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K Vikram Rao: अब और क्यों देरी 124 (ए) पर?

K Vikram Rao: उच्चतम न्यायालय द्वारा राजद्रोह कानून (124—ए) पर व्यक्त राय से मेरी पूर्णतया असहमति है। खण्डपीठ ने भ्रमित जनमानस को आश्वस्त नहीं किया कि राज्य तथा सरकार एक नहीं हैं।

K Vikram Rao
Written By K Vikram RaoPublished By Deepak Kumar
Published on: 12 May 2022 2:11 PM GMT
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K Vikram Rao: अब और क्यों देरी 124 (ए) पर?

K Vikram Rao: उच्चतम न्यायालय द्वारा राजद्रोह कानून (124—ए) पर व्यक्त राय से मेरी पूर्णतया असहमति है। खण्डपीठ ने भ्रमित जनमानस को आश्वस्त नहीं किया कि राज्य तथा सरकार एक नहीं हैं। पृथक है। कारण यही कि सरकारें इस गलतफहमी का दुरुपयोग कर न्याय प्रक्रियाओं को बाधित कर देती हैं। भारतीय संविधान के प्रथम संशोधन (1951) में धारा 19(2) को पुनर्लेखित किया गया। राज्य की सुरक्षा के स्थान पर ''सार्वजनिक व्यवस्था के हित में'' शब्द रखे गये। इससे 124 (ए) को बल मिला। ''राज्य'' तो परिभाषित हो सकता है। ''व्यवस्था'' तो शासकों की फितरत पर निर्भर है। तब भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु थे। आखिर 124 (ए) की आवश्यकता ब्रिटिश भारत को क्यों हुयी ? शासन तो साम्राज्यवादी था। वायसराय लार्ड एलगिन (1862—63) को आशंका थी कि बंगाल के सैय्यद मीर नासिर अली (टीटू मीर) द्वारा बंगाल के बारासात क्षेत्र में चले जमीदारी—विरोधी संघर्ष वस्तुत: ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ने की साजिश है। इंग्लैण्ड में ऐसा कानून महारानी एलिजाबेथ प्रथम (1558—1603) के राज में आया था। तब राजा और सरकार एक ही होते थे। क्रमश: अवधारणा बदली। मगर अंग्रेजी राज में साम्राज्य तथा सरकार में साम्य दृढ होता गया।

राजद्रोह राष्ट्रीय कांग्रेस की आस्था हो गयी है: गांधी

हिन्दुस्तान की जंगे आजादी के दौर में महात्मा गांधी ने कहा था कि राजद्रोह राष्ट्रीय कांग्रेस की आस्था हो गयी है। चौरा—चौरी काण्ड के बाद 1922 में अदालत में बापू ने कहा था : '' यह मेरा अनिवार्य कर्तव्य हे कि मैं इस औपनिवेशिक राज के विरुद्ध वितृष्णा संर्जाऊ।'' हालांकि महात्मा के गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने अंग्रेजो द्वारा मीडिया को पाबंद करने वाले प्रेस एक्ट (1919) को पारित करने का समर्थन किया था, क्योंकि ब्रिटिश राज का वादा था इसके द्वारा अराजक तत्वों को ही नियंत्रित किया जायेगा। पर शीघ्र ही जब राष्ट्रवादी एन्नी बीसेन्ट तथा अन्य भारतप्रेमियों का दमन हुआ तो गोखले को गलती पर खेद हुआ। जैसा आज भारत में 124 (ए) के हिमायतियों को हो रहा है। यही हुआ था इंदिरा गांधी के यूएपीए एक्ट (1967) के साथ जिसका बाद में दुरुपयोग होने पर कथित वामपंथी रुष्ट हुए थे। मगर यही लोग उस वक्त अल्पमतवाली कांग्रेस सरकार के लोकसभा में हमराही थे। गनीमत है राजग सरकार ने पोटा को बेमानी कर दिया वर्ना वह स्वतंत्रता के हनन का वह सुगम माध्यम था।

1951 में संविधान में प्रथम संशोधन संसद में लाए थे जवाहरलाल नेहरु

मगर सत्ता पर ​विराजमान रहने की बेला पर और फिर प्रतिपक्ष में आ जाने पर राजनेताओं की जबान बदल जाती है। मसलन 1951 में जवाहरलाल नेहरु ही संविधान में प्रथम संशोधन संसद में लाये थे। इससे धारा 19(2)(ए) तथा 19(2) को संशोधित कर राज्यों को अधिकार दे डाला कि वह अभिव्यक्ति की आजादी पर ''तार्किक प्रतिबंध लगाये।'' तब संयुक्त राज्य अमेरिका में संविधान का प्रथम संशोधन (30 अप्रैल 1789) लाया गया था तो निर्धारित हुआ कि अखबारी आजादी को कदापि संकुचित नहीं किया जा सकता है।

