Air Pollution : वायु प्रदूषण से होती लाखों मौतों के लिये कौन जिम्मेदार?

Air Pollution : कहते हैं जान है तो जहान है, लेकिन भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण जान और जहान दोनों ही खतरे में हैं। देश की हवा में घुलते प्रदूषण का ‘जहर’ अनेक बार खतरनाक स्थिति में पहुंच जाना चिन्ता का बड़ा कारण हैं।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 25 Jun 2024 11:06 AM GMT
Air Pollution : वायु प्रदूषण से होती लाखों मौतों के लिये कौन जिम्मेदार?
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Air Pollution : कहते हैं जान है तो जहान है, लेकिन भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण जान और जहान दोनों ही खतरे में हैं। देश की हवा में घुलते प्रदूषण का ‘जहर’ अनेक बार खतरनाक स्थिति में पहुंच जाना चिन्ता का बड़ा कारण हैं। प्रदूषण की अनेक बंदिशों एवं हिदायतों के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण की बात खोखली साबित हो रही है। यह कैसा समाज है जहां व्यक्ति के लिए पर्यावरण, अपना स्वास्थ्य या दूसरों की सुविधा-असुविधा का कोई अर्थ नहीं है।

जीवन-शैली ऐसी बन गयी है कि आदमी जीने के लिये सब कुछ करने लगा पर खुद जीने का अर्थ ही भूल गया, इस गंभीर होती स्थिति को यूनिसेफ और अमेरिका के स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ की साझेदारी में जारी रिपोर्ट ने बयां किया है, इस रिपोर्ट के आंकड़े परेशान एवं शर्मसार करने के साथ चिन्ता में डालने वाले हैं, जिसमें वर्ष 2021 में वायु प्रदूषण से 21 लाख भारतीयों के मरने की बात कही गई है। ज्यादा दुख की बात यह है कि मरने वालों में 1.69 लाख बच्चे हैं, जिन्होंने अभी दुनिया ठीक से देखी ही नहीं थी। निश्चय ही ये आंकड़े जहां व्यथित, चिन्तीत व परेशान करने वाले हैं। वहीं सरकार के नीति-नियंताओं के लिये यह शर्म का विषय होना चाहिए, लेकिन उन्हें शर्म आती ही कहा है? तनिक भी शर्म आती तो सरकारें एवं उनके कर्ता-धर्ता इस दिशा में गंभीर प्रयास करते। सरकार की नाकामयियां ही हैं कि जिन्दगी विषमताओं और विसंगतियों से घिरी होकर उसे कहीं से रोशनी की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है।

जानलेवा वायु प्रदूषण न केवल भारत के लिये बल्कि दुनिया के लिये एक गंभीर समस्या है। चीन में भी इसी कालखंड में 23 लाख लोग वायु प्रदूषण से मरे हैं। जहां तक पूरी दुनिया में इस वर्ष मरने वालों की कुल संख्या का प्रश्न है तो यह करीब 81 लाख बतायी जाती है। चिंता की बात यह है कि भारत व चीन में वायु प्रदूषण से मरने वालों की कुल संख्या के मामले में यह आंकड़ा वैश्विक स्तर पर 54 फीसदी है। जो हमारे तंत्र की विफलता, गरीबी और प्रदूषण नियंत्रण में शासन-प्रशासन की कोताही एवं लापरवाही को ही दर्शाता है। इसमें आम आदमी की लापरवाही भी कम नहीं है।


आम आदमी को पता ही नहीं होता है कि किन प्रमुख कारणों से वह प्रदूषण फैला रहा है और किस तरह वे इस जानलेवा प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहयोगी हो सकते हैं। प्रश्न है कि आम आदमी एवं उसकी जीवनशैली वायु प्रदूषण को इतना बेपरवाह होकर क्यों फैलाती है? क्यों आदमी मृत्यु से नहीं डर रहा है? क्यों भयभीत नहीं है? देश की जनता दुख, दर्द और संवेदनहीनता के जटिल दौर से रूबरू है, प्रदूषण जैसी समस्याएं नये-नये मुखौटे ओढ़कर डराती है, भयभीत करती है। विडम्बना तो यह है कि विभिन्न राज्यों की सरकारें इस विकट होती समस्या का हल निकालने की बजाय राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप करती है, जानबूझकर प्रदूषण फैलाती है ताकि एक-दूसरे की छीछालेदर कर सके। प्रदूषण के नाम पर भी कोरी राजनीति का होना दुर्भाग्यपूर्ण है।

