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चीन की वुहान लैब, बढ़ता शीतयुद्ध और सुपर पावर बनने की होड़

अब चीन मुश्किल में पड़ा है । लेकिन, चीन की अभी भी मंशा यही है कि किसी प्रकार डोनाल्ड ट्रम्प को मात दे दें और विश्व का नम्बर एक आर्थिक शक्ति बनकर के उभरें और डोनाल्ड ट्रम्प इसे किसी प्रकार से होने देने के लिए तैयार नहीं हैं। अब देखिये आगे क्या होता है।

राम केवी
Published on: 22 April 2020 1:33 PM IST
चीन की वुहान लैब, बढ़ता शीतयुद्ध और सुपर पावर बनने की होड़
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vuhan lab scientist

आर. के. सिन्हा

एक तरफ तो पूरा विश्व कोरोना से दिन-रात लड़ाई लड़ रहा है तो दूसरी ओर अमेरिका और चीन शीतयुद्ध का रूख अख्तियार कर रहे हैं। सबसे पहले डोनाल्ड ट्रम्प ने चीन के साथ पक्षपात और चीन की तरफदारी का आरोप लगाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन को आर्थिक सहायता देना बंद कर दिया।

डोनाल्ड ट्रम्प की तीन बातें

विश्व स्वास्थ्य संगठन को जितना आर्थिक मदद साल भर में चाहिए, उसका एक तिहाई तो अमेरिका ही देता है। ऐसी स्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने बड़ा आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। लेकिन, राष्ट्रपति ट्रम्प तो इतने भर से नहीं रूके। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से मृतकों की संख्या में अमेरिका नम्बर एक नहीं है। असली नम्बर एक तो चीन ही है । उसने मौतों की संख्या को छिपाया है।

तीसरी बात डोनाल्ड ट्रम्प ने कही कि अमेरिका तो बुहान के चीनी लैब बुहान इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी में अपना जांच दल भेजेगा, जो इस बात की पुष्टि करेगा कि चीन ने अपने बुहान के लैब में ही कोरोना का वायरस तैयार किया है कि नहीं । अगर यह साबित हो गया कि चीन के बुहान स्थित प्रयोगशाला में मानव निर्मित कोरोना का वायरस तैयार हुआ है, तो अमेरिका चीन को इसका सबक भी सिखायेगा और आर्थिक दंड भी वसूलेगा।

चीन के मौन के मायने

हालांकि, चीन के राष्ट्रपति ने इन सभी में से किसी आरोपों का कोई न तो खंडन किया है न ही स्वीकारा है। मौन व्रत धारण कर रखा है। तो हमारे यहां तो एक कहावत मशहूर है- “मौनम् स्वीकृति लक्ष्णम्।” कहीं यह स्वीकृति का लक्षण तो नहीं है। यह बात संदिग्ध तो लगती ही है। डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि जो चीन में मरने वालों की संख्या है, वह अमेरिका से कहीं अधिक है । चीन अपने मृतकों की संख्या छुपा रहा है।

ट्रम्प मानने को तैयार नही

व्हाइट हाउस में पिछले शनिवार को आयोजित अपने प्रेस कांफेंस में डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ कहा कि हम पहले स्थान पर कत्तई नहीं है। चीन ही पहले स्थान पर है। मृतकों की संख्या की लिहाज से वे हमसे कहीं आगे है। हम तो उनके आसपास भी नहीं है। जब उच्च विकसित स्वास्थ्य प्रणालियों से देखभाल करने वाले देश ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्पेन में मृतकों की संख्या इतनी अधिक थी, तो चीन में मात्र एक प्रतिशत से भी कम कैसे हो सकती है, वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।

खुफिया रिपोर्ट पर ट्रम्प का बयान

चीन के मृतकों के आकड़ों को सच्चाई से कोसो दूर बताया है ट्रम्प ने । उन्होंने पत्रकारों से कहा- “मैं इसे जानता हूँ । आप भी इसे जानते हैं। लेकिन, आप इसकी सही रिर्पोटिंग नहीं करना चाहते है। क्यों नहीं करना चाहती है मीडिया । मीडिया को इसे बताना होगा। किसी दिन इसे मैं जरूर बताउॅगा।” ट्रम्प का इतना सख्त बयान एक खुफिया रिपोर्ट पर आधारित है जिसका हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि चीन के आकड़ों का रिपोर्ट पूरी तरह संदिग्ध है। चीन ने आकड़ों को छुपाया है। इसके पहले कुछ अमेरिकी सांसद भी चीन पर आकड़ों को छुपाने का आरोप लगा चुके हैं।

नोबल विजेता का गहरी साजिश का इशारा

इसी बीच फ्रांस के वैज्ञानिक और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. लुक मोन्टाग्नियर ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि कोविड-19 माहामारी फैलाने वाले वायरस की उत्पति तो चीन के प्रयोगशाला बुहान इंस्टीच्यूट आफ वायरोलाजी में ही हुआ है। यह एक मानव निर्मित वायरस है। हालांकि उन्होंने यह बताया कि यह प्रयोगशाला एड्स की बीमारी को फैलने से रोकने वाले एचआईवी की वैक्सीन बनाने की खोज कर रही थी आज से नहीं सन् 2000 से । इसी वैक्सीन बनाने के क्रम में यह वायरस उत्पन्न हो गया, जिसको तत्काल चीन को छुपाना चाहिए था और वहीं समाप्त कर देना चाहिए था। लेकिन, लगता है कि चीन ने इसे एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करने की एक गहरी साजिश के तहत इस प्रयोग को जारी रखा।

