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World Day Against Child Labour 2021: बाल श्रम जिम्मेदार कौन?

World Day Against Child Labour 2021: बाल श्रम के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस की शुरूआत हुई।

rajeev gupta janasnehi
Written By rajeev gupta janasnehiPublished By Chitra Singh
Published on: 11 Jun 2021 5:38 AM GMT
World Day Against Child Labour
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विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

World Day Against Child Labour 2021: जीवन के चार पहर होते हैं बाल्यकाल ,युवावस्था, प्रौढ और बुढ़ापा जिसमें बाल्यावस्था एक वह अवस्था होती है जब आदमी की शारीरिक संरचना ,बौद्धिक विकास ,सीखने की लगन ,और शिक्षा के माध्यम से विकसित होने के बाद वह युवा अवस्था की दहलीज़ पर पैर रखकर परिवार का और देश का भरण पोषण करने के लिए सक्षम होता है| बाल्यवस्था एक कोमल हृदय होता है| इसको हम जिस रूप में डालते हैं उसी में ढल जाता है| लेकिन जहां बाल्यवस्था परिवार के संरक्षण में पल्लवित नहीं होता है तब बाल श्रम,अपराध ,गलत आदत ,या अन्य प्रकार से समाज में विकसित होता है जो बाल श्रम के रूप में चिन्हित होता हैं |इसकी रोकथाम के लिए सरकार ,समाज द्वारा ऐसे बच्चों को संरक्षण देने के उद्देश्य से 12 जून को प्रति वर्ष बाल श्रम विरोध दिवस के रूप में मनाया जाता है|

राजा का ( सरकार का )दायित्व होता है कि वह अपनी प्रजा के हर सुख दुख दर्द का ध्यान रखें और उसके विकास के साथ देश का विकास करें परंतु अब सरकार अपने जिम्मेदारी का निर्वाहन ना करके अपनी गद्दी बचाने और भ्रष्टाचार पर लगाम व बनाए गए नियमों का पालन न करा पाने के कारण वह अपनी प्रजा का ध्यान नहीं रख पा रही है जिसके लिए वह उत्तरदाई है |ऐसे में जो बच्चे परिवार के ना रहने के कारण अनाथ हो जाते हैं या अपराधियों द्वारा अपहरण कर लिए जाते हैं या कहीं बिछड़ जाते हैं खो जाते हैं अत्यधिक बच्चों के होने से परिवार के लोग गरीबी के कारण भरण पोषण नहीं कर पाते हैं ऐसे में उन लोगों के पास अपने बच्चों से श्रम कराना पड़ता है तभी आर्थिक तंगी से निजात मिलती है| आज सरकार जब श्रम करने वाले बच्चों को ना तो भोजन दे पा रही है, ना शिक्षा दे पा रही है, ना संरक्षण दे पा रही है ऐसे में परिवार या बच्चों के पास पेट की आग बुझाने के लिए चाहे दुकान हो या कोई फैक्ट्री या आपराधिक गतिविधि आना पड़ता हैं|

होटलों में गूंजती छोटू नाम की आवाजें

आंख के सामने यह दृश्य घूम जाता है, छोटू ज़रा साहब को कटिंग चाई देना, 4 नम्बर टेबल परांठा, छोटू ज़रा बहन जी का नट टाइट कर दे, इस तरह की आवाज़ के साथ आपके आस पास हर 10 कदम पर वर्तमान में देश के विभिन्न क्षेत्रों में छोटे स्तर पर होटल, घरों व फैक्ट्री में काम कर या अलग-अलग व्यवसाय में मजदूरी कर हजारों बाल श्रमिक अपने बचपन को तिलांजलि दे रहें हैं, परंतु अपना व परिवार का पेट पालने काम कर रहे हैं| संपूर्ण भारत में ये बाल श्रमिक दुकानों ,चाय, होटल, स्ट्रीट वेंडर, हाइवे के होटेल पट्रोल पम्प ,कालीन, दियासलाई, बूट पॉलिश, बीड़ी उघोग, हस्तशिल्प , हथकरघा, चाय के बाग़ान में बाल अपराध के कार्य करते देखे जा सकते हैं। लेकिन कम उम्र में इस तरह के कार्यों को असावधानी से करने पर इन्हें कई तरह की बीमारियां व नशाखोरी से पीड़ित होने का खतरा होता है। ज़्यादातर अनपढ़ होते या बहुत कम पढ़े लिखे ।

बाल श्रम पर प्रतिबंध

भारत द्वारा UNCRC को वर्ष 1992 में अनुमोदित किया गया था। हालांकि भारत में 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सभी प्रकार के कार्य करने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है। भारत में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों पर सभी प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में लगाने से प्रतिबंधित किया गया है। जबकि 14 से 18 वर्ष से किशोरों पर केवल 'खतरनाक व्यवसायों' में कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

