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विश्व पर्यावरण दिवस 2021: पर्यावरण असंतुलन व जलवायु परिवर्तन की पारिस्थितिकी तंत्र को रोकने व बहाली के सार्थक उपाय

World Environment Day 2021: पर्यावरण दिवस का विषय (Theme of Environment Day 2021) “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली” है।

Dr Bharat Raj Singh
Written By Dr Bharat Raj SinghPublished By Chitra Singh
Published on: 3 Jun 2021 5:03 PM GMT
World Environment Day
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विश्व पर्यावरण दिवस 2021 (Photo-social Media)

विश्व पर्यावरण दिवस 2021: आज पर्यावरण के असंतुलन से सम्पूर्ण विश्व आपदाओं से घिरा हुआ है। हम यह भी जानते है कि इसका मुख्य कारण विश्व की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि; जिसके फलस्वरूप विकसित व विकासशील देशों में औद्योगिकीकरण की बढ़ोत्तरी हुयी और पृथ्वी के अवयवों का विशेषकर-हाइड्रोकार्बन का अनियमित दोहन हुआ है। वही दूसरी तरफ वाहनों की आवश्यकता में कई गुना वृद्धि से पर्यावरण में कार्बन के उत्सर्जन व अन्य नुकसानदायक गैसों की मात्रा में निर्धारित सीमा से कई गुना वृद्धि प्रत्येक वर्ष हो रही है। जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि और पर्यावरण असंतुलन के कारण सम्पूर्ण विश्व आपदाओं से घिरा हुआ है।

मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन मानव आन्तरिक बातचीत और पर्यावरण के एकीकरण पर चर्चा के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में, 1972 में विश्व पर्यावरण दिवस (WED) की स्थापना की गयी थी। उसके दो-साल बाद पहला विश्व पर्यावरण दिवस 'केवल एक पृथ्वी' विषय पर आयोजित किया गया था। इसी दिन यह भी निर्धारित किया गया कि 5- जून 1974 से प्रतिवर्ष समारोह आयोजित किए जाये, और फिर 1987 में, यह निर्णय लिया गया कि गतिविधियों को बढाने के लिये विभिन्न देशो को इसकी मेजबानी के लिये मौका दिया जाय ।

पर्यावरण दिवस का विषय

विश्व पर्यावरण दिवस के दिन हम उन पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता पैदा करता है, जो हमारी पृथ्वी ग्रह को नष्ट होने के लिये सामना करना पड़ रहा है, जिससे सम्पूर्ण जीवाश्म इससे प्रभावित हो रहे हैं। इस वर्ष 2021 में इस पर्यावरण दिवस का विषय (Theme of Environment Day 2021) "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली" है, जिसका उद्देश्य हर महाद्वीप पर पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण को महाद्वीपों, हर महासागरों में रोकना और उसे पूर्वत स्थिति में वापस लाना है।

पिछले दशकों में तापमान में भी 2-3 डिग्री सेन्टीग्रेड की वृद्धि हो चुकी है। इससे ग्लेसियर व आइस लैण्ड व आर्कटिक समुद्र में अत्यधिक पिघलाव हो रहा है। प्रत्येक दशक में ग्लेसियर में 12.5 प्रतिशत की कमी आ रही है तथा समुद्र की सतह में निरन्तर 2.54 मि0मी0 प्रतिवर्ष की बढ़ोत्तरी हो रही है। उपरोक्त कारणों से जलवायु में परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहा है तथा विश्व में अप्रत्याशित आपदाएँ भी घटित हो रही है। जिसका आकलन करना असम्भव हो रहा है कि विश्व में कब, कहाँ व क्या घटित होगा? इन आपदाओं से कही अतिवृष्टि से अधिक जानमाल का नुकसान, कही अति ओलावृष्टि व कही सूखे की मार से जन-जीवन को भारी नुकसान हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

चुनौतियां

विश्व पर्यावरण क्षति हेतु 20-प्रमुख चुनौतियाँ का सामना कर रहा है; प्रदूषण, मिट्टी का क्षरण, ग्लोबल वार्मिंग, अधिक जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास, स्थायी अपशिष्ट उत्पन्न करना, अपशिष्ट निपटान, वनों की कटाई, ध्रुवीय बर्फ की टोपियां, जैव विविधता का नुकसान, जलवायु परिवर्तन, महासागर अम्लीकरण, नाइट्रोजन चक्र, ओजोन परत का क्षरण, अम्ल वर्षा, जल प्रदूषण, ओवरफिशिंग, शहरी फैलाव, सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे और जेनेटिक इंजीनियरिंग।