कोरोना में हैं एचआईवी के जीनोम

फ्रांस के सी न्यूज चैनेल को दिये गये अपने इन्टरव्यू में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो. लुक ने बताया कि एचआईवी के जीनोम खोज के कारण ही उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है। क्योंकि, कोरोना वायरस में एचआईवी के जीनोम में मौजूद हैं मलेरिया के कीटाणुओं के तत्वों के होने की भी आशंका है। उनका यह स्पष्ट दावा है कि कोविड-19 में कोरोना वायरस के जीनोम में एचआईवी और मलेरिया के तत्व हैं। यह इस बात को सिद्ध करता है कि इस वायरस का एचआईवी के जिनोम से संबंध है।

प्रो. लुक मानते हैं वुहान प्रयोगशाला में जन्मा वायरस

एशिया टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भी चीनी शहर बुहान की प्रयोगशालाओं को वर्ष 2000 से ही कोरोना वायरस में विशेषज्ञता हासिल हो गयी थी। प्रो. लुक मोन्टाग्नियर को मेडिसीन में एड्स के वायरस को पहचान करने के लिए वर्ष 2008 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इन्हीं तथ्यों के आधार पर उनका कहना है कि कोविड-19 वायरस का जन्म चीन के बुहान प्रयोगशाला में ही हुआ है। यही बात अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा और यही बात कई अन्य देशों के वैज्ञानिक और राष्ट्राध्यक्ष भी कह रहे हैं।

चमगादड़ों के जरिये आया, फिर भी चीन ने छिपाया

प्रो. लुक का कहना है कि यह वायरस चमगादड़ों के जरिये आया है। और उनका यह भी कहना है कि इसका “पेसेंट जीरो” यानि पहला संक्रमित व्यक्ति इसी लैब का एक वैज्ञानिक था जो गलती से संक्रमित हो गया। इतनी पुख्ता बात यदि कोई नोबेल पुरस्कार विजेता कहेगा ऐसा तो लगता नहीं है कि वह बात हल्की होगी। लेकिन, एक बात सही है कि वायरस के फैलने के बाद लगभग एक सप्ताह तक चीन के प्रशासन ने इस वायरस के संक्रमण के बारे में विश्व को तो छोड़ दीजिए अपने नागरिकों तक को भी नहीं बताया। जिस समय यह वायरस उत्पन्न हुआ, वही चीनी नव वर्ष का समय था ।

अब चीन मानने को तैयार नहीं

चीनी नव वर्ष चीन के नागरिक या चीन में पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति चाहे वह सिंगापुर का नागरिक हो या अमेरिका का नागरिक हो, बहुत धूमधाम से मनाते हैं। चीनी नव वर्ष मनाने के लिए हजारों की संख्या में लोग यूरोप और अमेरिका घूमने गये और यही कारण है कि यह वायरस तेजी से अमेरिका और यूरोप में भी फैला। चीनी प्रशासन इस बात को मानने के लिए अब भी तैयार नहीं है।

तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका

अब समस्या यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प की साख जो पहले से ही खराब थी, अब और गिर गयी है। अगले वर्ष ही उन्हें राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ना है। ऐसी स्थिति में उनके सामने पुनः सत्ता में वापस आने के लिए शायद अब यही उपाय बच रहा है कि वे चीन के साथ सख्ती अपनाये। इससे अमरीकी नागरिक खुश होंगें। लेकिन, समस्या यह है कि चीन ने यदि उस सख्ती का जवाब भी सख्ती से दे दिया तो तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका है। लेकिन, डोनाल्ड ट्रम्प जिस प्रकार के जिद्दी स्वभाव के इंसान हैं, वे क्या करेंगे और कब करेंगे, यह तो सर्वथा अनिश्चित है।

चुनौती को ऐसे अवसर में बदला

जब कोरोना वायरस फैला तो चीन ने तो सख्ती से लॉकडाउन के नियमों का पालन करवा के, कर्फ्यू लगा के और जिस प्रकार की कड़ाई का अंदेशा या उसका आभास तक भारत या अमेरिका में लोग नहीं कर सकते हैं, वैसी कड़ाई करके किसी प्रकार कोरोना पर काबू पा ही लिया। अब चीनी नागरिकों पर किस प्रकार की कड़ाई हुई, उसके कई वीडियो भी वायरल हुए हैं।

