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आखिर कहां चूक हो गई कमलनाथ से ?
मध्यप्रदेश में राजनीतिक के चाणक्य कहे जाने वाले कमलनाथ से आखिर कहां चूक हो गयी कि उनकी नाक के नीचे भाजपा ने आपरेशन कमल चला दिया और उनको कानों कान खबर तक नही हो पाई।
श्रीधर अग्निहोत्री
नई दिल्ली: मध्यप्रदेश में राजनीतिक के चाणक्य कहे जाने वाले कमलनाथ से आखिर कहां चूक हो गयी कि उनकी नाक के नीचे भाजपा ने आपरेशन कमल चला दिया और उनको कानों कान खबर तक नही हो पाई। कमलनाथ के राजनीतिक जीवन की यह यह सबसे बड़ी चूक कही जाएगी। वरना इंदिरा गांधी संजय गांधी और राजीव गांधी के साथ काम करने वाले तथा 09 बार से छिंदवाड़ा के सांसद कमलनाथ की सरकार पर संकट न आने पाता। चार दशकों से राजनीति में सक्रिय कमलनाथ का छिड़वादा लोकसभा क्षेत्र उनका अभेद दुर्ग रहा है और उनके राजनीतिक कौशल का ही नतीजा रहा है कि मोदी की सुनामी भी उनका किला नहीं हिला सकी।
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मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद जब कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब से ज्योतिरादित्य समर्थकों की नाराजगी दिख रही थी। वहीं दूसरी तरफ ज्योतिरादित्य भी कांग्रेस संगठन में गहरी अभिरूचि नहीं दिखा रहे थें। यहां तक कि जब यूपी विधानसभा चुनाव में उन्हे पश्चिमी उप्र का प्रभारी बनाया गया तो भी उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। यहां तक कि इस चुनाव में कांग्रेस जब चारो खाने चित्त हो गयी तो भी न तो उन्होंने हार की कोई समीक्षा की और न ही कोई ऐसे संकेत दिए कि वह कांग्रेस के सच्चे सिपाही हैं।
लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ इन सारी गतिविधियों को भांपने में पूरी तरह से नाकाम रहे। ज्योतिरादित्य को भाजपा तक लाने और फिर गृहमंत्री अमित शाह व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाने वाले कोई और नहीं, बल्कि भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम हैं। यह वही जफर इस्लाम हैं जिन्होने आए दिन टीवी पर भाजपा के लिए बहस करते दिखाई देते हैं और उनकी तथा ज्योतिरादित्य सिंधिया की मित्रता काफी पुरानी है।
ज्योतिरादित्य और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले एक दशक से खास रहे जफर इस्लाम और ज्योतिरादित्या की लगातार पांच से छह मुलाकातों को भी भांपने में भी कमलनाथ पूरी तरह नाकाम रहे। इन सभी मुलाकातों के समय भी जफर इस्लाम उनके साथ थे। लेकिन कमलनाथ का खुफिया तंत्र इस सबका पता नहीं कर सका।
2018 में पहली बार कमलनाथ खुलकर सामने आए थे
मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह के सक्रिय रहते कमलनाथ कभी आगे नहीं आए लेकिन 2018 में पहली बार कमलनाथ खुलकर प्रदेश की राजनीति में कूदे और छा गए। पहले उन्होंने दिग्विजय सिंह को राजनीतिक पटकनी और फिर ज्योतिरादित्य सिंधियों को किनारे लगाया। जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गांधी के काफी करीबी माने जाते रहे हैं लेकिन कमलनाथ ने उन्हे पटकनी दी और खुद को मध्यप्रदेश चुनाव के पहले ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करवा लिया। इसके बाद उन्होने एक दशक से अधिक सत्ता पर काबिज शिवराज सिंह चैहान को पटकनी देने की ठानी और विधानसभा चुनाव में अपने बल पर उन्हे सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
इधर जब राज्यसभा चुनाव का नंबर आया तो उन्होंने राज्यसभा के लिए प्रियंका गांधी का नाम आगे कर दिया जिससे ज्योतिरादित्य के राज्यसभा में जाने वाले रास्ते को रोका जाए। ज्योतिरादित्य इसे लेकर भी काफी हताश दिखने लगे थें। देश की राजनीति में सक्रिय रहे कमलनाथ ने संगठन के विभिन्न पदों पर काम किया है। सोनिया गांधी के कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से लगातार उनके खासमखास रहे। पर राहुल गांधी के साथ उनका तालमेल बहुत अच्छा नहीं कहा गया।
कमलनाथ अपनी सरकार को लेकर फिक्रमंद नहीं थें उन्हे लग रहा था कि बहुत ज्यादा पांच विधायकों का ही उन्हे समर्थन मिला हुआ है। उनका खुफिया तंत्र भी इस मामले में भी पूरी तरह से फेल साबित हुआ क्योंकि जिस तरह से सिंधिया ने 22 विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया तो इसकी उम्मीद कमलनाथ खेमा नहीं लगा पाया।
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मध्यप्रदेश में इस राजनीति उठापटक ने यह तो साबित ही कर दिया कि सिंधिया परिवार को राजनीति की हर करवट का पता रहता है क्योंकि राजनीति उन्हे विरासत में मिली है दादी पिता से लेकर बुआ तक के राजनीति में सक्रिय होने के कारण ही ज्योतिरादित्य ने कमलनाथ को चारो खाने चित्त कर दिया। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महाआर्यमन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने पिता के फैसले को स्वागत योग्य और साहसिक बताते हुए यह संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में भी मध्यप्रदेश की राजनीति की कल्पना बिना सिंधिया परिवार के नहीं की जा सकती है।
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