कौन से कार्य बाल श्रम नहीं हैं

यह कार्य जो बाल श्रम नहीं हैं ,ऐसे कार्य जो बच्चों या किशोरों के स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत विकास को प्रभावित नहीं करते हैं या जिन कार्यों का उनकी स्कूली शिक्षा पर कोई कुप्रभाव नही पड़ता हो। स्कूल के समय के अलावा या स्कूल की छुट्टियों के दौरान पारिवारिक व्यवसाय में सहायता करना, ऐसी गतिविधियां जो बच्चों के विकास में सहायक होती है तथा उनके वयस्क होने पर उन्हें समाज का उत्पादक सदस्य बनने के लिये तैयार होने में मदद करती हैं, यथा परंपरागत कौशल आधारित पेशा।

विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस 2021 (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

भारत में बाल श्रमिक

राष्ट्रीय जनगणना 2011 के अनुसार, 5-14 वर्ष की आयु वर्ग की भारत में कुल जनसंख्या लगभग 260 मिलियन है। इनमें से कुल बाल आबादी का लगभग 10 मिलियन (लगभग 4%) बाल श्रमिक हैं जो मुख्य या सीमांत श्रमिकों के रूप में कार्य करते हैं। 15-18 वर्ष की आयु के लगभग 23 मिलियन बच्चे विभिन्न कार्यों में लगे हुए हैं।

बाल श्रमिक की समस्या के समाधान

प्रश्न यह उठता है आफ्टर ऑल जिम्मेदार कौन? विधाता ,परिवार ,सामाजिक संरचना , या फिर सरकार या उसको रोजगार देकर उसके जीवन उसके परिवार का लालन पालन करने वाले या नियोक्ता कोई भी हो फ़र्क़ किया है। देश में बाल श्रमिक की समस्या के समाधान के लिये प्रशासनिक, सामाजिक तथा व्यक्तिगत सभी स्तरों पर लगातार प्रयास किया जाना आवश्यक हैं। यह आवश्यक है कि देश में जो विशिष्ट योजनाएं बनाई है, उन्हें कार्यान्वित किया जाएं, जिससे लोगों का आर्थिक स्तर मज़बूत हो सके और उन्हें अपने बच्चों को श्रम के लिये विवश न करना पड़े। आज कोरोना के चलते विश्व बड़ी आर्थिक तंगी की हालत से गुजर रहे हे बाज़ार में उपभोक्ता बाद खतम हे पैसा भी है नही इस समय हर प्रकार के कर्मचारी बेरोज़गार हो रहे है इसका असर बाल श्रम पर भी पड़ रहा है यह निश्चित है यह भी बेरोज़गारी का शिकार होंगे सरकार को यह समय बाल श्रम या उनके परिवारी जनो को आर्थिक सहायता मुहिम करानी पड़ेगी |बच्चों के उत्थान के लिये अनेक योजनाओं को शिक्षा में सुधार कराकर शिक्षा का अधिकार को पूरे मनोयोग से भी इस दिशा में ईमानदारी से लागू करना होगा ।अन्यथा इस महामारी से बाल श्रम की संख्या में इजाफा निश्चित होगा |

शासन की योजना को प्रशासनिक स्तर पर भी सख्त-से-सख्त निर्देशों की आवश्यकता है जिससे बाल-श्रम ना केवल रोका जा सके। बल्कि भरपेट भोजन व शिक्षा मिले। व्यक्तिगत स्तर पर सामाजिक संस्थो बाल श्रमिक की समस्या का निदान करना हम सभी का नैतिक दायित्व है। इसके प्रति हमें जागरूक होना चाहिये तथा इसके विरोध में सदैव आगे आना चाहिये। बाल श्रम की समस्या के निदान के लिये सामाजिक क्रांति आवश्यक है ताकि लोग अपने निहित स्वार्थों के लिये देश के इन भावी निर्माताओं व कर्णधारों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह न लगा सकें।बचपन को अपने आस पास देखे तो पढ़ाई के लिए प्रेरित करे । समस्त देशवासियों से अपील है एक बाल श्रम रोक कर देश को युवा श्रमिक दे।

विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने बाल श्रम विरोधी जागरूकता पैदा करने के लिए 12 जून 2002 में विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत की। इसका मुख्य उद्देश्य बाल श्रम की वैश्विक सीमा पर ध्यान केंद्रित करना और बाल श्रम को पूरी तरह से खत्म करने के लिये आवश्यक प्रयास करना है।बाल श्रमिकों को मूलभूत अवशकता को पूर्ति करना ।

भारत में आदिकाल से ही बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता रहा है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य इस सोच से काफी भिन्न है। बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। ऐसे में कब व कैसे बच्चे स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने की उम्र में मज़दूरी नही करेंगे ,इस पर मंथन करना होगा ।

Chitra Singh

Chitra Singh

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