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ये कहाँ जा रहे हम

अगर हम ज्ञान की, शिक्षा की अपनी पुरानी व गौरवशाली परंपरा को जीवित रखना चाहते हैं, तब हमें कोर्स पूरा करने, पगार पक्की करने और किसी भी तरह परीक्षा ले लेने से बचना चाहिए । ई क्लास, ई लर्निंग के इस दौर में हम जो रास्ता पकड़ेंगे वहीं भारत में शिक्षा की दशा और दिशा तय करेगा।

राम केवी
Published on: 19 May 2020 5:44 PM IST
ये कहाँ जा रहे हम
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योगेश मिश्र

हमारी यह आदत है, जब आग लगती है, तब कुआँ खोदते हैं। यदि कुआँ खोद न पायें, तो कुआँ खोजते हैं। पर आग रूकने वाली कहाँ। हम खोदते और खोजते रह जाते हैं । सब जलकर स्वाहा हो जाता है। फिर हमारी सरकारें, उनके नामचीन नुमाइंदे, राहत सामग्री के साथ अवतरित होते हैं। फ़ोटो सेशन होता है। याचक और दानवीर कर्ण की मुद्रा की दूसरे दिन अख़बारों में और तत्क्षण सोशल मीडिया में फ़ोटो देख दोनों ही फूले नहीं समाते। एक को संकट में कुछ भी पा जाने का अहसास और दूसरे को जनता का पैसा जनता को देने के बाद दानवीर होने का अहसास।

इन दिनों कोरोना काल में भी कई क्षेत्रों में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। हम यहाँ शिक्षा के क्षेत्र की पड़ताल करेंगे। हम यह कहते नहीं थकते कि हमारी सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी है। यह सच भी है। हम जगद्गुरु रहे हैं। हमें जगद्गुरु बनना है। यह भी सच है कि नालंदा, तक्षशिला सरीखे अपने समय के संस्थान हमारे ही गौरव रहे हैं। कुलपति की परंपरा हमारी है। महर्षि भारद्वाज पहले कुलपति थे।

ई-लर्निंग का अंधानुकरण

कोरोना काल में हम अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए कुएँ खोद रहे हैं, या फिर कुएँ खोज रहे हैं। वह भी भारत की ज़मीन पर नहीं पश्चिम की ज़मीन पर। हमने इसके लिए वर्चुअल क्लास रूम, ई लर्निंग सरीखे आयातित तरीक़ों पर अमल शुरू कर दिया है।

हद तो यह है कि यह अनुप्रयोग बेसिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा व तकनीकी शिक्षा यानी शिक्षा के हर क्षेत्र में में बेधड़क हो रहा है। इस पर इतराया भी ज़ाया जा रहा है। बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को खाना, कपड़ा देने और मुफ्त पढ़ाने की बात कह कर स्कूल लाया जाता है। पर हम इन्हें ऑन लाइन एजुकेशन दे रहे हैं। यह फ़ैसला तुग़लक़ाबाद से दिल्ली फिर दिल्ली से तुग़लक़ाबाद से ज़्यादा समझदारी भरा है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने आज़ादी के बाद स्कूलों और विश्वविद्यालयों के बच्चों को नैतिक मूल्य पढ़ाना अनिवार्य करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि यदि हम अपनी शिक्षा से आध्यात्मिक प्रशिक्षण को निकाल देंगे तो ऐतिहासिक विकास के विरुद्ध काम करेंगे।

बुनियादी शिक्षा

1930 में बुनियादी शिक्षा को लेकर वर्धा में बैठक के बाद गांधी जी ने जो पुस्तिका लिखी। उसमें कहा कि सच्ची शिक्षा वह है, जिसके द्वारा बालकों का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास हो सके। पर कोरोना काल के दौर में टेक्नालॉजिकल के मार्फ़त शिक्षा की ओट लेकर नैतिक शिक्षा का लोप किया जाने लगा है।

