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Dev Diwali 2023: जानिए क्या है देव दिवाली की विशेषता, किस तरह मनाया जाता है ये पर्व

Dev Diwali 2023: जानिए देव दिवाली को वाराणसी में लोग कितनी धूम धाम के साथ मानते हैं साथ ही क्यों ये पर्व हिन्दूओं के लिए है बेहद ख़ास।

Shweta Srivastava
Published on: 26 Nov 2023 4:15 AM GMT (Updated on: 26 Nov 2023 4:16 AM GMT)
Dev Diwali 2023
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Dev Diwali 2023 (Image Credit-Social Media)

Dev Diwali 2023: देव दीपावली एक पूजनीय भारतीय त्योहार है जो हिंदू समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। ये पावन त्योहार फिलहाल 26 नवंबर, रविवार को है और भक्त इसे धूमधाम से मानते हैं। ये भव्य त्योहार,हर साल उत्तर प्रदेश के पवित्र शहर वाराणसी में आयोजित किया जाता है। आइये जानते हैं इसे कैसे मनाया जाता है और क्या इसकी विशेषता है।

देव दीपावली की विशेषता

देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही पड़ती है, और ये उत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शुरू होता है और पांचवें दिन, कार्तिक पूर्णिमा तिथि (पूर्णिमा की रात) पर समाप्त होता है। इस विशेष दिन पर राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की विजय का स्मरण किया जाता है। परिणामस्वरूप, उत्सव को अक्सर त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।


द्रिकपंचांग के अनुसार प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त 26 नवंबर 2023 को शाम 5:08 बजे से शाम 7:47 बजे तक है। मुहूर्त की कुल अवधि 2 घंटे 39 मिनट है। इस बीच, पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3:53 बजे शुरू होगी और 27 नवंबर को दोपहर 2:45 बजे समाप्त होगी।


देव दिवाली राक्षस त्रिपुरासुर पर भगवान शिव की जीत का जश्न मनाती है। वाराणसी शहर इस त्योहार के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस शुभ अवसर पर देवता पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं।


वाराणसी में देव दिवाली का उत्सव शहर की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत में गहराई से निहित है। ये दिन बुराई पर अच्छाई की विजय, अंधकार पर प्रकाश की दिव्यता और मानवता और परमात्मा के बीच पवित्र संबंध का भी प्रतीक है।


कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पर, भक्त गंगा नदी में पवित्र स्नान करते हैं और देव दीपावली पर मिट्टी के दीपक या दीये जलाते हैं। वहीँ शाम को लाखों मिट्टी के दीपक गंगा नदी के किनारे सभी घाटों की सीढ़ियों को रोशन करते हैं। सिर्फ गंगा घाट ही नहीं, बल्कि वाराणसी के सभी मंदिर लाखों दीयों से रोशन हो जाते हैं।


हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस तारकासुर के तीन पुत्र थे - विद्युन्माली, तारकाक्ष और कमलाक्ष, जिन्हें त्रिपुरासुर कहा जाता था। त्रिपुरासुर ने अपनी तपस्या से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न किया और अमरता का वरदान माँगा। भगवान ब्रह्मा ने उन्हें आशीर्वाद तो दिया लेकिन ये भी कहा कि वे केवल एक ही बाण से मारे जा सकते हैं। आशीर्वाद मिलते ही त्रिपुरासुर ने कहर बरपाया और भारी विनाश किया। उन पर काबू पाने के लिए, भगवान शिव ने त्रिपुरारी या त्रिपुरांतक का रूप धारण किया और एक ही तीर से उन सभी को मार डाला। भक्तों का मानना ​​है कि इस विजय के उपलक्ष्य में, देवी-देवता वाराणसी में अवतरित हुए और लाखों दीये जलाए गए।


इस पवित्र त्योहार को देव दीपावली के नाम से जाना जाता है क्योंकि भगवान शिव द्वारा राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय पाने के बाद देवताओं ने इस दिन दिवाली मनाई थी। देव दीपावली पर, भक्त जल्दी उठते हैं और गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं, शाम को दीये जलाते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं।


ऐसी भी मान्यता है कि कुछ लोग देव दिवाली को युद्ध के देवता भगवान कार्तिक की जयंती के रूप में भी मनाते हैं, और कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने "मत्स्य" के रूप में अपना पहला अवतार भी लिया था।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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