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अपने स्नेही को रखे जीवित करके या लेकर नेत्रदान का संकल्प
संसार के सभी जीव और प्राणियों के लिए शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण होते है परंतु ईश्वर की इस शारीरिक संरचना में आंख का व दृष्टि का बहुत महत्व है।
संसार के सभी जीव और प्राणियों के लिए शरीर के सभी अंग महत्वपूर्ण होते है परंतु ईश्वर की इस शारीरिक संरचना में आंख का व दृष्टि का बहुत महत्व है क्योंकि आंखों के माध्यम से ही वह ईश्वर द्वारा प्रदत प्राकृतिक सुंदर और अपने जीवन के सभी कामों को करने में सक्षम होता है और जीवन का आनंद ले पाता है। आंखों की इतनी उपयोगिता को देखते हुए संसार में मरणोपरांत दृष्टि (आंखों ) को दान करने के लिए संकल्प दिवस के रूप में प्रत्येक वर्ष विश्व के विभिन्न देशों में 10 जून को विश्व दृष्टिदान संकल्प दिवस' के रुप में मनाया जाता है।
विश्व दृष्टिदान दिवस का उद्देश्य नेत्रदान के महत्व के बारे में व्यापक पैमाने पर जन जागरूकता पैदा करना है तथा लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आँखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है।
विकासशील देशों में प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं में से एक दृष्टिहीनता है।जन्म से अंधापन, दुर्घटना के कारण अनेक प्रकार के दृष्टि रोग या अन्य रोगों से होने वाली दृष्टि हानि और अंधापन के प्रमुख कारणों में से एक हैं।जिनकी वजह से लोग अपनी दृष्टिदान नहीं करते हैं। नेत्रदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए तमाम प्रयासों के बावजूद नेत्रदान करने वालों का आंकड़ा उत्साह बढ़ाने वाला नहीं है। नेत्रदान और कार्निया प्रत्यारोपण की वर्तमान आंकड़ों पर अगर गौर करें तो इसके दानदाता 1 %फ़ीसदी से भी कम है यही वजह है कि देश में 2500000 लोग अभी भी दृष्टिहीनता की चपेट में हैं। देश में हर साल 80 से 90लाख लोगों की मृत्यु होती है लेकिन नेत्रदान 25000 के आसपास ही होता है। अक्टूबर के दूसरे बृहस्पतिवार को हर साल विश्व दृष्टि दिवस भी मनाया जाता है। इसका मकसद आंखों की बीमारियों और समस्याओं को लेकर लोगों को जागरूक करना होता है ।अनेक सामाजिक संस्थाएं लोगों की मदद के लिए अधिक से अधिक नेत्रदान करने के लिए आई बैंक की स्थापना करके जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से नेत्रदान के लिए प्रेरित करते हैं।
भारत में दृष्टिदान करने वालों की संख्या बेहद कम
आज भी भारत में दृष्टिदान करने वालों की संख्या निम्नलिखित कारणों की वज़ह से बेहद कम हैं सबसे प्रमुख कारण सामाजिक एवं धार्मिक मिथक है अन्य कारण सामान्य जनता के बीच जागरूकता का अभाव। संस्थानों एवं अस्पतालों में अपर्याप्त सुविधाएं। श्रीलंका जैसे देश में तो नेत्रदान करना अनिवार्य है।
मृत्यु के उपरांत एक व्यक्ति चार लोगों को रोशनी दे सकता है पहले दोनों आंखों में से केवल दो ही कार्निया मिल पाती थी लेकिन अब नई तकनीक आने के बाद एक आंख में से दो कार्निया प्रत्यारोपित की जा रही है |डीमैट तकनीकी से होने वाला यह प्रत्यारोपण शुरू हो गया है| खास बात यह है कि व्यक्ति के मरने पर उसकी पूरी आंखें नहीं बदली जाती हैं केवल रोशनी वाली काली पुतलिया ही ली जाती है| दोनों कार्निया एक साथ नहीं बदली जाती है मौत के 6 घंटे तक कार्निया प्रयोग के लायक रहती है। नेत्र चिकित्सक अनुसार किसी की मृत्यु के पश्चात उस व्यक्ति की आंखों से केवल कार्निया मात्र पांच से दस मिनट के भीतर नेत्रदान का कार्य पूरा हो जाता है।
सामाजिक संस्थाएं कर रही लोगों को जागरूक, दूर कर रही मिथक है जबकि हमारी संस्कृति में दान का महत्व काफी है। धन, अन्न, विद्या, श्रम व रक्तदान, देहदान व शरीर के अंगों के दान की कड़ी में ही दृष्टिदान को भी मानव कल्याण के यज्ञ में आहुति के समान माना गया है।
ईश्वर की अनमोल देन आंखें
जैसा हम सभी जानते हैं कि ईश्वर की अनमोल देन आंखें हैं ।आंखों का देखभाल बहुत अच्छे से करना चाहिए । आंखों को सुरक्षित रखने में आंवले का इस्तेमाल बहुत लाभदायक होता है। नियमित रूप से नेत्र चिकित्सक से आंखों की जांच कराते रहना चाहिए ।चमकीले प्रकाश में कभी भी सीधे नहीं देखना चाहिए ।अधिक से अधिक पानी वह लाल गाजर के साथ हरी सब्जियां खूब खानी चाहिए । नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। अक्सर हम गंदे हाथों से आंखों को मसल लेते हैं ऐसा ना कर के साथ कोमल कपड़े से पानी से धोने के बाद साफ करना चाहिए ।आजकल मनुष्य का जीवन बिना कंप्यूटर और स्मार्टफोन के अधूरा माना जाता है ऐसे में आंखों के ऊपर बहुत अधिक स्क्रीन पड़ता है और रोशनी में कमी के साथ अनेक रोग उत्पन्न होते हैं इसलिए हमें अपनी लाइफ़ में कंप्यूटर और स्मार्टफोन का आवश्यक होने पर उपयोग करना चाहिए ।इन कुछ बातों का ध्यान रखने से हम अपनी आंखों की रोशनी को बरकरार रखने के साथ आंखों के रोगों से बचे रहेंगे ।
आगरा में दृष्टिदान के क्षेत्र में स्व श्री अशोक जैन भैया नाम प्रथम पंक्ति में आता है। इनकी टीम का सराहनीय प्रयास है और हो रहे हैं। 'कोरोना के चलते दृष्टिदान का काम रुका है ।आगरा विकास मंच लगभग 1100 दृष्टिदान करा चुकी है। यह कार्य अभी भी निरंतर चालू है । आगरा में दृष्टिदान में अनेक संस्था व नागरिक लगे है लेकिन एक नाम और है क्षेत्र बजाजा के श्री सुनील विकल भाई का बिना इनका ज़िक्र किए दृष्टिदान संकल्प अधूरा है ।
दृष्टिदान संकल्प दिवस पर हम सब भी दृष्टिदान का संकल्प लेकर इस महान यज्ञ में आहुति डालें व अपने जीवन को सार्थक बनाएं। मृत्युपरांत तो पूरा शरीर ही अग्नि में जल कर खाक हो जाना है। ऐसे में दो आंखें किन्हीं दो नेत्रहीनों की अंधेरी जिंदगी में रोशनी ला सकती हैं।
जीते-जीते रक्तदान, जाते-जाते नेत्रदान