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महज 2 साल में UP को बदलने की बड़ी चुनौती, असंतुष्ट मन से दिल्ली लौटे सीनियर IAS नृपेंद्र मिश्र
उत्तर प्रदेश की सरकार के पास पांच साल का नहीं बल्कि केवल दो साल का समय है। इतने काम समय में ही यू पी को बदल देने की बहुत बड़ी चुनौती है।
संजय तिवारी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की सरकार के पास पांच साल का नहीं बल्कि केवल दो साल का समय है। इतने काम समय में ही यू पी को बदल देने की बहुत बड़ी चुनौती है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व में बनने वाली यूपी सरकार ने अभी कार्यभार भी ग्रहण नहीं किया है, लेकिन बीजेपी सरकार ने पहले से ही कार्य करना शुरू कर दिया है। राज्य के शीर्ष ब्यूरोक्रेट्स और पुलिस अधिकारी जानते हैं कि 2019 के मध्य में आम चुनाव होने हैं और इसी को ध्यान में रखकर वो योजनाओं का खाका खींच रहे हैं और उनकी समीक्षा कर रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) शासन के 15 सालों के प्रशासनिक तौर-तरीकों का मूल्यांकन किया जा रहा है। पीएमओं के शीर्ष ब्यूरोक्रेट नृपेंद्र मिश्रा और कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा दोनों ही यूपी कैडर से आते हैं, जिसका सीधा मतलब है कि दोनों को केंद्रीय स्तर पर राज्य के प्रशासन की गहरी समझ है। नृपेंद्र मिश्र खुद उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक ढांचे की पड़ताल कर आज ही (शनिवार,18 मार्च) दिल्ली लौटे हैं। प्रदेश की वर्तमान नौकरशाही को लेकर वह काफी असंतुष्ट नजर आए। वह दो दिन लखनऊ में रह कर काफी कुछ समझने के बाद दिल्ली गए हैं।
उत्तर प्रदेश के एक जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं कि हमारे पास यूपी को बदलने के लिए पांच साल का समय नहीं है। हमारे पास अभी केवल दो साल हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान हमारे प्रदर्शन का स्कैन होगा। उम्मीदें बहुत बड़ी हैं। इसलिए, यह उत्तर प्रदेश के लिए एक त्वरित विकास मॉडल होगा। कानून-व्यवस्था, 24 घंटे की बिजली आपूर्ति, कत्लखानों को बंद करना, कृषि ऋण छूट और गन्ना की बकाया राशि का भुगतान आदि तात्कालिक प्राथमिकताएं हैं। इस बारे में राज्य के अधिकारियों को जानकारी दे दी गई है।
यूपी के वरिष्ठ अधिकारी गहनता से बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र का अध्ययन कर रहे हैं और यह जानने की कोशिश कर रहै हैं कि किस तरह से 30 पेज के घोषणा पत्र की घोषणाओं को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाए। ब्यूरोक्रेट्स और अधिकारी जानते हैं कि उनसे सरकार और जनता को क्या उम्मीदे हैं। मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने पहले ही विभागों को निर्देश दे दिया है कि वे अपनी रिपोर्ट्स तैयार रखें। भटनागर ने बताया, 'जैसा कि नई सरकार जल्द ही कार्यभार संभालने वाली है, मैंने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि वे अपनी मुख्य योजनाओं की प्रगति रिपोर्ट तैयार रखें। हमने नई सरकार के लिए एक नई बुकलेट तैयार रखी है। नई सरकार द्वारा जो भी दिशा-निर्देश मिलेंगे, हम उनका पालन करेंगे।'
ब्यूरोक्रेट्स चुनाव के दौरान कत्लखाने बंद किए जाने जैसे चुनावी वादों और इनसे रोजगार पर पड़ने वाले असर का भी गहनता से विश्लेषण कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इस तरह के वादों के महत्व का भी अंदाजा है। ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की एक टीम लखऩऊ में है और पीएम मोदी के सभी को 24 घंटे बिजली देने के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए बैठकें कर रही हैं। उत्तर प्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसने अभी तक परियोजना पर हस्ताक्षर नहीं किए है।
चुनाव प्रचार के दौरान बिजली मंत्री पीयूष गोयल द्वारा बार-बार इस मुद्दे का उल्लेख भी किया गया था। बिजली मंत्री ने 15 मार्च को दिल्ली से एक नोटिस लखनऊ को जारी किया था जिसमें इस बात का उल्लेख था कि कि यूपी के ऊर्जा सचिव से इस बारे में "चर्चा" हुई थी। जिससे साफ संकेत मिलता है कि केंद्र 2019 तक सभी को बिजली देने के अपने लक्ष्य को लेकर कितना गंभीर है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि कानून-व्यवस्था सबसे बड़ा और प्राथमिक मुद्दा है। सभी अधिकारी जानते हैं कि बीजेपी जनता की सुरक्षा को लेकर एक संदेश देना चाहती है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि रेप के आरोपी और सपा सरकार के पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को गिरफ्तार कर एक महीने के लिए पुलिस कस्टडी में भेजना भी पुलिस के नए संकल्प का ही संकेत था।