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सात सीटों के उपचुनाव में भाजपा को विपक्ष से मिल रही है कड़ी चुनौती

भाजपा के लिए विधानसभा उपचुनाव का मौका राजनीति के लिहाज से सुनहरा नहीं कहा जा सकता है। प्रदेश में सरकार होने के बावजूद भाजपा को उपचुनाव में कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने सोच-समझकर हर सीट पर दांव खेला है।

Newstrack
Published on: 15 Oct 2020 10:30 AM GMT
सात सीटों के उपचुनाव में भाजपा को विपक्ष से मिल रही है कड़ी चुनौती
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सात सीटों के उपचुनाव में भाजपा को विपक्ष से मिल रही है कड़ी चुनौती (Photo by social media)

अखिलेश तिवारी

लखनऊ: विधानसभा के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष से सीधी चुनौती मिलती दिखाई दे रही है। कम से कम पांच ऐसी सीट हैं जहां भाजपा का पुराना इतिहास अच्छा नहीं रहा है। ऐसे में 2017 विधानसभा चुनाव का इतिहास दोहराना आसान नहीं होगा। चुनाव में विपक्ष के मतों का बिखराव ही उम्मीद की वह किरण है जिस पर सवार होकर भाजपा विधानसभा के अंदर कमल की पंखुड़ियों की ताजगी बरकरार रख सकती है।

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भाजपा के लिए विधानसभा उपचुनाव का मौका राजनीति के लिहाज से सुनहरा नहीं कहा जा सकता है। प्रदेश में सरकार होने के बावजूद भाजपा को उपचुनाव में कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने सोच-समझकर हर सीट पर दांव खेला है। कांग्रेस ने भी सधे समीकरण के दम पर भाजपा को घेरे में ले लिया है। ऐसे में भाजपा संगठन और सरकार दोनों के लिए यह मौका बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है।

मतदाता तो हकीकत की जमीन पर खड़े होकर ही अपना फैसला सुनाएंगे

प्रदेश की जिन सात सीटों पर चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से कम से कम पांच सीटें देवरिया, मल्हनी, घाटमपुर, बुलंदशहर और नौगवां सादात ऐसी हैं जहां भाजपा के सिर पर जीत का सेहरा पार्टी जनाधार के बजाय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की वजह से बंधता रहा है। ऐसे में इस बार जब भाजपा के साथ 2017 जैसी स्थितियां और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डबल इंजन वाली सरकार का सपना भी नहीं है तो मतदाता तो हकीकत की जमीन पर खड़े होकर ही अपना फैसला सुनाएंगे।

देवरिया विधानसभा क्षेत्र

देवरिया सीट पर भाजपा ने पिछले दो चुनाव जनमेजय सिंह के साथ जीते लेकिन इससे पहले भाजपा कभी इस सीट पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई। इस सीट पर समाजवादी पार्टी , कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी में ही टक्कर होती रही है। 2012 और 2017 में भाजपा के जन्मेजय सिंह को जीत मिली जो पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं और पहले विधायक रह चुके थे। 2002 में इस सीट पर नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी के दीनानाथ कुशवाहा को जीत मिली थी जबकि सपा के रामनगीना यादव दूसरे नंबर पर रहे। 2007 में दीनानाथ कुशवाहा ने सपा का दामन थाम लिया और जीतने में कामयाब रहे। ऐसे में इस सीट पर भाजपा के वोट बैंक में जन्मेजय सिंह का भी हिस्सा है जिसने भाजपा को दो बार विजय श्री दिलाई।

मल्हनी विधानसभा क्षेत्र

जौनपुर का मल्हनी विधानसभा क्षेत्र पहले रारी विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। बाहुबली से राजनेता बने धनंजय सिंह इस सीट से दो बार विधायक बने। 2009 में जब वह सांसद निर्वाचित हुए तो उनके पिता ने उपचुनाव में इस सीट पर कब्जा जमा लिया लेकिन 2012 और 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के नेता पारसनाथ यादव ने धनंजय सिंह के राजनीतिक रसूख को अपने मजबूत समाजवादी आधार के दम पर पटखनी दे दी। धनंजय तब से लगातार इस सीट को वापस पाने की जुगत लगाए हुए हैं।

भाजपा से उन्होंने नजदीकी भी बढ़ाई लेकिन भाजपा उनके साथ अपना रिश्ता जोडऩे का खुल्लमखुल्ला साहस नहीं जुटा सकी। ऐसे में इस सीट पर भी मुकाबला सपा व धनंजय सिंह से ही होने की उम्मीद की जा रही है। भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों की मेहनत से माहौल में बदलाव लाया जा सकता है लेकिन अभी इसके आसार नहीं हैं।