दिल्ली सहित उत्तर भारत के ज्यादातर इलाकों में प्रदूषण का बेहद खतरनाक स्थिति में बना रहना चिन्ता में डालता है। हालत ये बनते हैं कि कभी-कभी सांस लेना मुश्किल हो जाता है और लोगों को घरों में ही रहने को मजबूर होना पड़ता है। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुरुग्राम में प्रदूषण का बड़ा कारण पड़ोसी राज्यों से आने वाला पराली का धुआं होता है। पराली के बाद पटाखों का धुआं भी बड़ी समस्या है, इसके अलावा सड़कों पर लगातार बढ़ते निजी वाहन, गुणवत्ता के ईंधन का उपयोग न होना, निर्माण कार्य खुले में होना, उद्योगों की घातक गैसों व धुएं का नियमन न होने एवं बढ़ता धूम्रपान जैसे अनेक कारण वायु प्रदूषण बढ़ाने वाले हैं। वहीं दूसरी ओर आवासीय कॉलोनियों व व्यावसायिक संस्थानों का विज्ञानसम्मत ढंग से निर्माण न हो पाना भी प्रदूषण बढ़ाने की एक वजह है। यह कैसी शासन-व्यवस्था है? यह कैसा अदालतों की अवमानना का मामला है? यह सभ्यता की निचली सीढ़ी है, जहां तनाव-ठहराव की स्थितियों के बीच हर व्यक्ति, शासन-प्रशासन प्रदूषण नियंत्रण के अपने दायित्वों से दूर होता जा रहा है।

यूनीसेफ की रिपोर्ट में वायु प्रदूषण से 1 लाख 69 हजार बच्चे जिनकी औसत आयु पांच साल से कम बतायी गई है, मौत के शिकार होते हैं। जानलेवा प्रदूषण का प्रभाव गर्भवती महिलाओं पर होने से बच्चे समय से पहले जन्म ले लेते हैं, इनका समुचित शारीरिक विकास सही ढ़ंग से नहीं हो पाता। इससे बच्चों का कम वजन का पैदा होना, अस्थमा तथा फेफड़ों की बीमारियां से पीड़ित होना हैं। हमारे लिये चिंता की बात यह है कि बेहद गरीब मुल्कों नाइजीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इथोपिया से ज्यादा बच्चे हमारे देश में वायु प्रदूषण से मर रहे हैं। विडंबना यह है कि ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के संकट ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या को बढ़ाया ही है। एक अरब चालीस करोड़ जनसंख्या वाले देश भारत के लिये यह संकट बहुत बड़ा है। दिल्ली सहित देश के कई महानगरों में प्रदूषण जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी है।


हर कुछ समय बाद अलग-अलग वजहों से हवा की गुणवत्ता का स्तर ‘बेहद खराब’ की श्रेणी में दर्ज किया जाता है और सरकार की ओर से इस स्थिति में सुधार के लिए कई तरह के उपाय करने की घोषणा की जाती है। हो सकता है कि ऐसा होता भी हो, लेकिन सच यह है कि फिर कुछ समय बाद प्रदूषण का स्तर गहराने के साथ यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर इसकी असली जड़ क्या है और क्या सरकार की कोशिशें सही दिशा में हो पा रही है? इस विकट समस्या से मुक्ति के लिये ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ दिल्ली ही नहीं, देश के कई शहर वायु प्रदूषण की गंभीर मार झेलते हैं। इसका पता तब ज्यादा चलता है जब वैश्विक पर्यावरण संस्थान अपने वायु प्रदूषण सूचकांक में शहरों की स्थिति को बताते हैं। पिछले कई सालों से दुनिया के पहले बीस प्रदूषित शहरों में भारत के कई शहर दर्ज होते रहे हैं। जाहिर है, हम वायु प्रदूषण के दिनोंदिन गहराते संकट से निपट पाने में तो कामयाब हो नहीं पा रहे, बल्कि जानते-बूझते ऐसे काम करने में जरा नहीं हिचकिचा रहे जो हवा को जहरीला बना रहे हैं।

चिंता की बात यह है कि दक्षिण एशिया में मृत्यु दर का सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण ही है। उसके बाद उच्च रक्तचाप, कुपोषण तथा तंबाकू सेवन से होने वाली मौतों का नंबर आता है। दरअसल, गरीबी और आर्थिक असमानता के चलते बड़ी आबादी येन-केन- प्रकारेण जीविका उपार्जन में लगी रहती है, उसकी प्राथमिकता प्रदूषण से बचाव के बजाय रोटी ही है। वहीं ढुलमुल कानूनों, तंत्र की काहिली तथा जागरूकता के अभाव में वायु प्रदूषण रोकने की गंभीर पहल नहीं हो पाती। मुश्किल यह है कि वायुमंडल के घनीभूत होने की वजह से जमीन से उठने वाली धूल, पराली की धुंध और वाहनों से निकलने वाले धुएं के छंटने की गुंजाइश नहीं बन पाती है। नतीजन, वायु में सूक्ष्म जहरीले तत्व घुलने लगते हैं और प्रदूषण के गहराने की दृष्टि से इसे खतरनाक माना जाता है।

हमारा राष्ट्र एवं दिल्ली सहित अन्य राज्यों की सरकारें नैतिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक एवं व्यक्तिगत सभी क्षेत्रों में मनोबल के दिवालिएपन के कगार पर खड़ी है। और हमारा नेतृत्व गौरवशाली परम्परा, विकास और हर प्रदूषण खतरों से मुकाबला करने के लिए तैयार है, का नारा देकर अपनी नेकनीयत का बखान करते रहते हैं। पर उनकी नेकनीयती की वास्तविकता किसी से भी छिपी नहीं है, देश में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के आंकड़े इस वास्तविकता को उजागर करते हुए प्रदूषण की समस्या का कोई दीर्घकालिक और ठोस हल निकालने के लिये चेता रहे हैं।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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