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world environment day theme 2021: पर्यावरण और स्वास्थ्य

पर्यावरण शब्द दो शब्दों "परि" अर्थात् हमारे चारों ओर और "आवरण"- हमें चारों ओर से घेरे हुए से मिलकर बना है।

D.P.Yadav
Written By D.P.YadavPublished By Raghvendra Prasad Mishra
Published on: 5 Jun 2021 11:19 AM GMT
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विश्व पर्यावरण दिवस पर सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

world environment day theme 2021: विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है। पर्यावरण शब्द दो शब्दों "परि" अर्थात् हमारे चारों ओर और "आवरण"- हमें चारों ओर से घेरे हुए से मिलकर बना है। अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है "चारों ओर से घेरे हुए"। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक और सचेत करना है। प्रकृति के बिना मानव जीवन की कल्पना संभव नहीं है।

विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का फैसला 1972 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद लिया गया। इसके बाद 5 जून, 1974 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक व जिम्मेदार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है।

बड़े पर्यावरणीय मुद्दे जो हमेशा पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते रहते हैं, जैसे- भोजन की बर्बादी, वनों की कटाई, बाढ़, ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ना और बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र इत्यादि को बताने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत की गई थी।

इस अभियान में पूरे विश्व का ध्यान आकृष्ट करने के लिए प्रत्येक वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है। इस दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रम इसी थीम को लेकर होते हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस, 2021 की थीम है "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली (Ecosystem restoration)" हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली बाग-बगीचे तैयार करके, पेड़-पौधे लगा करके, नदियों की साफ-सफाई करके, इत्यादि तरीकों से कर सकते हैं।

वर्ष 2020 के लिए विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "जैव विविधता (Biodiversity)", वर्ष 2019 में "वायु प्रदूषण (Air Pollution)" और 2018 में "बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन (Beat Plastic Pollution)" थी।

आधुनिक युग में हो रहे विकास के नाम पर मानव प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर तुला है, परिणाम स्वरूप मृदा, जल और वायु के भौतिक और रासायनिक गुणों में हानिकारक परिवर्तन दिखाई दे रहा है। ये हानिकारक परिवर्तन ही प्रदूषण का निर्माण करते हैं। बीसवीं सदी के आरंभ में मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों पर अध्ययन प्रारंभ हुआ।

बीसवीं सदी में यह ज्ञात हुआ कि मनुष्यों की गतिविधियों का प्रभाव पृथ्वी और प्रकृति पर हमेशा सकारात्मक ही नहीं पड़ता रहा है। पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। आज औद्योगिकरण के युग में पर्यावरण ही दूषित है, तो स्वच्छ भोजन, पानी एवं वायु की कल्पना कैसे की जा सकती है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण मानव के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है। प्रदूषित पर्यावरण के फलस्वरुप मनुष्य में अनेक रोगों का जन्म होता है।

जल प्रदूषण: कल कारखानों का दूषित जल नदी नालों में मिलकर इनके जल को अत्यधिक दूषित और विषैला करता है। प्रदूषित जल पीने से त्वचा रोग, पोलियो, पीलिया, टाइफाइड बुखार, पेचिस, अतिसार, कैंसर, गर्भपात, मंद विकास जैसी बीमारियां और विकृतियां जन्म लेती हैं। पेयजल में फ्लोराइड की अधिक मात्रा के सेवन से व्यक्ति के दातों में काले धब्बे पड़ जाते हैं, रीढ़ की हड्डी तथा जोड़ की हड्डी जकड़ जाती है। भारतवर्ष में प्रदूषित जल में स्नान करने से त्वचा रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

वायु प्रदूषण: हवा में अवांछित गैसों की उपस्थिति से वायु प्रदूषण में लगातार बेतहाशा वृद्धि हो रही है। कल कारखानों और मोटर वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण सांस लेने में कठिनाई होती है। वायु प्रदूषण बहुत से असाध्य रोगों को जन्म देता है। इसके कारण दृष्टि शक्ति में कमी, दमा व केंद्रीय स्नायु तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण की वजह से खांसी, त्वचा रोग, जननिक विकृति, जीन परिवर्तन आदि खतरे बढ़े हैं।

