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शाकाहार बन रहा विश्व-व्यापी

दुनिया के सबसे ज्यादा शुद्ध शाकाहारी लोग भारत में ही रहते हैं। ऐसे लोगों की संख्या 40 करोड़ से ज्यादा है। ये लोग मांस, मछली और अंडा वगैरह बिल्कुल नहीं खाते।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Vidushi Mishra
Published on: 20 Jan 2022 6:16 AM GMT
pure vegetarian
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शुद्ध शाकाहारी (फोटो-सोशल मीडिया)

क्या आपको यह जानकर आनंद नहीं होगा कि दुनिया के सबसे ज्यादा शुद्ध शाकाहारी लोग भारत में ही रहते हैं। ऐसे लोगों की संख्या 40 करोड़ से ज्यादा है। ये लोग मांस, मछली और अंडा वगैरह बिल्कुल नहीं खाते।

यूरोप, अमेरिका, चीन, जापान और मुस्लिम देशों में मुझे कई बार यह वाक्य सुनने को मिला कि 'हमने ऐसा आदमी जीवन में पहली बार देखा, जिसने कभी मांस खाया ही नहीं।' दुनिया के सभी देशों में लोग प्रायः मांसाहार और शाकाहार दोनों ही करते हैं।

लेकिन एक ताजा खबर के अनुसार ब्रिटेन में इस साल 80 लाख लोग शुद्ध शाकाहारी बननेवाले हैं। वे अपने आप को 'वीगन' कहते हैं। अर्थात वे मांस, मछली, अंडे के अलावा दूध, दही, मक्खन, घी आदि का भी सेवन नहीं करते। वे सिर्फ अनाज, सब्जी और फल खाते हैं।

इसका कारण यह नहीं है कि वे पशु-पक्षी की हिंसा में विश्वास नहीं करते। वे भारत के जैन, अग्रवाल, वैष्णव और कुछ ब्राह्मणों की तरह इसे अपना धार्मिक कर्तव्य मानकर नहीं अपनाए हुए हैं। इसे वे अपने स्वास्थ्य के खातिर मानने लगे हैं। न तो उनका परिवार और न ही उनका मजहब उन्हें मांसाहार से रोकता है लेकिन वे इसलिए शाकाहारी हो रहे हैं कि वे स्वस्थ और चुस्त-दुरुस्त दिखना चाहते हैं।

मुंबई के कई ऐसे फिल्म अभिनेता मेरे परिचित हैं, जिन्होंने 'वीगन' बनकर अपना वजन 40-40 किलो तक कम किया है। वे अधिक स्वस्थ और अधिक युवा दिखाई पड़ते हैं। सच्चाई तो यह है कि शुद्ध शाकाहारी भोजन आपको मोटापे से ही नहीं, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और हृदय रोगों से भी बचाता है।

इसे किसी धर्म-विशेष के आधार पर विधि-निषेध की श्रेणी में रखना भी जरा कठिन है, क्योंकि सब धर्मों के कई महानायक आपको मांसाहारी मिल सकते हैं। वैसे किसी भी मजहबी ग्रंथ में यह नहीं लिखा है कि जो मांस नहीं खाएगा, वह घटिया हिंदू या घटिया मुसलमान या घटिया ईसाई माना जाएगा।

वास्तव में दुनिया में मांसाहार बंद हो जाए तो प्राकृतिक संसाधनों की भारी बचत हो जाएगी और प्रदूषण भी बहुत हद तक घट जाएगा। इन विषयों पर पश्चिमी देशों में कई नए शोध-कार्य हो रहे हैं और भारत में भी शाकाहार के विविध लाभों पर कई ग्रंथ लिखे गए हैं। दूध, दही, मक्खन और घी आदि के त्याग पर कई लोगों का मतभेद हो सकता है।

यदि वे 'वीगन' न होना चाहें तो भी खुद शाकाहारी होकर और लाखों-करोड़ों लोगों को प्रेरित करके एक उच्चतर मानवीय जीवन-पद्धति का शुभारंभ कर सकते हैं। अब शाकाहार अकेले भारत की बपौती नहीं है। यह विश्वव्यापी हो रहा है।


Vidushi Mishra

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