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DR Ved Pratap Vaidik: सबके लिए एक-जैसा कानून क्यों नहीं, पढ़ें ये लेख

One Law For All: भारत की दिक्कत यह है कि हमारे यहां अलग-अलग मज़हबों में निजी-कानून अलग-अलग तो हैं ही, जातियों और क्षेत्रों में अलग-अलग से भी ज्यादा परस्पर विरोधी परंपराएं बनी हुई हैं।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Published on: 4 Dec 2022 9:27 AM IST
Why not one law for all?
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सबके लिए एक—जैसा कानून क्यों नहीं ?: Photo- Social Media

One Law For All: भाजपा कई वर्षों से लगातार वादा कर रही है कि वह सारे देश में सबके लिए निजी कानून एक-जैसा (personal law uniform) बनाएगी। वह समान नागरिक संहिता (uniform civil code) लागू करने की बात अपने चुनावी घोषणा-पत्रों में बराबर करती रही है। निजी मामलों में समान कानून का अर्थ यही है कि शादी, तलाक, उत्तराधिकार, दहेज आदि के कानून सभी मजहबों, जातियों और क्षेत्रों में एक-जैसे हों।

भारत की दिक्कत यह है कि हमारे यहां अलग-अलग मज़हबों में निजी-कानून अलग-अलग तो हैं ही, जातियों और क्षेत्रों में अलग-अलग से भी ज्यादा परस्पर विरोधी परंपराएं बनी हुई हैं। जैसे हिंदू कोड बिल के अनुसार हिंदुओं में एक पत्नी विवाह को कानूनी माना जाता है लेकिन शरीयत के मुताबिक एक से ज्यादा बीवियाँ रखने की छूट है। भारत के कुछ उत्तरी हिस्से में एक औरत के कई पति हो सकते थे।

भारत के दक्षिणी प्रांतों में मामा-भानजी की शादी भी प्रचलित है

भारत के दक्षिणी प्रांतों में मामा-भानजी की शादी भी प्रचलित रही है। आदिवासी क्षेत्रों में बहु पत्नी प्रथा अभी भी प्रचलित है। इसी तरह से पति-पत्नी के तलाक संबंधी परंपराएं भी अलग-अलग हैं। यही बात पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार पर भी लागू होती है। इन सवालों पर संविधान सभा में काफी बहस हुई और नीति निदेशक सिद्धांतों में समान सिविल कोड की बात कही गई ।

लेकिन आज तक किसी केंद्र या प्रादेशिक सरकार की हिम्मत नहीं पड़ी कि सबके लिए एक-जैसा निजी कानून बना दे। अब खुशी की बात है कि उ.प्र., गुजरात, असम और उत्तराखंड की सरकारों के साथ-साथ म.प्र. की सरकार भी समान आचार संहिता लागू करनी की तैयारी कर रही है। वैसे भारत में जन्मे धर्मों- हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध आदि मतावंलबियों पर तो यह पहले से लागू है लेकिन ईसाई, मुसलमान, यहूदी आदि विदेशों में जन्मे धर्म के लोग अपने मजहबी कानूनों को ही लागू करने पर अड़े हुए हैं। इसे वे भाजपा की हिंदूकरण की रणनीति ही मानते हैं।

परंपराओं का अंधानुकरण

ऐसे लोगों से मुझे यही पूछना है कि आप अपने धर्म का पालन करना चाहते हैं या विदेशियों की नकल करना चाहते हैं? क्या इस्लाम, ईसाइयत, यहूदी और पारसी धर्म का पालन तभी होगा, जब हमारे मुसलमान अरबों की, हमारे ईसाई यूरोपियों की, हमारे यहूदी इस्राइलियों की और हमारे पारसी ईरानियों की नकल करें? जब हमारे हिंदुओं ने राजा दशरथ की तीन पत्नियों और द्रौपदी के पांच पतियों को परंपरा को त्याग दिया तो हमारे मुसलमानों को भी डेढ़ हजार साल पुरानी अरबों की पोंगापंथी परंपराओं के अंधानुकरण की क्या जरुरत है?



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Shashi kant gautam

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