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विधवाओं के पुनर्वास से अनाथ बच्चों का संवर सकता है भविष्य

विधवा आश्रम को बालग्रह के रूप में भी तब्दील कर सकते हैं, ताकि बच्चों को माँ का सहारा मिल जाएगा और माँओं को अपना मन लगाने के लिए बच्चे मिल जाएंगे ।

rajeev gupta janasnehi
Written By rajeev gupta janasnehiPublished By Ashiki
Published on: 22 Jun 2021 3:12 PM IST
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कांसेप्ट इमेज (फोटो-सोशल मीडिया)

सोलह श्रिंगार करके जब नारी घर से निकलती है तो उसकी सुंदरता देखते ही बनती है। सोलह श्रिंगार में एक सुंदर श्रिंगार उसका सिंदूर भरी मांग भी होती है, जो इस बात का घोतक होती है कि यह स्त्री अपने दांपत्य जीवन के रूप में जीवन व्यतीत कर रही है परंतु सफेद कपड़े में लिपटी हुई बिना सिंदूर के जब एक स्त्री को देखते हैं तो उसकी सुंदरता को दाग लगा हुआ पाते हैं क्योंकि विधाता के क्रूर हाथों से उसके पति का जीवन से अलग होकर परलोक सिधार गया होता है तो अनायास उसके लिए साहनुभूति का भाव आता है। इसी समय चक्र को भारतीय धर्माचार्य ने विधवा स्त्री के रूप में वर्णित किया है।

भारतीय धर्म आचार्यों ने विधवाओं को जीने की एक एक मर्यादा का उल्लेख किया, जिसमें वह सफेद वस्त्रों को धारण करती है। रूखा सूखा खाने के लिए बताया है, पारिवारिक जीवन से अलग रहने के लिए सचेत किया है। इन सब के पीछे यह मानसिकता थी कि अगर स्त्री पारिवारिक जीवन और पकवान खाने से मन व तन में चंचलता रहती है, लेकिन यह अब बहुत पुराने समय की बात हो गई है। साक्षरता के साथ अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं, समान अधिकार की बात करने वाले इस को अत्याचार व भेदभाव मानते हैं। उनकी दशा सुधारने हेतु विधवा उत्थान का काम करना शुरू किया।

विधवा दिवस विधवा महिलाओं की समस्याओं के प्रति समाज में उन्हें एक सम्मान से जिंदगी जीने के हक दिलाने के लिए जागरूकता फैलाने हेतु मनाया जाता है। यह दिवस विधवाओं की स्थिति पर प्रकाश डालता है, जिससे पता चलता है कि उन्हें समाज में किस प्रकार की उपेक्षा व दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर समाज संगठन भी समाज के इस उपेक्षित वर्ग की अनदेखी करते रहे हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं है अब उन्हें बराबरी का हक व सम्मान से रहने के लिए समाज में जागरूकता बढ़ती जा रही है। आमतौर पर जब विधवाओं को समाज से बहिष्कार जैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है तो विधवा एवं उनके बच्चों के साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है| मानवाधिकार कि अलख जगाने वालों की निगाह में यह व्यवहार मानव अधिकारों की श्रेणी में गंभीर उल्लंघन माना गया है|इनकी जीवन के उत्थान लिए के विधवा दिवस मनाया जाने लगा |

ब्रिटेन की लुंबा फाउंडेशन विश्व भर में विधवाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को लेकर 7 वर्ष से संयुक्त राष्ट्र संघ में अभियान चला रहे थे | इसी संस्था के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र में विधवाओं के खिलाफ जारी अत्याचार के आंकड़ों के आधार पर विधवा दिवस घोषित किया गया ।विधवाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने हेतु संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 23 जून 2011 को पहला अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस मनाने की घोषणा की वर्ष 2011 से अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस विश्व की शोषित वर्ग के उत्थान के लिए मनाया जा रहा है|

आगरा में भी ब्रिटिश राज्य के समय एक विधवा आश्रम ,विधवा माताओं के पुनर्वास के लिए निर्माण किया गया जो एक अंग्रेज सिटी मजिस्ट्रेट के द्वारा किया गया उन्होंने इस प्रकार की व्यवस्था की थी कि कोई भी विधवा माता यहां पर आश्रय प्राप्त कर सकती थी,जिन्हें संरक्षण के साथ जीवन यापन की सभी सुविधा मुहिम कराई जाती थी |इस विधवा आश्रम के संविधान के अनुसार संस्था का अध्यक्ष वर्तमान में आगरा सिटी मजिस्ट्रेट होते हैं, अन्य कार्यकारिणी के सदस्य के माध्यम से इसका संचालन किया जाता है|