पर्यावरण असंतुलन पर लोगों में चेतना जगाने का कार्य

प्रो.(डॉ.) भरत राज सिंह, निदेशक व वरिष्ठ पर्यावरणविद, स्कूल आफ मैनेजमेण्ट साईसेन्ज, जो विगत 15-वर्षों से पर्यावरण असंतुलन पर समाज में लोगों में चेतना जगाने का कार्य कर रहे है। इनके द्वारा लिखित ग्लोबल-वार्मिंग व क्लाइमेट चेन्ज पर तीन (3-पुस्तके भी क्रोसिया से प्रकाशित हो चुकी है। जिसके सुझावों को विश्व में अमेरिका व कनाडा, जर्मनी, फ्रान्स आदि में प्राथमिकता दी गयी है। संयुक्तराष्ट्र अमेरिका ने वर्ष 2014 में हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

आज सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान की विभीषिका से ग्रसित है। उत्तरी धु्रव के तेजी से पिघलने के कारण जहां समुद्र की सतह में बढ़ोत्तरी हो रही है वही अटलांटिक महासागर की छोर जो कनाडा, उत्तरी-पूर्वी अमेरिका तथा पश्चिमी-उत्तरी संयुक्त राष्ट्र के देशों (फ्रांस, जर्मनी ब्रिटेन) में समुद्री तूफान, जलप्लावन, ओलावृष्टि आदि से दिसम्बर माह से अप्रैल तक जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है तथा कभी-कभी 4 से 6 फीट बर्फबारी होने से आपातकाल लागू किया जाता है और वहां के निवासियों को 15-20 दिन न निकलने के लिए हिदायत दी जाती है।

कोविड-19 की महामारी से जूझ रहा विश्व

पिछले वर्ष से सम्पूर्ण विश्व कोविड-19 की महामारी से जूझ रहा है और अर्थ व्यवस्था भी पूर्णरूप से चरमरा गयी है । अभी तक विश्व में 17.25 करोड लोग संक्रमित हुये, 37.1 लाख लोगो की मृत्यु हो चुकी है और उनमें से 15.51 करोड लोग स्वस्थ हुये। विकास का पहिया रूक गया है । इस स्थिति से जब विश्व के समस्त विकसित व विकाशसील गुजर रहे हैं तो भारतवर्ष व अन्य विकाशसील देशो की स्थिति कोरोना, तूफानों, ग्लेसिअर के गिरने और अतिवृष्टि, सूखा आदि से बत से बत्तर हो रही है। आनेवाले समय में बच्चो का क्या भविष्य होगा, यह भी एक चिंतनीय विषय है।

ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण विश्व मानव को पर्यावरण सुरक्षा हेतु कारगर उपाय तत्काल ढूढ़ने व उसे तत्परता से लागू करने की आवश्यता है, जिससे वर्तमान में हो रही अप्रत्याशित घटनाओं में कमी लायी जा सके और आने वाली पीढ़ी को भी राहत मिल सके।

पर्यावरण (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

पर्यावरण सुरक्षा व पारिस्थितिकी तंत्र को रोकने व बहाली के लिये सार्थक उपायों में मुख्यतः हमें निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक होगाः-

• रोशनी मे परिवर्तन एल.ई.डी. बल्ब/एल.ई.डी. ट्यूब लाइट का प्रयोग

• अधिक से अधिक पेड़ों का लगाया जाना

• जल संरक्षण के सार्थक उपाय

• वैकल्विक ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग (जैसे-सोलर, बायोमास, मिनी हाइड्रो)

• ग्रामीण रोजगार की बढ़ोत्तरी

• तापीय बिजली घरों का नवीनीकरण

• वाहनों में बिना ज्वलनशील ईधन का उपयोग

• इलेक्ट्रानिक उपकरणों का जब प्रयोग न हो तो बन्द रखना।

• पालीथीन बैग की जगह कागज व कपड़े के थैलों का उपयोग करना।

• पर्यावरण के मुद्दों के बारे में सूक्ष्म जानकारी दूसरों के साथ बांटना।

तीव्रता से पिघलते ग्लेसियर

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यदि वर्तमान में कारगर उपाय न किये गये तो वर्ष 2040 तक हाइड्रोकार्बन जिसका पृथ्वी से दोहन हो रहा है, लगभग समाप्त के कगार पर होगा व उत्तरी धु्रव पर बर्फ के तीव्रता से पिघलने के कारण नाम-मात्र ही बर्फ मौजूद रहेगी तथा विश्व के सभी पर्वतीय श्रृंखलाओं में जहां ग्लेसियर है, समाप्त हो जायेंगे, जिससे समुद्र की सतह में लगभग 13 से 14 फीट पानी की बढ़ोत्तरी होना सम्भव है तथा 2015 के वर्तमान शोध के अनुसार पृथ्वी के घूर्णन में परिवर्तन होना निश्चित है एवं पृथ्वी की गति में भी कमी आना सम्भव है, जिससे किसी भी अप्रत्याशित घटना होने से नकारा नहीं जा सकता है।

आइये हम प्रत्येक दिवस को 'पर्यावरण दिवस' मनाकर, सम्पूर्ण जनमानस को पर्यावरण संरक्षण हेतु निम्नलिखित नारे से झंकृत करें।

''पर्यावरण बचाओं - पृथ्वी बचाओ - जीवन बचाओ''

(नोट- ये लेखक के निजी विचार है।)

Chitra Singh

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