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किसी भी राज्य की अनुमति के बगैर सीबीआई कुछ नहीं कर सकती

Manali Rastogi
Published on: 19 Nov 2018 2:23 PM IST
किसी भी राज्य की अनुमति के बगैर सीबीआई कुछ नहीं कर सकती
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने राज्य में किसी भी मामले की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई सहमति को वापस ले लिया है और आंध्र प्रदेश के नक्शे कदम पर चलते हुए पश्चिम बंगाल ने भी अपनी रजामंदी वापस लेने का एलान किया है। दो राज्यों के इस तरह के कदम उठाने के बाद देश के संघीय ढांचे को लेकर एक सवाल खड़ा हो गया है।

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यह आशंका जताई जा रही है कि इन दो राज्यों के तर्ज पर एक एक कर अन्य राज्य भी इस कतार में खड़े होने लगे तो एक नए तरीके का संकट खड़ा हो जाएगा। क्योंकि तब सीबीआई को किसी भी ऑफिशियल काम के लिए किसी राज्य में प्रवेश करने से पहले वहां की सरकार से इजाजत लेनी होगी.

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यह भी कहा जा रहा है कि सीबीआई के अधिकारियों के बीच चल रहे विवाद और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस की वजह से जांच एजेंसी पर राज्यों का भरोसा कम हुआ है और इसी का नतीजा आंध्र प्रदेश सरकार के अपनी सहमति को वापस लेने के रूप में सामने आया है।

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आंध्र और प. बंगाल सरकार के इस कदम को केंद्र के साथ टकराव के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व आंध्र के एन चंद्रबाबू नायडू ने गठबंधन बनाने के लिए गैर-बीजेपी दलों को साथ लाने की कोशिश की है। तो आइए देखते हैं सीबीआई की संवैधानिक रूप से स्थिति क्या है।

केंद्रीय जांच ब्यूरो या सीबीआई भारत सरकार की एजेंसी है। इसे आपराधिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की जांच करने के लिए लगाया जाता है। दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम के तहत सीबीआई का गठन हुआ था। यह कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अधीन कार्य करती है।

हालांकि इसका गठन फेडरल ब्यूरो आफ इंबेस्टिगेशन से मिलता जुलता है लेकिन इसके अधिकार एफबीआई की तुलना में बहुत सीमित है। दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम 1946 का विस्तार संपूर्ण भारत पर है। अधिनियम में प्रयुक्त कुछ शब्दों और पदों को परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन यह कहा गया है कि इसके अर्थ वही होंगे जो केंद्रीय सतर्कता अधिनियम 2004 (2003 का 45) में परिभाषित हैं।

दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम साफ कहता है कि सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता, प्रधान न्यायाधीश या उसके द्वारा अनुशंसित सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की सलाह पर की जाएगी। अधिनियम के अनुसार निदेशक को उपरोक्त समिति की पूर्व सहमति के बगैर हटाया भी नहीं जा सकेगा। लेकिन सीबीआई के अधिकारों के बारे में अधिनियम बहुत साफ कहता है कि राज्य सरकार की सम्मति के बिना सीबीआई उस राज्य में कुछ भी नहीं कर सकेगी।

इससे अब एक बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि 3 अगस्त 2018 को अन्य राज्यों की तरह आंध्र सरकार ने सीबीआई को दी गई सहमति को रिन्यू करने के बाद अब यदि आंध्र और पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा समझौते को रद्द कर दिया गया है तो सीबीआई राज्य सरकार की सहमति के बगैर राज्य में किसी भी तरह की खोज, छापे या जांच नहीं कर सकती है।

आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र सरकार पर सेंट्रल एजेंसियों का उपयोग करके उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाया था। उन्होंने बीजेपी पर विपक्षी नेता वाई एस जगन मोहन रेड्डी के साथ मिलकर सीबीआई और आयकर विभाग के सहारे उनकी सरकार गिराने का आरोप लगाया था।

इसके बाद ही चंद्रबाबू नायडू ने यह कदम उठाया है। और उनके साथ प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी आ गई हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी आंध्र सरकार के इस कदम का समर्थन कर दिया है। और इसीलिए सीबीआई जांच के लिए उस राज्य की सम्मति आवश्यक होती है। तभी सीबीआई केस अपने हाथ में लेती है।

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