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Annadurai death anniversary: गुरु के खिलाफ तलवार उठा हीरो बन गया अन्ना

1969 में मद्रास का नाम बदलकर तमिनलनाडु नया राज्य बना। अन्ना द्रविड़ियन पार्टी के पहले सदस्य थे जिन्होंने तमिलनाडु राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में इस पद को अपनी मृत्यु तक सम्हाला। अन्ना का निधन आज तीन फरवरी के दिन ही 1969 में हुआ था।

राम केवी
Published on: 3 Feb 2020 2:51 PM IST
Annadurai death anniversary: गुरु के खिलाफ तलवार उठा हीरो बन गया अन्ना
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रामकृष्ण वाजपेयी

कौन थे काँजीवरम नटराजन अन्नादुरई जिन्हें अन्ना या अरिगनार अन्ना भी कहते हैं। और कैसे अन्ना की बदौलत मद्रास प्रेसीडेंसी आज का तमिलनाडु बन गई। बहुत ही रोचक है इसकी कहानी। जिसमें अन्ना की भूमिका भी कहीं से कमतर नहीं है।

अन्नादुरई एक ऐसे भारतीय राजनेता हैं जो तमिलनाडु के रूप में अपने सच हुए सपने को देखने के लिए केवल 20 दिन के लिए तमिलनाडु के पहले मुख्यमंत्री रहे। लेकिन इससे उनकी राजनीतिक लड़ाई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। क्योंकि वह मद्रास राज्य के पांचवें और अंतिम मुख्यमंत्री भी रहे।

1969 में मद्रास का नाम बदलकर तमिनलनाडु नया राज्य बना। अन्ना द्रविड़ियन पार्टी के पहले सदस्य थे जिन्होंने तमिलनाडु राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में इस पद को अपनी मृत्यु तक सम्हाला। अन्ना का निधन आज तीन फरवरी के दिन ही 1969 में हुआ था।

अन्नादुरई अपनी भाषण देने की कला के लिए मशहूर थे। वह तमिल भाषा के एक मशहूर लेखक भी रहे। उन्होंने तमाम नाटकों में अभिनय किया और उनकी स्क्रिप्ट लिखी। उनके कुछ नाटकों पर बाद में फिल्में भी बनीं। अन्ना द्रविड़ पार्टियों के ऐसे पहले नेता थे जिन्होंने तमिल सिनेमा का इस्तेमाल राजनीतिक प्रोपेगंडा के लिए किया।

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अन्नादुरई को जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इन्होंने टीचर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। इसके बाद मद्रास प्रेसीडेंसी के राजनीतिक परिदृश्य को एक पत्रकार के रूप में समझा। अन्ना ने तमाम पालिटिकल जर्नल का संपादन किया और द्रविड़ार कजमग की सदस्यता ली। उन्होंने पेरियार ई वी रामासामी के अंधभक्त के रूप में पार्टी में अपनी हैसियत बनायी।

गुरु के खिलाफ खोल दिया था मोर्चा

पेरियार के साथ द्रविड़ नाडु के अलग स्वतंत्र राज्य और उसके भारतीय संघ में शामिल होने के मुद्दे पर अन्ना ने अपने राजनीतिक गुरु के खिलाफ तलवार खींच ली थी। दोनो के बीच इस जंग को तब विराम लगा जब पेरियार ने अपने से 40 साल छोटी मनिअम्माई से शादी कर ली।

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पेरियार के इस कदम से नाराज अन्नादुरई ने अपने समर्थकों के साथ द्रविड़ार कजगम को छोड़कर नई पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम का गठन किया। हालांकि उनकी नीतियां शुरुआत में द्रविड़ार कजगम की ही रहीं।

1962 के भारत चीन युद्ध के बाद भारत के संविधान और राष्ट्रीय राजनीति में बड़े बदलाव को देखते हुए अन्नादुरई ने स्वतंत्र द्रविड़ नाडु राज्य की मांग को छोड़ दिया। लेकिन सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के खिलाफ तमाम आंदोलन करते हुए उन्हें तमाम अवसरों पर जेल भी जाना पड़ा। जिसमें 1965 का मद्रास हिन्दी विरोधी आंदोलन प्रमुख और आखिरी था।

रिकार्ड तोड़ सफलता

1965 के आंदोलन से अन्ना दुरई की लोकप्रियता का ग्राफ इतना बढ़ गया कि 1967 के चुनाव में उनकी पार्टी रिकार्ड मतों से जीती। उस समय उनकी कैबिनेट सबसे युवा कैबिनेट थी। उन्होंने स्व-सम्मान विवाहों को वैध बनाया, दो भाषा नीति लागू की (अन्य दक्षिणी राज्यों में तीन भाषा फार्मूले को तुलना में), चावल के लिए सब्सिडी लागू की और मद्रास राज्य का नाम बदलकर तमिलनाडु किया।

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हालांकि वह दो साल के कार्यकाल को ही पूरा कर पाए और कैंसर से तीन फरवरी को उनका निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में अपार जनसमूह उमड़ा था। बाद में 1972 में एमजी रामचंद्रन ने उनके नाम को लेकर पार्टी बनायी आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कजगम। जिसकी बाद में जयललिता नेता हुईं।

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