By-Elections-UP By-Elections-UP (photo by social media)

टूंडला विधानसभा क्षेत्र

टूंडला सुरक्षित सीट पर भाजपा के सांसद डॉ एसपी सिंह बघेल की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। वह इस सीट का कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और उनके समुदाय के मतदाताओं की इस सीट पर निर्णायक हैसियत है। समाजवादी पार्टी ने इसी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए महराज सिंह धनगर को मैदान में उतारा है। महाराज सिंह धनगर और एसपी सिंह बघेल के एक ही समुदाय से होने की वजह से क्षेत्र के सजातीय मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है। ऐसे में इन दोनों में ही आमने-सामने का संग्राम होना तय है।

बुलंदशहर विधानसभा क्षेत्र

बुलंदशहर सीट पर भाजपा, सपा व बसपा तीनों दलों की राजनीतिक हैसियत लगभग एक जैसी है। भाजपा ने इस सीट पर 2017 और 2002 में कब्जा जमाया लेकिन बीच के दो चुनाव 2007 और 2012 में भाजपा प्रत्याशी को तीसरे व दूसरे नंबर पर रहना पड़ा था। दरअसल जाट मतदाता बाहुल्य वाली इस सीट पर बसपा का मुस्लिम - दलित गठजोड़ कारगर साबित हुआ है। बसपा ने अपने पुराने समीकरण को आजमाने के लिए इस बार भी शम्शुद्दीन राइन को मैदान में उतारा है।

2017 में भाजपा ने मोदी लहर पर सवार होकर इसे तोड़ा है लेकिन इस बार उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल को यह सीट समझौते में दे रखी है। भाजपा ने अपने दिवंगत विधायक की पत्नी को मौका देकर सहानुभूति वोट जुटाने की उम्मीद पाल रखी है। ऐसे में राष्ट्रीय लोकदल का जाट वोट समीकरण भाजपा के रास्ते में रुकावट बन सकता है।

घाटमपुर विधानसभा क्षेत्र

घाटमपुर विधानसभा सीट पर 2017 में भाजपा की कमल रानी वरुण की जीत को प्रदेश की जनता के बदले हुए मिजाज का प्रदर्शन माना जा सकता है। इसके पहले के तीन चुनाव 2012, 2007 और 2002 में भाजपा को इस सीट पर कभी चुनाव लडऩे का भी मौका नहीं मिल सका। 2002 में सपा से राकेश सचान ने सीट जीती थी जबकि राजाराम पाल ने बसपा के टिकट पर लडक़र दूसरा मुकाम हासिल किया था। तब कांग्रेस तीसरे स्थान पर ही थी। 2007 में बसपा के रामप्रकाश कुशवाहा ने यह सीट जीती थी जबकि सपा दूसरे नंबर पर रही। भाजपा को टॉप फोर में भी जगह नहीं मिल पाई थी। 2012 में सपा के इंद्रजीत कोरी जीते जबकि बसपा के सरोज कुरील दूसरे नंबर पर और कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही।

नौगवां सादात विधानसभा क्षेत्र

नौगवां सादात सीट पर सबसे बड़ा वोट बैंक मुस्लिम समुदाय का है जिसके दम पर पिछले कई चुनाव यहां अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले प्रत्याशियों ने ही जीते हैं। क्रिकेट खिलाड़ी और भाजपा के प्रभावशाली नेता चेतन चौहान ने पिछले चुनाव में यह तिलिस्म तोड़ा है। मुस्लिमों के बाद यहां सबसे प्रभावशाली जाट समुदाय है। ऐसे में भाजपा ने यहां से सहानुभूति वोट पाने के लिए चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान को मैदान में उतारा है जबकि सपा और बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव आजमाया है। कांग्रेस ने डॉ कमलेश ङ्क्षसह को मौका दिया है। सपा- बसपा में मुस्लिम मतों का बंटवारा और जाट समुदाय के ध्रुवीकरण पर ही इस सीट का भविष्य टिका है।

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बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र

उन्नाव जिले की बांगरमऊ सीट पर चुनाव भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के जेल जाने की वजह से कराए जा रहे हैं। भाजपा ने इस सीट पर पिछड़ी जाति का प्रत्याशी श्रीकांत कटियार मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने पूर्व मंत्री उमाशंकर दीक्षित की पुत्री आरती वाजपेयी को मौका दिया है। वह पहले भी निर्दलीय चुनाव लड़ चुकी हैं। समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा वर्ग से आने वाले सुरेश कुमार पाल को टिकट दिया है। इस सीट पर भी सपा और भाजपा में सीधी टक्कर के आसार हैं।

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