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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रहस्योद्घाटन! ...जाति ही पूछो साधु की
योगेश मिश्र
गोरक्षपीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान चुनाव प्रचार के दौरान अलवर में एक जनसभा के दौरान यह रहस्योद्घाटन किया कि भगवान हनुमान दलित हैं। उनके मुताबिक बजरंगबली हमारी भारतीय परंपरा में ऐसे लोक देवता हैं, जो स्वयं वनवासी हैं, गिरवासी हैं, दलित हैं, वंचित हैं। सभी भारतीय समुदाय को उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक जोडऩे का कार्य बजरंगबली करते हैं। वह अली और बजरंगबली के बीच का अंतर जनता को समझा रहे थे। प्रसंग भले ही योगी के चित्त भाव को प्रकट कर रहे हों पर उदाहरण उससे तालमेल नहीं खा रहा था। क्योंकि हिंदू अथवा सनातन धर्म का कोई भी देवता जाति की परंपरा से ऊपर रहा है। इसीलिए तो भगवान राम को क्षत्रिय, कृष्ण को यादव और शंकर को जनजाति का कहीं भी किसी साहित्य में नहीं बताया गया है। हालांकि भगवान शंकर की शोभा गले में सांप, वस्त्रहीन, नंदी की सवारी, जटाधारी उस पर चंद्रमा का विराजना और श्मशानवासी।
अभी कहावतों में भगवान शंकर की बारात बेमेलपन का सबसे बेजोड़ उदाहरण है। हनुमान, वानरराज केशरी की पत्नी से पवनदेव के पुत्र हैं। हालांकि दक्षिण में यह मान्यता जरूर है कि हनुमान जी शिव और मोहनी रूपी विष्णु के पुत्र है। हनुमान जी दलित होंगे तो पवन दलित हो जाएंगे। भीम महाभारत में खुद को हनुमान जी का भाई और वायु नंदन बताते हैं। हनुमान सुग्रीव के मंत्री थे। प्राचीन भारत में मंत्री का ओहदा ब्राह्मणों के लिए आरक्षित था। हनुमान जी दूत थे। दलित को दूत बनाने की परंपरा का जिक्र नहीं मिलता है। सुंदर कांड में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं- श्वर्ण शैलाभदेहम। यानि बिल्कुल सोने के रंग जैसे। हनुमान चालीसा में उन्हें कंचनवरण कहा गया है। कांधे मूंज जनेऊ छाजै लिखा गया है। उन्हें अष्ट सिद्वि नव निधि के दाता कहा गया है। वे वेदग्य थे। तभी तो उन्हें सकल गुणनिधान बताया गया है।
उन्हें शंकर का अवतार भी कहा जाता है। शंकर जी ने वानर रूप धारण क्यों किया इसके अनेक मनोरम वृतांत वेदादिशास्त्रों तथा रामायण में हैं। एक वृतांत के अनुसार श्री राम बाल्य काल से भगवान शिव की आराधना करते थे। जब नारायण ने नर रूप धारण किया तब शिव ने वानरावतार धारण कर उनका मार्ग निष्कंटक किया। तुलसीदास ने इस रहस्य को दोहावली तथा विनय पत्रिका में प्रकट भी किया है। शिव के अंश से उत्पन्न होने के नाते उन्हें शिवात्मज और शंकर सुवन कहा गया है। अर्जुन के रथ की ध्वजा पर स्थित होने के नाते उन्हें फाल्गुनसख कहते हैं। गरुण के वेग के समान समुद्र लांघने के चलते उन्हें उदधिक्रमण कहा गया है। कभी पराजित न होने के चलते वे अपराजित बताये जाते हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान अध्ययन के लिए सूर्य के पास गये, जहां उन्होंने सभी वेद विद्याएं, सरहस्य समस्त आगम, पुराण, नीति एवं अर्थशास्त्र तथा दर्शन का अध्ययन किया। भगवान राम ने इनके वाक्पाटव और लक्ष्मण ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उस कालखंड में जातियां जन्मना नहीं होती थीं। जातियां कर्मणा थीं। हनुमान जी को जिस तरह का ज्ञान, भगवत सानिध्य, अष्ट सिद्ध, नवनिधि हासिल थी, उससे यह तो कहा ही जा सकता है कि वह इतना सब कुछ होने के बाद दलित नहीं रह सकते थे। हनुमान की तरह का कोई भी व्यक्ति अगर जन्मना दलित भी रहा हो तो भी सनातन परंपरा में उसे द्धिज का ओहदा प्राप्त हुआ है। हनुमान तो साक्षात भगवान थे। आज के समय में सबसे लोकप्रिय और पूज्यनीय भगवानों में हैं। हर भगवान के मंदिर में हनुमान का विग्रह मिलता है।