ध्वनि प्रदूषण: कल कारखानों, यातायात मोटर गाड़ियों और लाउडस्पीकरों की अत्यधिक तेज आवाज के कारण ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसके दुष्परिणाम स्वरूप चिड़चिड़ापन, गुस्सा, सुनने में दिक्कत, बहरापन, सरदर्द, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मानसिक विकृति, भूख न लगना इत्यादि रोग उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण के कारण भोजन में पारा एवं लेड की अनियमित मात्रा से स्त्रियों में गर्भपात, गर्भ का मंद गति से विकास, प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव और मासिक धर्म में अनियमितता इत्यादि विकृतियां उत्पन्न होती हैं। वास्तव में बीमारियों का अध्ययन और कुछ नहीं बल्कि मनुष्य और पर्यावरण का अध्ययन है। मनुष्य के स्वास्थ्य की कुंजी उसके वातावरण में ही होती है।

इस बार विश्व पर्यावरण दिवस ऐसे समय में है, जब भारत सहित पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। कोरोना महामारी ने बहुत से लोगों को उनके अपनों से असमय जुदा कर दिया है। लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका बहुत गहरा नकारात्मक और प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

जिस तरह मौजूदा समय में कोरोना महामारी के कारण जान बचाना लोगों की प्राथमिकता बना हुआ है। कोरोना महामारी ने एक बात साफ कर दी है कि इसका मुकाबला पूरी दुनिया एक साथ खड़ी होकर ही कर सकती है। तो फिर यही जज्बा और इच्छाशक्ति हम पर्यावरण बचाने के लिए क्यों नहीं कर सकते हैं। लोगों को पर्यावरण के प्रति चिंतित कराया जाना जरूरी है। पूरी दुनिया को उम्मीद करना चाहिए कि इस समय का अंधकार हम स्वच्छ और हरे-भरे वातावरण से मिटा देंगे।

पर्यावरणीय शोध में बहुत सी बातें भी निकल कर आती हैं जैसे कि एक शोध में सामने आया है कि तथाकथित शिक्षित लोग ही पारिस्थितिकी और पर्यावरण समरसता के विनाश के लिए उत्तरदाई होते हैं। वे प्रकृति को जड़ वस्तु मानते हैं, जो मानो मानव के उपयोग और शोषण के लिए ही बनी है। शोध से एक और दिलचस्प बात सामने आयी है कि जो लोग सामाजिक और आर्थिक तौर पर कमजोर होते हैं उन्हें कुदरती चीजों का फायदा पैसे वालों के मुकाबले ज्यादा होता है। मनुष्य के अस्तित्व के लिए पर्यावरण का पोषण और देखभाल आवश्यक है। जिसकी उपेक्षा की जा रही है।

प्रकृति और आधुनिकता का ख्याल रखते हुए पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कार्ययोजना एवं कदम की जरूरत है। इसके लिए जमीनी स्तर पर काम होना चाहिए।

लोगों को सोलर सिस्टम का उपयोग करना चाहिए तथा सरकार को इसके लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहित करना चाहिए। पर्यावरण को बचाने में साइकिल एक अहम रोल अदा कर सकती है, अधिक से अधिक लोगों को साइकिल का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

कचरा प्रबंधन को लेकर जन जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। लोगों को बिजली, पानी, भोजन सहित तमाम रोजमर्रा की चीजों को बर्बाद किए बिना आवश्यकतानुसार उचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। पर्यावरण को बचाना समाज व सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी है।बिना सम्मिलित प्रयास के पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता है। निश्चित रूप से पर्यावरण को लेकर लोगों की जागरूकता और जिज्ञासा बढ़ी है, लेकिन यह अभी पर्याप्त नहीं है।

सामूहिक चर्चा, गोष्ठी, टेलीविजन, अखबार इत्यादि माध्यमों से लोगों के अंदर जागरूकता फैलाई जा रही है। केवल पौधा लगाने से ही हरित भारत का सपना पूरा नहीं होगा। लोगों को जिम्मेदारी पूर्वक इन पौधों की देखभाल और संरक्षण भी करना होगा, तभी इसका मूल उद्देश्य प्राप्त हो पाएगा।

हमें पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए इसके देखभाल और संरक्षण के लिए हर संभव कोशिश करना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि पर्यावरण को राष्ट्रीय सुरक्षा की श्रेणी में रखे, क्योंकि अपने संसाधनों की रक्षा करना सीमा की सुरक्षा के समान ही जरूरी है।

(लेखक प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के प्रवक्ता हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

Raghvendra Prasad Mishra

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