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रविदास जयंती से मायावती की दूरी, आखिर क्यों? दलित राजनीति पर उठने लगे सवाल

बसपा मुखिया मायावती ने सिर्फ रविदास के अनुयायियों को बधाई देने के साथ सत्ता में आने पर भदोही का नाम फिर संत रविदास नगर करने का एलान किया।

Shivani Awasthi
Published on: 28 Feb 2021 7:16 AM GMT
रविदास जयंती से मायावती की दूरी, आखिर क्यों? दलित राजनीति पर उठने लगे सवाल
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अंशुमान तिवारी

लखनऊ। प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर दलित वोटों की सियासी जंग शुरू हो चुकी है। यही कारण है कि संत रविदास की जयंती पर शनिवार को वाराणसी के सीर गोवर्धन स्थित मंदिर में विभिन्न सियासी दलों के नेताओं का भारी जमावड़ा लगा। सभी दलों से जुड़े प्रमुख नेताओं ने आयोजन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया मगर बसपा नेता इस पूरे आयोजन से नदारद दिखे।

रविदास जयंती पर पॉलिटिकल मेला, सिर्फ माया रहीं दूर

बसपा मुखिया मायावती ने आयोजन से दूरी बनाए रखी। उन्होंने सिर्फ रविदास के अनुयायियों को बधाई देने के साथ सत्ता में आने पर भदोही का नाम फिर संत रविदास नगर करने का एलान किया। भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर ने मायावती को सलाह तक दे डाली कि बुआ अब आराम करें और भतीजे को काम करने दें।

सीर गोवर्धन में लगा नेताओं का जमघट

वैसे प्रदेश की सियासत में दलित वोटों पर मायावती की कमजोर होती पकड़ को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। मायावती की सियासी गतिविधियां इन दिनों जिस तरह ठंडी पड़ी हुई हैं, उन्हें देखते हुए इन सवालों को मजबूती भी मिली है।

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सीर गोवर्धन स्थित मंदिर में मत्था टेकने के लिए लगभग सभी सियासी दलों के दिग्गज नेता पहुंचे। इन नेताओं में भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, सपा के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर समेत कई अन्य प्रमुख राजनेता शामिल थे।

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सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश

इन नेताओं ने संत के दर पर शीश नवाने के साथ ही अपनी सियासी जमीन को मजबूत बनाने की कोशिश भी की। सभी नेताओं ने संत रविदास के अनुयायियों के साथ ही सर्व समाज के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर करने की होड़ दिखी।

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प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर नेताओं के बीच मची होड़ को सियासी नजरिए से ही देखा जा रहा है। इन नेताओं ने संत रविदास के प्रति आस्था दिखाकर उनके अनुयायियों के दिलों तक पहुंचने की कोशिश भी की।

इन नेताओं ने गुरु निरंजन दास से आशीर्वाद लेने के साथ ही लंगर भी छका। हालांकि सभी नेताओं ने सियासी बयान देने से परहेज रखा मगर उनकी नजर दलितों के बड़े वोट बैंक पर जरूर थी।

मायावती के न आने पर हैरानी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संत रविदास के दर पर कई बार मत्था टेक चुके हैं। वे शनिवार के आयोजन में तो नहीं पहुंचे मगर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि मैं पीएम मोदी का प्रतिनिधि बनकर संत रविदास से आशीर्वाद लेने आया हूं।

प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं मगर इसके बावजूद आयोजन से बसपा की मुखिया मायावती की दूरी पर हैरानी जताई जा रही है।

माया की निष्क्रियता पर उठने लगे सवाल

हाल के दिनों में सियासी गतिविधियों के प्रति मायावती की निष्क्रियता को लेकर सवाल उठने लगे हैं। भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने भी बनारस में मायावती पर तंज कसते हुए कहा कि बुआ को अब आराम करना चाहिए। भतीजे अपना काम कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि बनारस में संत रविदास की जन्मस्थली है और मैं हर साल संत को नमन करने बनारस जरूर पहुंचता हूं। इसके साथ ही मैं 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के संबंध में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से चर्चा करने में भी जुटा हुआ हूं।

दलित वोट बैंक में लगेगी सेंध

चुनाव के मद्देनजर एक और भीम आर्मी ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है वहीं दूसरी ओर मायावती निष्क्रिय बनी हुई हैं। दलित वोट बैंक पर मायावती की पकड़ को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।

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सियासी जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में निश्चित रूप से भीम आर्मी भी दलित वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाएगी और इससे मायावती को बड़ा झटका लगना तय माना जा रहा है।

Shivani Awasthi

Shivani Awasthi

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