भगवान तो छोडिय़े महापुरुष भी जातीय खांचों से ऊपर होते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जाति, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु, बिस्मिल, सरदार पटेल, चंद्रशेखर आजाद, कबीर, तुलसी, वाल्मीकि, रहीम, रसखान, तिलक, गोखले, सुभास चंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण, डॉ. लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय सरीखे हमारे अनंत ऐसे पूर्वज हैं जिनकी जातियों के बारे में बीसवीं शताब्दी में किसी को पता नहीं था। उनकी जाति के लोग भी उनकी जयंती सिर्फ अपने कुनबे में मनाना तौहीन समझते थे। लेकिन 21वीं शताब्दी में ऐसा नहीं है। अब महापुरुष की, प्रेरणा पुरुष की और संत की जाति महत्वपूर्ण हो गई है। आदमी की पहचान उसके गुणों से अधिक उसकी जाति से हो रही है। वर्तमान कालखंड जातीय खंड है। जाति ही मनुष्य की अस्मिता है। मनुष्य की शक्ति है। मनुष्य जातीय घेरे में ही जी रहा है। इसीलिए राष्ट्रपति के लिए दलित, प्रधानमंत्री के लिए पिछड़ा, मुख्यमंत्रियों के लिए अगड़ी जातियों का होना बड़ा आधार हो गया है। महत्वपूर्ण व्यक्ति होना नहीं है, जाति होना है। जातीय अस्मिता जागृत करना आज की सियासत का सबसे बड़ा काम है। यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ के बयान पर खामोशी ओढ़ लेने, हनुमान को दलित कहने पर खेद महसूस करने की जगह इस लाइन को और तीखा और गहरा करने का चलन तेज कर दिया गया है।
अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय ने कहा कि जनजातियों में हनुमान गोत्र होता है। लिहाजा हनुमान जी जनजाति के थे। मायावती ने यह मुनादी पीट दी है कि दलित लोग हनुमान मंदिरों पर कब्जा करके पुजारी बनें। हालांकि यह बात उस मायावती ने कही है जो हिंदू देवी-देवताओं की पूजा नहीं करने का संदेश दलितों को देती थीं। उन्होंने खुद को ही जिंदा देवी करार दिया था। भाजपा से इस्तीफा देने वाली बहराइच सांसद सावित्री बाई फूले ने कहा कि मनुवादी राम ने दलित हनुमान को गुलाम बनाया। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। यही कारण है कि अब उत्तर प्रदेश के हनुमान जी के मंदिरों में गैर दलित पुजारियों की ताजपोशी का सिलसिला चल निकला है। आगरा में दलितों की जमात ने हनुमान मंदिर के पुजारी को बेदखल कर दिया। लखनऊ के हजरतगंज इलाके में स्थित एक हनुमान मंदिर के पुजारी को भी दलितों ने बेदखल करने के लिए घेर लिया। हनुमान मंदिरों में दलित पुजारी बनाए जाने का सिलसिला दलित नेताओं और जनता ने मिलजुल कर शुरू कर दिया है। अब राजनीति को धर्म और धर्म को राजनीति से गड्डमड्ड करने वाले राजनीतिक दलों के सामने एक नई चुनौती आन खड़ी हुई है। कांग्रेस ने राममंदिर का ताला खुलवाया, शिलान्यास करवाया। लेकिन वह राममंदिर का श्रेय लेने की स्थिति में नहीं है। भाजपा जिसने अयोध्या, मथुरा, काशी से संजीवनी प्राप्त की वह अयोध्या पर दो कदम आगे बढऩे की स्थिति में नहीं है। धर्म के छेड़े हुए तार ऐसी ही स्थिति पैदा करते हैं, जिसमें सांप और छछूंदर की स्थिति हो जाती है।
(लेखक अपना भारत/न्यूजट्रैक के संपादक हैं)