ऑनलाइन शिक्षण, ओपन शिक्षा के माध्यम से सस्ती और ज़्यादा छात्रों को जोड़ने की रणनीति पर काम हो रहा है। जूम, गूगल क्लासरूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम, स्काइप जैसे प्लेटफ़ॉर्म के साथ साथ यूट्यूब, वाट्सएप पर ऑनलाइन पढ़ाई का दौर जारी है।

1.2 अरब बच्चे क्लासरूम के बाहर

कहा जा रहा है कि कोविड-19 के कारण दुनिया भर में 1.2 अरब बच्चे क्लासरूम से बाहर हैं। लेकिन पढ़ाई रुकेगी नहीं। ई लर्निंग तेजी से आगे बढ़ेगी। ऑनलाइन एजुकेशन में विश्व भर में निवेश 2019 में 18.66 बिलियन डालर तक पहुँच गया था। 2025 तक ऑनलाइन एजुकेशन का बाजार 350 बिलियन डालर हो जाने का अनुमान है।

भारत में वायरलेस और वायर्ड इंटरनेट के उपभोक्ता 68 करोड़ 76 लाख हैं। वायरलेस सब्सक्राइबर 66 करोड़ 53 लाख हैं। इसमें ग्रामीण सब्सक्राइबर 24 करोड़ 76 लाख और शहरी 20 करोड़ 50 लाख हैं।

भारत में 5 से 11 वर्ष की उम्र के 7 करोड़ 10 लाख बच्चे ऑनलाइन सामाग्री का उपयोग करते हैं। सबसे ज्यादा 34 फीसदी उपयोगकर्ता 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग के हैं। स्मार्टफोन इस्तेमालकर्ताओं की संख्या 50 करोड़ से ज्यादा है।

रेडियो के विभिन्न प्लेटफार्म

भारत में ब्रॉडकास्ट रेडियो यानी एएम की पहुँच 99 फीसदी लोगों तक है। जबकि एफएम रेडियो की पहुँच 65 फीसदी लोगों तक है। 2018 में 35 शहरों में 47 नए रेडियो स्टेशन चालू किए गए। इनको मिला कर कुल रेडियो स्टेशनों की संख्या 386 हो गई है।

कम्युनिटी रेडियो की बात करें तो अकेले उत्तर प्रदेश में 37 ऐसे रेडियो स्टेशन हैं। कम्युनिटी रेडियो की सीमित दायरे में लोगों तक पहुँच हैं। मिसाल के तौर पर मुजफ्फरनगर में मंडी समिति का कम्युनिटी रेडियो किसानों और थोक व्यापारियों को उपज और मंडी संबंधी सूचनाओं से अपडेट रखता है।

भारत में डीटीएच यानी सैटेलाइट टीवी के उपभोक्ता 6 करोड़ 93 लाख हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में 17 करोड़ से ज्यादा टीवी सेट्स हैं।

भारत की बाइजू टॉप पर

ऑनलाइन शिक्षा में अमेरिका सबसे आगे है। एक सर्वे के अनुसार अमेरिका के करीब 60 लाख छात्रों ने कम से कम एक ऑनलाइन कोर्स में दाख़िला ले रखा है। 20 लाख छात्र उच्च शिक्षा में ऑनलाइन पढते हैं। चीन में 70 और साउथ कोरिया में 17 ऑनलाइन कालेज हैं।

ऑनलाइन एजुकेशन में आज के समय में टॉप कंपनी भारत की बाइजू है। बेंगलूरू स्थित यह कंपनी 2011 में अस्तित्व में आई थी। इस दौर में बाइजू ने अपने ऐप पर फ्री में लाइव क्लासेस की सुविधा दी । नतीजतन, तादाद 200 फीसदी बढ़ गई है।