एक श्रमजीवी पत्रकार के नाते मेरा तथा मेरे मीडियाकर्मियों के राष्ट्रीय संगठन की यह दृढ मान्यता है कि सरकार स्वयं को राज्य नहीं बतला सकती। दोनों में मूलभूत अंतर है। विचारक लोहिया ने हमें सिखाया था कि विपक्ष का धर्म है कि वह सरकार गिराये। जिन्दा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं। उनकी यह उक्ति थी। कहा था: ''बल्कि विरोधी नेता पलके भी गिराते है तो सत्ता पलटने के लिये।'' आजाद राष्ट्र में यही लोकतंत्र का अमृत होता है। लोकमान्य और बापू ने भी यही सिखाया है। धर्मसूत्र में राजा ही राज्य का पर्याय होता था। उसका मानुषीकरण होता था। अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने यही कहा था। पर यह पारम्परिक मान्यता नहीं हो सकती। राज्य और राष्ट्र भिन्न संस्थायें हैं।

भारत में राजा तथा राज्य के विरुद्ध पहला बागी था भक्त प्रहलाद। जब राजा और राज्य दुराचारी हो जायें तो उसका नाश करना जनसाधारण का कर्तव्य है। यही सुकरात ने यूनान के युवाओं को समझाया था। हेनरी डेविड थोरो ने अमेरिका से ऐसा ही कहा था कि बगावत ही जीवन दर्शन है।

सच बोलना देशभक्ति है देशद्रोह नहीं

इसी परिवेश में राहुल गांधी का ताजा बयान भी देख लें। उनके गूढ सूत्र थे: ''सच बोलना देशभक्ति है। देशद्रोह नहीं। सच जानना राजधर्म है। सच को कुचलना राजहठ है।'' अत्यंत मर्मस्पर्शी वाक्य है। पर उन्हीं की दादी ने 124(ए) को संज्ञेय अपराध बनवाया था। ब्रिटिश राज में तो केवल शिकायत के बाद ही कार्रवाही होती थी। उनकी दादी के पिताश्री जवाहरलाल नेहरु ने क्या किया ? इंदिरा गांधी मीसा (Maintenance of Internal Security Act) की जननी थी। जिसे व्यंग से Maintenance of Indra and Sanjay Act कहा जाता था। बडौदा में ही गुजरात हाईकोर्ट से जमानत पाकर भी जेल के भीतर ही इस के तहत मीसा में दोबारा कैद कर लिया गया। पुलिस द्वारा बयान लिये जाने को अदालत में साक्ष्य बनाया गया। पुलिस कैसे बयान लेती है ? सभी जानते हैं। चार्ज शीट दायर करने की अवधि तीस दिन होती थी। इंदिरा सरकार ने उसे 120 दिन कर दिया। ढाई लाख भारतीय सलाखों के पीछे पड़े रहे।

महाराष्ट्र में शरद पवार और सोनिया- राहुल कांग्रेस द्वारा शिवसैनिक उद्धव ठाकरे की अघाड़ी सरकार को परखें। सांसद नवनीत राणा को पति रवि के साथ 124 (ए) के तहत गतमाह कैद किया गया। मुम्बई में एक जुबान, दिल्ली में दूसरी? शरद पवार ने एक कदम बढ़कर मांग की है कि आईटी एक्ट के (66 (ए)) वाले इस नियम के तहत सोशल मीडिया पर आलोचना तथा संदेश भेजने पर सजा हो। न्यायालय इसे निरस्त कर चुका है।

सांसद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर जेल में रहस्यमय मौत का

नेहरु का मानवाधिकार रक्षक के रोल में महिमामंडन करने वाले गौर करें सांसद डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Member of Parliament Dr. Shyama Prasad Mookerjee) की श्रीनगर जेल में रहस्यमय मौत का। उनका गुनाह क्या था ? कश्मीर त​ब भारत का अविभाजित अंग बन गया था पर शेख मोहम्मद अबदुल्ला की वह जागीर बनी हुयी थी। बिना परमिट के भारतीय नागरिक प्रवेश नहीं कर सकते थे। डा. मुखर्जी गये, वैसे ही जैसे डा. लोहिया ने पूर्वोत्तर के राज्यों में किया। मणिपुर, अरुणाचल, आदि में लोहिया बिना परमिट के गये। कैद हुये। सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किया। मगर डा. मुखर्जी के साथ तो अमानुषिक व्यवहार हुआ। वे दिल के मरीज थे। उन्हें श्रीनगर जेल में बिना चिकित्सा के मर जाने दिया गया। प्रधानमंत्री नेहरु ने कोई कार्रवाही नहीं की।

तो क्या भारत में भी हांगकांग जैसे स्थिति आ जायेगी ? इस द्वीप में कम्युनिस्ट चीन ने शिशुओं के लिए प्रकाशित दंत कथा पुस्तक पढ़ना राजद्रोह करार दिया। इसमें भेड़ और शेर के किस्से हैं। माओवादी सरकार की आशंका है कि इसे पढ़कर बच्चे चीन—विरोधी हो जायेंगे। अर्थात राजद्रोही। तो प्रतिबंध लगा दिया। भला हो अभी भारत में ऐसा खतरा नहीं हैं।

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Deepak Kumar

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