम्बर पर।
हमारे एक टुकड़े की चर्चा भी हो जाये। पाकिस्तान से अभिप्राय है। बीतते साल के आखिरी दिन अच्छा आगाज रहा कि पड़ोसी इस्लामी जम्हूरियाये पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू मंदिर के ध्वस्त किये जाने पर स्वत: संज्ञान लेकर पुलिसिया कार्रवाही के आदेश दिये। पश्चिमोत्तर राज्य खैबर पख्तूनवा के करक नामक जनपद में स्थित स्वामी परमहंस जी महाराज की समाधि और पूजास्थल पर कट्टर मुसलमानों ने हथौड़ा और बुलडोजर चला दिया था।
पाकिस्तान हिन्दू परिषद के अध्यक्ष श्री रमेश कुमार जी ने विरोध भी दर्ज कराया। मगर त्वरित कार्रवाही का निर्णय प्रधान न्यायाधीश मियां गुलजार अहमद का था कि दोषी दण्डित हो तथा शासन इमारत पुनर्निर्माण कराये। इस घटना से आशा बंधती है कि इस वर्ष पाकिस्तान में अल्पसंख्यक किंचित सुरक्षित रहेंगे।
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नये वर्ष में इस्राइल से भारत की दोस्ती बढ़ेगी
आसार है कि नये वर्ष में इस्राइल से भारत की दोस्ती बढ़ेगी। अब तो अरब राष्ट्रों ने इस यहूदी राष्ट्र से अपनी पुश्तैनी शत्रुता समाप्त कर दी। भारत सरकार विगत सात दशकों से मुस्लिम मतदाताओं के डर से इस्राइल से किनारा करती थी। इस सुखद परिवर्तन से रेगिस्तानी क्षेत्रों को उपजाऊ बनाया जा सकता हैं। इस्राइल ने यह कर दिखाया है।
विषमता के कारण विघटनकारी तत्व फलते रहते है
इसी बीच संकेत तो काफी मिले है कि सत्तारुढ़ भाजपा भी विभिन्न समस्याओं पर अपना नजरिया उदार बना ही है। समन्वयवादी समाज की रचना से भौगोलिक खतरा धूमिल हो जाता है। यह इस कारणवश भी गमनीय है क्योंकि सामाजिक तनाव से विघटनकारी शक्तियों को बल मिलता है। युगोस्लाविया का उदाहरण है नेता मार्शल जोसेफ ब्राज टिटो ने अपार मतभिन्न वाले छोटे मोटे प्रदेशों को एक सूत्र में पिरोकर एक बहुतावादी राष्ट्र गठित किया था। हालांकि उनके निधन के शीघ्र बाद वोस्निया के इस्लामी आतंकवादियों ने, और बाद में क्रोशिया, हर्जेगोवनिया आदि ने केन्द्र से विद्रोह कर अलग राष्ट्र बना लिया। भारत में ऐसी आशंका हमेशा रहती हैं। इतनी अधिक भाषायें, जातियां, धार्मिक जीवनशैली की विषमता के कारण विघटनकारी तत्व फलते रहते है।
मोदी शासन के समक्ष दुरुह समस्या आतंकवाद है। दो प्रधानमंत्री इसी के शिकार हुये। अर्थात देश को आंतरिक तथा बाह्य हिंसा का खात्मा करने हेतु प्रयास तो तेज करने होंगे।
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देश की अन्दरूनी परिस्थिति भी सुधरे
देश की अन्दरूनी परिस्थिति भी सुधरे, यह अपेक्षा रहेगी। किसान आन्दोलन पर पूरे तौर पर पंजाब के प्रदर्शनकारियों का कब्जा हो जाने से इसके राजनीतिकरण की आशंका हुयी है। अब कनाडा के प्रधानमंत्री त्रूंदो का क्या वास्ता इस किसान प्रदर्शन से? कनाडा राष्ट्रमंडल का सदस्य—देश है। किसी अन्य सदस्य-राष्ट्र के अन्दरूनी मामले में दखल देना वर्जित है।
कनाडा में भारतमूल के सिख ही खालिस्तान के समर्थक रहे है। अत: शक की सुई उधर ही संकेत करती है। फिर महात्मा गांधी की प्रतिमा वाशिंगटन में विकृत करने से यह संदेह पुख्ता हो जाता हैं। गुलाम भारत में प्रथम किसान संघर्ष (चम्पारण नील कृषकों का) महात्मा गांधी ने चलाया था। बापू से बड़ा किसान हितैषी कौन होगा?
अत: नये वर्ष में इसे मनौती रहेगी कि विविधता में मौलिक एकता संजोकर भारत गणराज्य एक ही इकाई बना रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
(यह लेखक के निजी विचार हैं)