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World Anti Tobacco Day : नशे में तबाह होती जिन्दगियों को बचाना होगा

World Anti Tobacco Day : बेशक 31 मई 2022 को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस मनाया जा रहा है मगर ऐसे दिवस को मनाने की उपयोगिता तभी है जब नशे की अंधी गलियों में भटक चुके युवाओं को बाहर निकालना विश्व की हर सरकार का नैतिक एवं प्राथमिक कर्तव्य हो, क्योंकि युवा पीढ़ी नशे की गुलाम हो चुकी है।

Lalit Garg
Written By Lalit Garg
Published on: 30 May 2024 4:26 PM IST (Updated on: 30 May 2024 4:27 PM IST)
World Anti Tobacco Day : नशे में तबाह होती जिन्दगियों को बचाना होगा
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World Anti Tobacco Day : बेशक 31 मई 2022 को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस मनाया जा रहा है मगर ऐसे दिवस को मनाने की उपयोगिता तभी है जब नशे की अंधी गलियों में भटक चुके युवाओं को बाहर निकालना विश्व की हर सरकार का नैतिक एवं प्राथमिक कर्तव्य हो, क्योंकि युवा पीढ़ी नशे की गुलाम हो चुकी है। विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है तम्बाकू और उससे जुड़े नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन में निरन्तर वृद्धि होना। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति विशेषतः महिलाएं किसी-न-किसी रूप में तम्बाकू की आदी हो चुकी है। बीड़ी-सिगरेट के अलावा तम्बाकू के छोटे-छोटे पाउचों से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढ़ने के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है।

सरकार की नीतियां भी दोगली है। लेकिन तेलंगाना सरकार ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए तंबाकू और निकोटीन युक्त गुटखा व पान मसाला पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है, वह सुखद है। ऐसे गुटखों या पान मसालों के निर्माण, भंडारण, वितरण, परिवहन और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लग गया है। हालांकि, अभी यह पाबंदी एक वर्ष के लिए है, शायद आगे इसकी समीक्षा होगी और उसके बाद राज्य सरकार स्थायी प्रतिबंध का फैसला करेगी। ऐसे निर्णय केन्द्र सरकार एवं विभिन्न प्रांतों की सरकारों को भी लेने चाहिए। क्योंकि एक नशेड़ी पीढ़ी का देश कैसे आदर्श हो सकता है? कैसे स्वस्थ हो सकता है? कैसे प्रगतिशील हो सकता है? इस दुर्व्यसन के आदी लोग सुधरने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में, तेलंगाना में लगा प्रतिबंध कितना कारगर होगा, यह देखने वाली बात है। तेलंगाना अगर अपनी सीमा में प्रतिबंध को कड़ाई से लागू करे, तो उसके पड़ोसी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र को भी सहयोग के लिए खड़ा होना पड़ेगा। नशे की गंभीरता एवं विकरालता को देखते हुए साल 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सदस्य देशों ने एक प्रस्ताव पारित किया और हर 31 मई को विश्व तम्बाकू विरोधी दिवस मनाने का फैसला किया गया।

आज छोटे-छोटे बच्चे एवं महिलाएं नशे के आदी हो चुकी हैं। वे ऐसे नशे करती है कि रुह कांपती है। हर साल लाखों लोग नशे के कारण अपना जीवन दांव पर लगा रहे हैं। नशा आज एक फैशन बन चुका है। पूरे विश्व के लोगों को तंबाकू मुक्त और स्वस्थ बनाने के लिये तथा सभी स्वास्थ्य खतरों से बचाने के लिये तंबाकू चबाने या धूम्रपान के द्वारा होने वाले सभी परेशानियों और स्वास्थ्य जटिलताओं से लोगों को आसानी से जागरूक बनाने के लिये इस दिवस की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन यह विडम्बनापूर्ण है कि सरकारों के लिये यह दिवस कोरा आयोजनात्मक है, प्रयोजनात्मक नहीं। क्योंकि सरकार विवेक से नहीं, स्वार्थ से काम ले रही है। शराबबन्दी का नारा देती है, नशे की बुराइयों से लोगों को आगाह भी करती है और शराब, तम्बाकू का उत्पादन भी बढ़ा रही है। राजस्व प्राप्ति के लिए जनता की जिन्दगी से खेलना क्या किसी लोककल्याणकारी सरकार का काम होना चाहिए?


भारत में गुटखा सहित धुआं रहित तंबाकू का उपयोग एक खतरनाक कुचलन है, जिससे गंभीर किस्म की बीमारियां होती हैं। विशेष रूप से गुटखा से कैंसर का खतरा होता है और इसी वजह से साल 2002 से ही गुटखा पर नियंत्रण के प्रयास चलते रहे हैं। साल 2012 से भारतीय राज्यों द्वारा प्रतिबंधित होने के बावजूद गुटखा व्यापक रूप से उपयोग में है। गुटखा लॉबी देश भर में बहुत मजबूत है और इससे सरकारों व उनमें शामिल लोगों को गलत ढंग से भारी कमाई होती है। सबसे पहला राज्य मध्य प्रदेश है, जिसने गुटखा पर प्रतिबंध लगाया था, पर क्या वहां सफलता मिली? बिहार, गुजरात जैसे राज्य, जहां कहने को तो शराब प्रतिबंधित है, पर क्या वहां शराब का मिलना बंद हो गया है? ठीक इसी तरह से गुटखा के साथ हुआ है। लगातार चेतावनियों व विज्ञापनों के बावजूद गुटखा या तंबाकू का सेवन घट नहीं रहा है।

