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BJP Hindutva Ideology: गुफ्तगू बंद न हो, बात से बात चले
BJP Hindutva Ideology: 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में किसी भी मुस्लिम को टिकट दिये बिना नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई।
BJP Hindutva Ideology: संघ प्रमुख मस्जिद में गये। मदरसों में बच्चों से मिले। मुस्लिम बुद्धिजीवियों से मंत्रणा की। मज़ार पर ज़ियारत की। इन सब ने देश की सियासत का पारा बढ़ा दिया है। सवाल पूछा जाने लगा है कि क्या संघ बदल रहा है? साफ्ट हो रहा है? जबकि भाजपा कट्टर हिंदुत्व की ओर लौट रही है और इसका भाजपा और नरेंद्र मोदी को फ़ायदा मिलता भी दिख रहा है।2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में किसी भी मुस्लिम को टिकट दिये बिना नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। दूसरे दलों के भी केवल चार फ़ीसदी मुसलमान सांसद जीत पाये। यही नहीं, 2017 और 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने किसी मुसलमान को टिकट दिये बिना प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने का कारनामा कर दिखाया। पूर्वांचल के एक छोटे से इलाक़े में हिंदुत्व के पैरोकार योगी आदित्य नाथ के हवाले उत्तर प्रदेश कर दिया।
इन चुनावी नतीजों को मुसलमानों की जनसंख्या और विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा मुसलमानों के प्रति दया के भाव रखने के स्वाँग के मद्देनज़र देखे जाने की ज़रूरत है। दरअसल, मुसलमानों को मज़हब के तहत भड़काया गया। भाजपा को छोड़ सभी राजनीतिक दलों ने उन्हें यह कह कर गुमराह किया कि वह व उसके नेता मुसलमानों की मज़हबी पहचान की हिफ़ाज़त करेंगे। इससे मुस्लिम समाज का विकास ठप पड़ गया।तालीम, नौकरी, सेहत और आधुनिकतावाद के मोर्चे पर मुसलमान पिछड़ते चले गये। इसे इसी से समझा जा सकता है कि 2006 में आई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट किसी ने लागू नहीं की। पर मुसलमान यह समझने की जगह इस पर इतराता रहा कि हर दल के नेता के लिए वह अपरिहार्य हो उठा है! नेता उसके साथ रोज़ा इफ़्तार कर रहे हैं, ईद - बक़रीद आदि पर मस्जिदों में जा रहे हैं। मुसलमानों का हर पर्व राजकीय मन और बन रहा था। लेकिन मुसलमानों ने कभी इन नेताओं से यह नहीं पूछा कि अपने धर्म के प्रति उनकी क्या आस्था है। वह मंदिर गये हैं या नहीं? नेताओं और पार्टियों के इस मुस्लिम प्रेम के नतीजतन, हिंदू समुदाय में अल्पसंख्यक के नाम पर हर योजनाओं को हड़प जाने और राजनीतिक दलों के प्रिय पात्र होने को लेकर लाग-डाट शुरू हो गयी। उधर, नरेंद्र मोदी ऐसा न करने के चलते राजनीतिक व मीडिया समुदाय में अस्पृश्य बनते जा रहे थे।
मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंदुओं को एक प्लेटफार्म
राम मंदिर आंदोलन में मुसलमानों की अदूरदर्शिता व हठधर्मिता ने भी मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंदुओं को एक प्लेटफार्म दिया। यही वजह है कि बात केवल अयोध्या पर खत्म नहीं हुई है। अब मथुरा व काशी को भी पूरा करने की मंशा है।
मुसलमान, भाजपा को छोड़ हर सरकार में 'प्रिविलेज क्लास' में बने रहने के लिए अलग-अलग तरह की जद्दोजहद करते रहे। उन्हें 'इक्वल क्लास' का होना गंवारा नहीं था। हिंदुस्तान के मुसलमानों ने अपनी विविधताओं वाली पहचान को जड़ से उखाड़ कर, उसकी जगह अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम एकता वाली तस्वीरें बना लीं। हिजाब, दाढ़ी, टोपी, नमाज़, मदरसों और जिहाद वाली पहचान के क़रीब जाने लगे। विवाह, विरासत और वक़्फ़ से जुड़े मुसलमानों के अधिकार मुस्लिम व्यक्तिगत क़ानूनों द्वारा नियंत्रित होने लगे। रही सही कसर लव जिहाद ने पूरी कर दी।