आज अंग्रेज सिटी मजिस्ट्रेट द्वारा बनाया गया विधवा आश्रम बहुत ही दुर्दशा रूप में है उनकी दूरदर्शिता का सही तरीके से क्रियान्वयन ना होने से शहर के तमाम संवेदनशील लोगों का हृदय उसे देखकर रोता है |अध्यक्ष अपनी व्यस्तता के चलते आज विधवा आश्रम कामिटी के लोगों द्वारा संचालन पर निर्भर होते है | एक दशक पहले सिटी मजिस्ट्रेट व अनेक सामाजिक संस्थाओं द्वारा उत्थान के लिए अनेक कार्य किए गए परंतु जैसा हमेशा होता है| अधिकारी के बदलते ही कारवाँ आगे और उन्नति की राह नहीं देख सका तदुपरांत कमेटी के सदस्यों द्वारा भी कोई बहुत सकारात्मक सहयोग नहीं मिला ।तीन चार वर्ष तक तो वहां पर समाजसेवियों की लाइन लगी रहती थी| आज उन्हें पिछले दो-तीन साल से आश्रम फिर गर्दिश के दिनों में घूम रहा है जिस तरीके से आज से 10-12 साल पहले घूम रहा था| आज आश्रम की कमाई वहां पर खड़ी होने वाली कारों के किराए से वा कुछ अन्य किराये की इनकम से हैं|

हम सभी जानते हैं हमारे ब्रज मंडल के वृंदावन में बांके बिहारी की स्थली पर दुनिया भर से अनेक विधवाओं का बसेरा रहता है क्योंकि भगवान के चरणो में भक्ति करते हुए भक्तों द्वारा उन्हें भरण-पोषण के साथ जीवन यापन की सुविधा भी मुहिम हो जाती हैं उन्हें तमाम आश्रमों में वह शरण मिल जाती है लेकिन दूसरी तरफ उनके ऊपर अनेक प्रकार का शारीरिक, मानसिक शोषण भी होता है इसी बात को मद्देनजर रखते हुए सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक ने भारत में विधवाओं के संरक्षण के लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार किया| संसद के बजट सत्र में वृंदावन में रहने वाली हजारों विधवाओं की सहायता के लिए एक विधवा संरक्षण विधेयक बनाने की इच्छा व्यक्त की गई|

जिस तरीके से सरकार वृंदावन में पुनर्वास की सोच रही है उसी प्रकार आगरा का यह विधवा आश्रम विधवाओं के लिए पारस मणि सिद्ध हो सकता है। प्रशासन, शासन और समाज के लोग एक ब्लूप्रिंट बनाना होगा इतनी महत्वपूर्ण और बड़ी जगह पर हम इसे विधवा आश्रम के साथ बालग्रह के रूप में भी तब्दील कर सकते हैं ,ताकि बच्चों को माँ का अँचल का सहारा मिल जाएगा और माँओं को अपना मन लगाने के लिए बच्चे मिल जाएंगे ।इसे विस्तार में और भी देखा जा सकता है जो समय समय पर वृद्ध लोगों के पुनर्वास की समस्या आती है कहने का तात्पर्य वृद्धा आश्रम विधवा आश्रम और बाल सुधार गृह तीनों जगह को अगर हम संयुक्त रूप से कुछ सोचे तो एक समाज को एक नया मार्गदर्शन दे सकते हैं।

उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी श्री आदित्यनाथ जी ने माताओ की दशा सुधारने में एक बहुत अच्छी पहल की है| आपने 60 वर्ष की माताओं के लिए पैशन की व्यवस्था का ऐलान किया है। यह निश्चित रूप से माताओं के प्रति सद्भाव के साथ भरण पोषण में भी कार्य करेगा माताओं को आत्मनिर्भर बनेगी किसी पर आश्रित नही रहना पड़ेगा|

अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस पर इन बातों का रखना होगा ध्यान दुनिया की लाखों विधवाओं को गरीबी, बहिष्कार, हिंसा, बेघर, बीमार स्वास्थ्य जैसी समस्याएं और क़ानून व कस्टम में भेदभाव ख़त्म करना है। एक अनुमान के अनुसार 115 मिलियन विधवाएं गरीबी में रहती हैं और 81 मिलियन शारीरिक शोषण का सामना करती हैं। एक अनुमान के अनुसार 40 मिलियन विधवाएं भारत में रहती हैं।उनके शोषण रोकना होगा | 15000 विधवाएं बृजमंडल के पवित्र शहर वृंदावन की सड़कों पर अकेले रहती हैं। आमतौर पर विधवाओं को समाज से बहिष्कार जैसी स्थिति से गुजरना पड़ता है। विधवाओं एवं उनके बच्चों के साथ किया जाने वाला दुर्व्यवहार मानवअधिकारों को दिलाना होगा .




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Ashiki

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