नशे की संस्कृति युवा पीढ़ी को गुमराह कर रही है। अगर यही प्रवृत्ति रही तो सरकार, सेना और समाज के ऊंचे पदों के लिए शरीर और दिमाग से स्वस्थ व्यक्ति नहीं मिलेंगे। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण हम एक स्वस्थ नहीं, बल्कि बीमार राष्ट्र एवं समाज का ही निर्माण कर रहे हैं। प्रसिद्ध फुटबाल खिलाड़ी मैराडोना, पॉप संगीत गायक एल्विस प्रिंसले, तेज धावक बेन जॉनसन, युवकों का चहेता गायक माईकल जैक्सन, ऐसे कितने ही खिलाड़ी, गायक, सिनेमा कलाकार नशे की आदत से या तो अपनी जीवन लीला समाप्त कर चुके हैं या बरबाद हो चुके हैं। नशे की यह जमीन कितने-कितने आसमान खा गई। विश्वस्तर की ये प्रतिभाएं कीर्तिमान तो स्थापित कर सकती हैं, पर नई पीढ़ी के लिए स्वस्थ विरासत नहीं छोड़ पा रही हैं। नशे की ओर बढ़ रही युवापीढ़ी बौद्धिक रूप से दरिद्र बन जाएगी।

गुटखों और पान मसालों से जुड़ी समस्याओं को अभी भी हम गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। भारत में जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्री में पाया गया कि 55 प्रतिशत कैंसर तंबाकू के उपयोग से संबंधित थे। भारत तंबाकू उत्पादों का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है। भारत में तंबाकू छोड़ने की दर सबसे कम है, यहां सिर्फ 20 प्रतिशत पुरुष तंबाकू के दुर्व्यसन को छोड़ पाते हैं। जीवन का माप सफलता नहीं, सार्थकता होती है। सफलता तो गलत तरीकों से भी प्राप्त की जा सकती है। जिनको शरीर की ताकत खैरात में मिली हो वे जीवन की लड़ाई कैसे लड़ सकते हैं? तंबाकू सेवन कई सारी बीमारियों का कारण बनता है जैसे दीर्घकालिक अवरोधक फेफड़ों संबंधी बीमारी (सीओपीडी), फेफड़े का कैंसर, हृदयघात, स्ट्रोक, स्थायी दिल की बीमारी, वातस्फीति, विभिन्न प्रकार के कैंसर आदि।


तंबाकू का सेवन कई रूपों में किया जा सकता है जैसे सिगरेट, सिगार, बीड़ी, मलाईदार तंबाकू के रंग की वस्तु (टूथ पेस्ट), क्रिटेक्स, पाईप्स, गुटका, तंबाकू चबाना, सुर्ती-खैनी (हाथ से मल के खाने वाला तंबाकू), तंबाकू के रंग की वस्तु, जल पाईप्स, स्नस आदि। कितने ही परिवारों की सुख-शांति ये तम्बाकू उत्पाद नष्ट कर रहे हैं। बूढ़े मां-बाप की दवा नहीं, बच्चों के लिए कपड़े-किताब नहीं, पत्नी के गले में मंगलसूत्र नहीं, चूल्हे पर दाल-रोटी नहीं, पर नशा चाहिए। करोड़ों लोग अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर लिए एक जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर। डब्ल्यूएचओ के अनुसार धूम्रपान की लत से हर साल लगभग 60 लाख लोग मारे जा रहे हैं और इनमें से अधिकतर मौतें कम तथा मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं। दुर्भाग्यवश इस गलत आदत को स्टेटस सिंबल मानकर अक्सर नवयुवक एवं महिलाएं अपनाते हैं और दूसरों के सामने दिखाते हैं। इससे प्रजनन शक्ति कम हो जाती है। यदि कोई गर्भवती महिला धूम्रपान करती है तो या तो शिशु की मृत्यु हो जाती है या फिर कोई विकृति उत्पन्न हो जाती है।

लंदन के मेडिकल जर्नल द्वारा किये गये नए अध्ययन में पाया गया कि धूम्रपान करने वाले लोगों के आसपास रहने से भी गर्भ में पल रहे बच्चे में विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉ. जोनाथन विनिकॉफ के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान माता-पिता दोनों को स्मोकिंग से दूर रहना चाहिए। स्कूलों के बाहर नशीले पदार्थों की धडल्ले से बिक्री होती है, किशोर पीढ़ी धुए में अपनी जिन्दगी तबाह कर रही है। हजारों-लाखों लोग अपने लाभ के लिए नशे के व्यापार में लगे हुए हैं और राष्ट्र के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। चमड़े के फीते के लिए भैंस मारने जैसा अपराध कर रहे हैं। बढ़ती तम्बाकू प्रचलन की समस्या विश्व की दूसरी समस्याओं में सबसे देरी से जुड़कर सबसे भयंकर रूप से मुखर हुई है। लगता है विश्व जनसंख्या का अच्छा खासा भाग नशीले पदार्थों के सेवन का आदी हो चुका है। अगर आंकड़ों को सम्मुख रखकर विश्व मानचित्र (ग्लोब) को देखें, तो हमें सारा ग्लोब नशे में झूमता दिखाई देगा।



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Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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