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मुसलमानों का नुकसान क्यों कर रहे हैं ?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) (PFI) नामक मुस्लिम संगठन (Muslim organization) पर सरकार की कड़ी नजर पहले से थी, लेकिन इस बार देश भर में उस पर मारे गए छापों ने उसकी पोल खोलकर रख दी।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) (PFI) नामक मुस्लिम संगठन (Muslim organization) पर सरकार की कड़ी नजर पहले से थी, लेकिन इस बार देश भर में उस पर मारे गए छापों ने उसकी पोल खोलकर रख दी। भारत में हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों या किसी भी मजहब के नाम पर कोई संगठन बनाने की मनाही नहीं है लेकिन यदि वह संगठन हिंसा (organization violence), आतंकवाद (terrorism), सांप्रदायिकता (communalism) और देशद्रोह (treason) फैलाने का काम करे तो उस पर प्रतिबंध लगाना तो जरुरी है ही, उसे दंडित भी किया जाना चाहिए। कांग्रेस सरकार ने 2006 में इसी तरह के संगठन सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) (Students Islamic Movement of India) पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस संगठन का उद्देश्य था, भारत को आजाद करके उसे इस्लामी राष्ट्र बनाना। इस संगठन के बिखरने पर पीएफआई का जन्म हो गया।
केरल के कुछ मुसलमान उग्रवादियों ने इसकी शुरुआत की और फिर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के तीन उग्रवादी संगठनों ने मिलकर इसे सारे देश में फैला दिया। इसने 'सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया' नामक एक राजनीतिक दल भी खड़ा कर लिया। यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि इन सारे संगठनों के नामों में 'मुस्लिम' शब्द किसी में भी नहीं है। यानी पूरी चालाकी से काम लिया गया है।
इस्लाम के नाम पर विदेशों से करोड़ों रुपए मिलने का खुलासा
इस संगठन पर डाले गए छापों से पता चला है कि इस्लाम के नाम पर विदेशों से करोड़ों रुपए इसने प्राप्त किए हैं। इसने पिछले डेढ़ दशक में जितने भी आंदोलन इस्लाम के नाम पर चले हैं, उनकी आग में तेल डालने का काम किया है। श्रीलंका के गिरजे में मारे गए 250 लोगों की हत्या में भी इसका हाथ बताया गया है। श्रीलंका के तमिल और मलयाली मुसलमानों को भी इसने अपनी गिरफ्त में ले रखा है।
पीएफआई कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी मामला
केरल के एक अध्यापक टी.जे. जोजफ़ का एक हाथ भी इसी के कार्यकर्ताओं ने यह कहकर काट दिया था कि उसने पैगंबर साहब का अपमान किया था। कई राज्यों में पीएफआई के कार्यकर्ताओं को हत्या के जुर्म में भी गिरफ्तार किया गया है। इस बार इसके कार्यालयों पर छापे पड़े तो कल केरल बंद का आह्वान किया गया, जिसके दौरान काफी तोड़-फोड़ भी हुई। इस संगठन पर पहले भी प्रतिबंध लग चुके हैं लेकिन ठोस प्रमाणों के अभाव में उसे छूट मिलती रही है।
भारत के मुसलमान 1947 में बंट गए
यदि इस बार भी सरकार ने सिर्फ आरोपों का प्रचार किया और उनके ठोस प्रमाणों को सार्वजनिक नहीं किया तो सरकार की मन्शा पर शक बढ़ेगा और उसकी प्रतिष्ठा पर भी आंच आएगी। यदि इस संगठन पर लगे आरोप सही हैं तो यह मानना पड़ेगा कि यह भारत के मुसलमानों का काफी नुकसान कर रहा है। मुस्लिम लीग के रास्ते पर चलकर भारत के मुसलमान 1947 में बंट गए, कमजोर हो गए, पिछड़ गए। उन्हें अरबों का नकलची बनाकर नहीं, उन्हें पक्का भारतीय बनाकर ही उनका उद्धार किया जा सकता है।