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Remove English Language: किसकी हिम्मत, जो अंग्रेजी को हटाए ?

सभी भाषाओं को अपनी नौकरानी बनाकर अंग्रेजी खुद महारानी बनी बैठी है। सरकारें चाहे कांग्रेस की हों, भाजपा की हों, जनता पार्टी की हों, समाजवादी पार्टी की हों, कम्युनिस्ट पार्टी की हों या प्रांतीय पार्टियों की हों, सभी आज तक अंग्रेजी की गुलामी करती रही हैं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 22 May 2022 9:50 AM IST (Updated on: 22 May 2022 9:55 AM IST)
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अंग्रेजी (फोटो-सोशल मीडिया)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए कई मुद्दे उठाए, जिसमें भाषा का मुद्दा प्रमुख था। राजभाषा हिंदी को लेकर पिछले दिनों दक्षिण में काफी विवाद छिड़ा था। मोदी ने यह तो बिल्कुल ठीक कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए लेकिन मोदी ने यह नहीं बताया कि पिछले 75 साल में बनी सभी सरकारें क्या देश की एक भी भाषा को उसका उचित सम्मान और स्थान दिला सकी हैं। मोदी सहित सभी प्रधानमंत्रियों ने अंग्रेजी के आगे अपने घुटने टेक रखे हैं।

सभी भाषाओं को अपनी नौकरानी बनाकर अंग्रेजी खुद महारानी बनी बैठी है। सरकारें चाहे कांग्रेस की हों, भाजपा की हों, जनता पार्टी की हों, समाजवादी पार्टी की हों, कम्युनिस्ट पार्टी की हों या प्रांतीय पार्टियों की हों, सभी आज तक अंग्रेजी की गुलामी करती रही हैं। उन समस्त लोकसभाओं और विधानसभाओं में कानून सदा अंग्रेजी में बनते रहे हैं, उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों के फैसले अंग्रेजी में होते रहे हैं, मंत्रिमंडल के सभी फैसले अंग्रेजी में होते रहे हैं और हमारी उच्च नौकरशाही अंग्रेजी की गुलामी में सबसे आगे बनी रहती है।

क्या अंग्रेजी के बिना कोई ऊँची सरकारी नौकरी किसी को मिल सकती है? जब मेरे मास्को, लंदन और न्यूयार्क के सहपाठी पहली बार भारत आते हैं, वे हमारे बाजारों के अंग्रेजी नामपटों को देखकर और दिल्ली में अंग्रेजी के इतने अखबारों को देखकर दंग रह जाते हैं।

वे कहते हैं कि किसी भी आजाद देश में हमने ऐसी सांस्कृतिक गुलामी नहीं देखी। भारत की शिक्षा और चिकित्सा में भी अंग्रेजी छाई हुई है। जब अब से लगभग 55-56 साल पहले मैंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग की थी तो भारत की संसद ठप्प हो गई थी।

आखिरकार मेरी विजय हुई। जवाहरलाल नेहरु विवि में सबसे पहली पीएच.डी. लेनेवालों में मेरा नाम था लेकिन आज तक भारत के कितने विश्वविद्यालयों में कितनी पीएच.डी. हिंदी माध्यम से हुई हैं? इसी प्रकार कई स्वास्थ्य मंत्रियों ने मुझसे वादा किया कि वे मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरु करवाएंगे लेकिन क्या आज तक वह शुरु हुई?

अदालत की कार्रवाई, वकालत और डाॅक्टरी देश में ठगी के सबसे बड़े धंधे इसीलिए बने हुए है कि उन्होंने जादू-टोने का रूप ले लिया है। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. राममनोहर लोहिया ने अंग्रेजी की इस गुलामी के दुष्परिणामों को बहुत अच्छी तरह रेखांकित किया था।

गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय और अटलजी तथा मुलायमसिंह, राजनारायण और मधु लिमये ने इस अभियान को जमकर चलाया था लेकिन आजकल के सभी नेता और सभी दल वोट और नोट के खेल में मदमस्त हो रहे हैं या भाषाई मुद्दे पर उनकी समझ इतनी सतही है कि इस मर्ज़ का असली इलाज उनकी अक्ल के परे है। उनके लिए मेरा एक ही मंत्र है- अंग्रेजी को मिटाओ मत लेकिन अंग्रेजी को हटाओ। अगर आप उसे हटा सके तो हिंदी एवं समस्त भारतीय भाषाएं तो अपने आप सम्मान पा जाएंगी।



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Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

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