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Rashtriya Swayamsevak: जब संघ प्रमुख के सामने से आक्रोशित भीड़ पश्चाताप करते हुए लौट गयी
Rashtriya Swayamsevak Sangh: संघ की कोशिश होती है कि आज का विरोधी कल हमारा बने। कल का परसों हमारा सदस्य और परसों का सदस्य हमारा सक्रिय कार्यकर्ता बने।
Rashtriya Swayamsevak Sangh: बात महात्मा गांधी जी हत्या के समय की है। महाराष्ट्र में चित पावन ब्राह्मण व देशभर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक निशाना बनाये जा रहे थे। उसी समय नागपुर में संघ कार्यालय पर हमले के लिए भीड़ इकट्ठी होने लगी। उस समय गुरु गोलवलकर जी थे। उन्हें स्वयंसेवकों ने यह बात बताई। उन्होंने स्वयंसेवकों से कहा आप सब लोग हमारी सुरक्षा से हट जायें। हमने तो अपना जीवन राष्ट्र को दे दिया है। अगर वही राष्ट्र हमारा जीवन लेना चाहता है तो ले ले। स्वयंसेवकों को यह समझाते हुए वह स्वयं संघ कार्यालय के गेट की ओर बढ़े। वह अकेले गेट पर खड़े हो गये। वहाँ भी उन्होंने आक्रोशित भीड़ के सामने यही दोहराया- “हमने तो अपना जीवन राष्ट्र को दे दिया है। अगर वही राष्ट्र हमारा जीवन लेना चाहता है तो ले ले।” वह ख़ामोश खड़े थे और भीड़ ख़ामोशी ओढ़े वापस जा रही थी। सब के चेहरे पर पश्चाताप झलक रहा था।
संघ की कोशिश होती है कि आज का विरोधी कल हमारा बने। कल का परसों हमारा सदस्य और परसों का सदस्य हमारा सक्रिय कार्यकर्ता बने। संघ के विस्तार का पहला कदम है नवीन संपर्क। संघ की मान्यता है कि संभावनाओं के तहत संपूर्ण समाज के सभी लोग स्वयंसेवक हैं। इनमें कुछ आज के हैं। कुछ आने वाले कल के।
संघ ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को बुलाकर यह बताना चाहा कि उसका विरोध सिर्फ़ गांधी परिवार करता है। पूरी कांग्रेस पार्टी नहीं। प्रणव ने संघ के दीक्षांत समारोह में गांधी नेहरू के दर्शन का पाठ पढ़ाया। कांग्रेस का डर चोर की दाढ़ी में तिनका सरीखा था। क्योंकि दो बार इनको नज़रअंदाज़ करके उनसे जूनियर को पीएम बनाया गया। प्रणव जी ने इसका ज़िक्र अपनी किताब में किया है। सोनिया राहुल की मौजूदगी में कहा भी है।
संघ को नागवार गुजरने वाली सेकुलरिज्म को आस्था बताना था। यह भी कहा कि भारत में संविधान के अनुरूप देश भक्ति ही सच्ची देश भक्ति है। वे यह कहना नहीं भूले कि धर्म, नफ़रत व भेदभाव के आधार पर राष्ट्र की पहचान गढ़ने की कोशिश में हमारे राष्ट्र की मूल भावना ही कमजोर होगी।
हमें प्रबुद्ध होकर भारत को अपने अतीत के गौरव के साथ आधुनिकतावाद विचारों से युक्त करना होगा। वास्तव में हमें सोचना चाहिए कि हमारी परंपरा और संस्कृति विश्व को क्या दे सकती है।
उन्होंने हिंदुत्व की संस्कृति की पुरज़ोर वकालत करने वालों के बीच कंपोज़िट कलक्टर यानी मिलीजुली संस्कृति की बात कही। उनका भाषण उदार लोकतांत्रिक , प्रोग्रेसिव , संविधान सम्मत, मानवतावादी भारत की बात करता है।
आमने सामने संघ परिवार व गांधी नेहरू परिवार
प्रणव ने कबीर की भूमिका निभाई। उन्होंने कांग्रेस से बताया कि संघ से घृणा ठीक नहीं। संघ को बताया कि नेहरू गांधी परिवार को टार्गेट करना ठीक नहीं है। मुखर्जी दादा ने नेहरू के नेशनिज्म की क्लास लगाई। संघ परिवार व गांधी नेहरू परिवार आमने सामने है।
गांधी, पटेल, अंबेडकर व कांग्रेस की राष्ट्रीयता। विवेकानंद से लेकर राम कृष्ण मिशन तक के विचारों को लगा। संघ उस राजनीति को साधने में लगा है जहां कांग्रेस नेहरू गांधी परिवार से अलग हो जाये।
भविष्य में कई राजनीतिक लकीर खींचने की क्या संभावना है। भाजपा गली गली की पार्टी कैसे बनेगी। भाजपा को उस कठघरे से संघ प्रणव के माध्यम से निकाल सका। जहां वह हिंदुत्व का चोंगा ओढ़े नज़र आये।
हिंदुत्व को सांप्रदायिकता के दायरे से बाहर निकाले यह संभव नहीं है, देश का हर तबका एक राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में भाजपा पहचान बनाना चाहती है।आज़ादी के पहले देश में जो मान्यता कांग्रेस की थी, आज़ादी के बाद वह भाजपा को मिलनी चाहिए। यह संघ का सपना है। हालाँकि भाजपा बहुमत में है। पर यह संघ के लिए तोष का सबब नहीं है।
कमला नेहरू के गुरू अखंडानंद थे। इनकी गुरू गोलवरकर से काफ़ी निकटता थी। स्वामी अखंडानंद राम कृष्ण मिशन से जुड़े थे।
( लेखक पत्रकार हैं ।)