चीनी सरकार ने महामारी के दौरान 25 करोड़ छात्रों को अपनी पढ़ाई ऑनलाइन प्लेटफार्म पर जारी रखने का निर्देश दिया। नतीजतन, ‘टेंसेंट क्लासरूम’ का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यह शिक्षा के इतिहास में सबसे बड़ा ‘ऑनलाइन अभियान’ है। अकेले वुहान में 81 फीसदी स्टूडेंट ऑनलाइन क्लासेस अटेण्ड कर रहे हैं।

ई-शिक्षा की चुनौतियां

अगर सिर्फ इंटरनेट आधारित शिक्षा की बात करें तो उसमें चुनौतियाँ भी बहुत हैं। जहां अमीर देशों में कंप्यूटर और नेट की सुविधा घर घर है, वहीं गरीब देशों में इसकी भारी कमी है। स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे और आस्ट्रिया में 95 फीसदी छात्रों के पास कंप्यूटर है। जबकि गरीब देशों में केवल 34 फीसदी बच्चों के पास यह सुविधा है।

भारत में सिर्फ 11 फीसदी घरों में कंप्यूटर है। सिर्फ 8 फीसदी घर ऐसे हैं जिनके पास कंप्यूटर और नेट दोनों हैं। निर्धनतम 20 फीसदी घरों में मात्र 2.7 फीसदी के पास कंप्यूटर है। हमारे पास समस्या दलितों, पिछड़ों और अन्य निर्बल सामाजिक समूह को डिजिटल साक्षर करने की भी है।

कनेक्टिविटी भी बहुत बड़ी समस्या है। 53 फीसदी लोगों का कहना है कि उनको स्लो और बार बार नेट कटने की दिक्कत का सामना करना पड़ता है। बिजली भी बड़ी समस्या है। भारत में मात्र 47 फीसदी ग्रामीण घरों को 12 घंटे से ज्यादा बिजली मिल पाती है।

इसके अलावा ई लर्निंग कंटेन्ट और डिजिटल शिक्षकों की कमी की समस्या है जो ई लर्निंग में बड़ी बाधा हैं।

ऑनलाइन एजुकेशन में ये संभव नहीं है

भारतीय चिंतन परंपरा के हिसाब से हमारी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति और चरित्र निर्माण समाज कल्याण और ज्ञान का उत्तरोत्तर विकास है । जो ऑनलाइन एजुकेशन में संभव नहीं है। छात्र और शिक्षक के बीच में चरित्र निर्माण की भी एक निरंतर प्रक्रिया चलती रहती है । शिक्षक के आचरण का छात्र पर गहरा और गंभीर प्रभाव पड़ता है।

ऑनलाइन शिक्षण में विद्यार्थी ज्ञान हासिल कर लेगा। लेकिन उसका ज्ञान जगत, मनो जगत एकदम यांत्रिक होगा। हाँ, संभव है कि ऑनलाइन डिग्री रोज़गार पाने में कारगर हो। लेकिन यह मत भूलिए कि मल्टी टास्किंग के इस दौर में केवल किताबी और सैद्धांतिक ज्ञान ही ज़िंदगी की किसी कठिन घड़ी में आपको पार लगा सकता है। व्यवहारिक विज्ञान और सोशल स्किल भी जीवन के तमाम क्षणों में काम आते हैं। जो ई लर्निंग से संभव नहीं।

हम अगर शिक्षा को कोर्स पूरा करने का ज़रिया बनाना चाहते हैं तो वर्चुअल, ब्रिज और आन लाइन की दिशा में आगे बढ़ते हुए अपनी पीठ थपंथपाते रहें।लेकिन अगर हम ज्ञान की, शिक्षा की अपनी पुरानी व गौरवशाली परंपरा को जीवित रखना चाहते हैं, तब हमें कोर्स पूरा करने, पगार पक्की करने और किसी भी तरह परीक्षा ले लेने से बचना चाहिए । ई क्लास, ई लर्निंग के इस दौर में हम जो रास्ता पकड़ेंगे वहीं भारत में शिक्षा की दशा और दिशा तय करेगा।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)



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राम केवी

राम केवी

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