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रंग दे... रंग दे... मोहे रंग दे... लेकिन गाढ़े पक्के रंग से, योगी जी
राग - ए- दरबारी
संजय भटनागर
लखनऊ: लगभग सैतींस वर्ष पहले साहित्य के क्षेत्र में ‘गंभीर’ और व्यंग्य साहित्य के लेखकों के बीच एक संग्राम छिड़ गया था जिसमें उस समय की प्रसिद्ध पत्रिका ‘धर्मयुग’ में एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार ने किसी ‘गंभीर’ लेखक पर टिप्पणी की थी। उन्होंने लिखा था ‘उन्होंने उपन्यास लिखे तो उसका स्तर बढ़ा, कविता लिखी तो उसका स्तर बढ़ा लेकिन जब वह नदी में उतरे तो मायूस हो गए क्योंकि उसका स्तर नहीं बढ़ा।’ ऐसी ही एक नदी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तैयार की है जिससे उनका मायूस होना निश्चित है। यह नदी है भगवा की।
सचिवालय भवन, सरकारी बस, सरकारी विद्यालय और जो सुनने में आ रहा है सरकारी अस्पताल भी, सब भगवा रंग में रचे जा रहे हैं। किसानों की कर्ज माफी के बाद धन की कमी से जूझ रहा प्रदेश इस परिवर्तन पर जनता का कितना पैसा खर्च कर सकता है, इसकी सीमा कौन तय करेगा यह गौण है, मूल सवाल कि क्या है जरूरी था। ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ ने भी वही काम किया जो पिछले दो सत्तारूढ़ दलों ने किया जो ‘पार्टीज विदआउट डिफरेंस’ थीं।
योगीजी, क्या रंग बदलने से राजकीय परिवहन निगम की बसें माइलेज ज़्यादा देने लगेंगी, क्या सचिवालय एनेक्सी का रंग भगवा कर देने से अधिकारी और कर्मचारी अधिक निष्ठा से कार्य करने लग जायेंगे, क्या शिक्षा का स्तर एकदम से सुधर जायेगा, क्या डॉक्टर की कमी भगवा रंग से पूरी हो सकेगी। यदि नहीं तो इस कवायद की क्या आवश्यकता आन पड़ी योगी जी। अब छोडिय़े ये सब, करिये आत्मवलोकन कि क्या नया किया आपकी सरकार ने, सिवाय पिछली सरकार की कमियां गिनने के। अगर पिछले शासनकाल में अनाप शनाप खर्चे किये भी गए तो आपने सारे काम बंद करवाने के बजाए क्यों नहीं पैसे का सदुपयोग करने की योजना बनाई। नकारात्मक राजनीति छोडिय़े सकारात्मक कार्य कीजिये।चलिए, पॉलिटिक्स और इकोनॉमिक्स को छोड़ कर साइकोलॉजी की बात करते हैं। आपको पता है हरा रंग अस्पतालों में ही नहीं, अनेक सार्वजानिक स्थानों पर स्नायु को शांत करता है। ताजमहल के नितांत अनावश्यक विवाद के बाद अधिकारी की बातों में आकर यह सब मत करवाइए। जनता की संपत्ति का निर्मम दुरुपयोग हमने लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में देख लिया, दुखी भी हुए और आक्रोशित भी। अब आप भी यही करेंगे तो कैसे काम चलेगा क्योंकि 325 का बहुमत ले लेकर सब दल सत्ता में नहीं आते हैं। एक राजनीतिक दल के तौर पर जनता के धैर्य की परीक्षा लेने का यह अंदाज गलत है, योगीजी।
आप ही सोचिये कि थानों के भवनों का रंग बदलना जरूरी है या पुलिस का चरित्र? प्राथमिक विद्यालयों के भवन भगवा करना जरूरी है कि साक्षरता शत-प्रतिशत करना। क्यों बर्बाद कर रहे है सरकारी पैसा चूने और रंग पर। उत्तर प्रदेश की विशाल जनसंख्या बदलता हुआ नीला, लाल, हरा रंग बहुत देख चुकी है, अब रंगों की दुनिया से बाहर आकर वास्तविकता का रंग देखिये और दिखाईये। आपके पास तो समय काफी है लेकिन जनता के पास बहुत कम। भगवा ही क्यों, बहुरंगी सपने देखिये और पूरे कीजिये। और रंग ही चढ़ाना है तो इतना गाढ़ा और पक्का चढ़ाइये जो उतर न पाए।
(लेखक न्यूजट्रैक/अपना भारत के कार्यकारी संपादक हैं)