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योग का आयोग पूरे भारत में बने

Yog Aayog: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने अपने प्रदेश में एक 'योग आयोग' स्थापित करने की घोषणा की है।

Dr. Ved Pratap Vaidik
Written By Dr. Ved Pratap VaidikPublished By Chitra Singh
Published on: 5 Dec 2021 8:21 AM IST
yog aayog
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योग आयोग (फोटो- सोशल मीडिया)

Yog Aayog: यदि भारत को महासंपन्न और महाशक्तिशाली बनाना है तो हमारा सबसे ज्यादा जोर शिक्षा और चिकित्सा (education and medicine) पर होना चाहिए, यह निवेदन मैंने अपने कई प्रधानमंत्रियों और मुख्यमंत्री से किया है। इन क्षेत्रों में थोड़ी प्रगति तो हुई है लेकिन अभी बहुत काम होना बाकी है। मुझे यह जानकार बड़ी खुशी हुई कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने अपने प्रदेश में एक 'योग आयोग' स्थापित करने की घोषणा की है।

योग गुरु बाबा रामदेव (Baba Ramdev) को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने सारे भारत में योग का डंका बजा दिया है। उन्हीं के कार्यक्रम में इस योग आयोग की घोषणा हुई है। क्या संयोग है कि यह योग का आयोग है। लेकिन एक बार देश के सभी लोगों को अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि योग का अर्थ सिर्फ शारीरिक व्यायाम नहीं है। सिर्फ आसन और प्राणायाम ही नहीं है। यह तो एकदम शुरुआती चीज़ है। वास्तव में अष्टांग योग ही योग है।

योग दर्शन में योग की परिभाषा (yog ki paribhasha) करते हुए मंत्र कहता है- 'योगश्च चित्तवृत्ति निरोधः।।' याने योग मूलतः चित्तवृत्ति का नियंत्रण है। यदि आपका काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह पर नियंत्रण है तो आप सच्चे योगी हैं। भारत और विदेशों में मैं ऐसे कई योगियों को जानता रहा हूं, जो योगासन तो बहुत बढ़िया सिखाते हैं लेकिन उनकी चित्तवृत्ति पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। वे कंचन-कामिनी के फेर में अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। कभी-कभी जेल की हवा भी खाते हैं। वे जीवेम शरदः शतं का पाठ रोज करते हैं लेकिन सौ वसंत देखने के बहुत पहले ही वे परलोकगमन कर जाते हैं।

योग दर्शन (फोटो- सोशल मीडिया)

गीता के इस श्लोक (Geeta ke Shlok in Hindi) पर ध्यान दीजिए— मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । याने अपने बंधन और मोक्ष का असली कारण मन ही है। मन पर नियंत्रण हो तो खान-पान और व्यायाम भी सदा सधा हुआ रहेगा? आप बीमार ही क्यों पड़ेंगे? मैं 90-95 वर्ष के ऐसे लोगों से भी परिचित हूं, जिन्हें मैंने कभी किसी बीमारी से ग्रस्त नहीं पाया। वे कहते हैं कि मन स्वस्थ रहे तो शरीर भी स्वस्थ रहता है और शरीर स्वस्थ रहे तो मन भी बुलंद रहता है।

शास्त्रों में कहा भी गया है कि 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनं'। याने धर्म का पहला साधन शरीर है। शरीर गया तो सब कुछ गया। शरीर बचा रहे तो खोया हुआ आनंद भी लौटाया जा सकता है। भारत में तन और मन, दोनों की सहित-साधना की प्राचीन परंपरा रही है, इसी कारण भारत विश्व गुरु कहलाता था और विश्व का सबसे धनी देश बना हुआ था। जो काम मध्यप्रदेश की सरकार शुरु कर रही है, यदि उसे देश के सभी स्कूलों और सरकारी दफ्तरों में अनिवार्य कर दिया जाए तो आप देखेंगे कि भारत को एक ही दशक में विश्व-शक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता। भारत की शिक्षा-प्रणाली सारे विश्व के लिए अनुकरणीय बन जाएगी और चिकित्सा पर खर्च भी काफी घट जाएगा। योग का आयोग सिर्फ मध्यप्रदेश में ही क्यों, सारे देश में क्यों न बने?



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Chitra Singh

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