ये सब परिवर्तन ओढ़ते समय मुसलमान यह भूल गये कि राय वर्मा कुल शेखर के आदेश से 629 ईस्वी में भारत में मस्जिद बना दी गयी थी। भारत में मुसलमानों की आबादी का नब्बे फ़ीसदी से अधिक ऐसी है, जिनकी तीन, चार, पाँच पीढ़ियों तक देखें तो वे हिंदू ही मिलेंगे। तभी संघ प्रमुख यह कहते हैं कि हिंदू - मुसलमान का डीएनए एक है। पर इससे भी कोई संकेत जुटाने को मुसलमान तैयार नहीं दिखते हैं। इसके बरक्स सईद नकवी कहते हैं कि क़ौम परेशान हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत में मुसलमानों के उत्पीड़न की बात उठाते हैं। लेकिन चीन के उडगर मुसलमानों के बारे में बोलने की उनकी हिम्मत नहीं है। पाकिस्तान जब-जब भारत में आतंकी हमले करता है तब-तब भारतीय मुसलमानों को अपनी अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है। पर पाकिस्तान को लानत भेजने वाले मुसलमान बिरले ही मिलते हैं।
मुस्लिम महिलाओं में भाजपा का जनाधार बढ़ा
तीन तलाक़ के मोदी के फ़ैसले से अठारह से पचास साल तक की मुस्लिम महिलाओं में भाजपा का जनाधार बढ़ा है। राजनीतिक तौर पर यह तय हो गया कि बिना मुस्लिम मतों के हिंदू अपनी व बहुमत की सरकार बनाते रहेंगे। जिस भी नेता का सरकार बनाने का सपना होगा। उसे बहुमत की सियासत करनी होगी। तभी तो राहुल- प्रियंका त्रिपुंड लगाये दिखते हैं। केजरीवाल हनुमान चालीसा बांचते हैं, ममता चंडी पाठ सुनाती हैं। अखिलेश यादव को भगवान कृष्ण के सपने आने लगे हैं। पर यह भी सही है कि मुसलमानों के बिना हिंदुस्तान पूरा नहीं होता। यह बात दोनों को सोचनी चाहिए।
यह अच्छा संदेश है कि इस बात को मुट्ठी भर ही सही, मुसलमानों ने सोचा। संघ प्रमुख से मिलने की इच्छा जताई। इनमें पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. क़ुरैशी, दिल्ली के पूर्व लेफ़्टिनेंट गवर्नर नज़ीब जंग, अलीगढ़ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जमीरूद्दीन शाह,पत्रकार शाहिद सिद्दीक़ी, उद्योगपति सईद शेरवानी तथा ऑल मुस्लिम इमाम आर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमेर अहमद इलियासी हैं। ये वही मुसलमान हैं जिनके नामों पर क़ौम गर्व करती और इतराती रही है। हालाँकि संघ प्रमुख से बातचीत के बाद इनसे मुँह मोड़ा जाना शुरू हो गया है। संघ प्रमुख ने नया कुछ नहीं किया। उन्होंने संघ की परंपरा निभाई। पाँचवें संघ प्रमुख के.एस. सुदर्शन के काल से बातचीत का यह सिलसिला जारी है। पर कर्नाटक के हिजाब विवाद, नुपूर शर्मा विवाद, उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे, काशी विश्वनाथ की अदालती लड़ाई, लव जिहाद पर आये क़ानून तथा दोनों ओर से जारी हेट स्पीच के मद्देनज़र यह ताजा मुलाक़ात ख़ास महत्व रखती है। पर इस संवाद से अब तक के विवाद तभी हल हो सकते हैं, जब मुस्लिम पक्ष ज़्यादा दूरी तय करे। वह 'इक्वल सिटीज़न' की तरह रहना चाहे। मज़हबी पहचान की हिफ़ाज़त के सियासी दावों को ठोकर मारे। लोकतंत्र में संख्या बल बनने से खुद को दूर रखे।
हिंदुस्तानी मुसलमान
मुस्लिमों को अच्छी तरह समझना होगा और खुले दिल से प्रदर्शित करना होगा कि वह हिंदुस्तानी मुसलमान है, किसी अरब देश का कबीलाई मुस्लिम नहीं है जो 1500 साल पुराने रीति रिवाजों की जंजीरों से बंधा हुआ है।
संघ प्रमुख जब मुस्लिमों के डीएनए की बात करते हैं तो वे इसी हिंदुस्तानी मुसलमान की बात करते हैं जो न अरबी है और न पाकिस्तानी और न ईरानी। संघ प्रमुख, मुसलमानों को मात्र मुसलमान नहीं बल्कि भारत का एक समान नागरिक होने की बात करते हैं।
सच्चाई यह है कि 20 फीसदी से ज्यादा इस आबादी को न खत्म किया जा सकता है, न देश से बाहर फेंका जा सकता है और न उनका अस्तित्व बदला जा सकता है। शायद संघ की भी यही सोच है। और इसीलिए इस समुदाय को 'इंक्लूसिव'सकरने की एक बेहतरीन कोशिश है।
बेहतर है, मुस्लिम भी ये जान लें कि भारत देश, बीते हजार साल में तमाम हालातों के बावजूद अपनी पहचान अक्षुण्ण बनाये हुए है सो इस समुदाय को अरबी पहचान की नकल करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। उसे 'इंक्लूसिव' तो होना ही पड़ेगा।