इसलिए मैं तो उसपर कुछ ज्यादा नहीं कहना चाहता। लेकिन, जब कोरोना पर चीन ने विजय पा लिया तो चीनी प्रशासन के शातिर दिमाग ने यह सोचा कि क्यों नहीं इस चुनौती को अवसर में बदल दिया जाये । इसके लिए उसने धड़ल्ले से और धूमधाम से लाइटिंग और आतिशबाजी का शो करके कार्य करना शुरू कर दिया। कोरोना पैदा भी चीन ने किया और अब कोरोना के मास्क और व्यक्तिगत सुरक्षा के किट (पीपीई)सहित वेंटिलेटर भी पूरे विश्व को धड़ल्ले से बेच भी रहा है। यही डोनाल्ड ट्रम्प को बुरी तरह खल गया।

आर्थिक ताकत बनना चाहता है

चीन चाह रहा है कि इस अवसर का लाभ उठा कर वह विश्व की नम्बर एक आर्थिक ताकत बन जाये। अमेरिका किसी कीमत पर यह होने देना नही चाहता है। चीन में कम्युनिस्ट तानाशाही है। एक ही पार्टी का शासन है, और अत्यंत सख्त शासन है। छोटी सी बात पर गोली मार देना तो सामान्य सी बात है। लेकिन, चीन की एक मजेदार बात है जिसे सारे लोग नहीं जानते होंगे। चीन अपने को कम्युनिस्ट कहता तो जरूर है, लेकिन चीनी शासन जितनी बड़ी पूंजीवाद व्यवस्था का समर्थक है, शायद उतना अमेरिका भी नहीं।

चीन की जितनी कंपनियां हैं छोटी हों या बड़ी । सरकारी तो उसकी शत प्रतिशत हैं ही, यदि वे प्राइवेट कंपनियां हैं तब भी 30 प्रतिशत, 40 प्रतिशत, 45 प्रतिशत, कई मामलों में तो 51 प्रतिशत से ज्यादा भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का ही शेयर है। यानि एक तरफ तो वे अपने को कम्युनिस्ट कहते हैं और दूसरी तरफ कंपनियों की कमाई से प्राप्त धन को अपनी पार्टी को और अपने पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को और पार्टी के कार्यक्रमों को सारा खर्च उससे चलाते हैं।

कंपनियों में पैसा लगाने का खेल

भारत में भी कई चीनी कंपनियों का बड़ा भारी निवेश है। अब भारत ने भी अपनी एफडीआई यानि कि फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट की छूट दे रखी है। कि तरह की कंपनी में आप 49 प्रतिशत तक पूंजी लगा सकते हैं। किसी तरह की कम्पनी में आप 75 प्रतिशत तक पूंजी लगा सकते हैं और किस तरह की कंपनी में 100 प्रतिशत। लेकिन, जब इस कोरोना वायरस के संक्रमण काल में पूरे विश्व का शेयर बाजार नीचे गिरा तो उसका फायदा चीन ने और चीन के कम्युनिस्ट पार्टी ने उठाना शुरू कर दिया।

लगभग सभी देशों में चीन के प्रशासन ने अपनी कंपनियों के माध्यम से, अपने एजेंटों के माध्यम से अच्छी-अच्छी कंपनियों में पूंजी लगाना शुरू कर दिया । लेकिन, भारत का प्रशासन, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाला प्रशासन सजग था और सचेत था। जब चीन ने एचडीएफसी बैंक में अपने शेयर को बढ़ाने की चाल चली, तो भारत सरकार ने तुरंत अपनी एफडीआई के नियमों में बदलाव करते हुए एक नया कानून बनाया कि जिन-जिन देशों की सीमाएं भारत से मिलती हैं जैसे श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यामार और चीन, इन देशों का कोई भी एफडीआई, कोई भी निवेश यदि वे भारतीय कंपनियों में करना चाहेंगें वह बिना भारत सरकार के पूर्वानुमति के नहीं हो सकेगा।

चीन की खलबलाहट और छटपटाहट

भारत के इस कदम से चीन खलबला गया। उसको पूंजी निवेश के नियमों में ऐसी बदलाव की आशंका तो नहीं थी। वह तो इस चक्कर में था कि चलो इसी बहाने भारत की कुछ अच्छी कंपनियों को हथिया लिया जाये। बाद में शेयर बाजार तो ठीक होगा ही। तब मजे करेंगे।

इस प्रकार चीन ने, चीन के नई दिल्ली स्थित दूतावास ने छटपटाहट में यह बयान दिया कि यह तो बड़ी ज्यादती हो रही है। भारत वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के नियमों का उल्लंधन कर रहा है। लेकिन, भारत ने कहा कि भाई जो हमारे सीमावर्ती देश हैं, हम उनके साथ किस प्रकार का राजनीतिक, आर्थिक संबंध रखें, यह निर्णय करने के पहले हमको सबसे पहले राष्ट्रीय सुरक्षा का ध्यान रखना पड़ेगा। क्योंकि हम राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता तो कर ही नहीं सकते हैं।

अब चीन मुश्किल में पड़ा है । लेकिन, चीन की अभी भी मंशा यही है कि किसी प्रकार डोनाल्ड ट्रम्प को मात दे दें और विश्व का नम्बर एक आर्थिक शक्ति बनकर के उभरें और डोनाल्ड ट्रम्प इसे किसी प्रकार से होने देने के लिए तैयार नहीं हैं। अब देखिये आगे क्या होता है।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

राम केवी

राम केवी

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