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कोरोना की आड़ में अपना एजेंडा थोप रही केंद्र व भाजपा की राज्य सरकारें: वामदल

वामपंथी दलों ने केंद्र व यूपी समेत भाजपा की सभी राज्य सरकारों पर कोरोना संकट की आड़ में मजदूरों, किसानों और आम जनता पर अपना एजेंडा थोपने का आरोप लगाया है।

Aditya Mishra
Published on: 7 May 2020 11:20 AM GMT
कोरोना की आड़ में अपना एजेंडा थोप रही केंद्र व भाजपा की राज्य सरकारें: वामदल
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लखनऊ: वामपंथी दलों ने केंद्र व यूपी समेत भाजपा की सभी राज्य सरकारों पर कोरोना संकट की आड़ में मजदूरों, किसानों और आम जनता पर अपना एजेंडा थोपने का आरोप लगाया है।

वामपंथी दलों ने कहा है कि निरंतर जनता की परेशानियों में इजाफा करने वाले और तानाशाहीपूर्ण कदम उठा रही भाजपा विपक्षी दलों पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है। जबकि वह खुद सांप्रदायिक और विद्वेष की राजनीति कर रही है। यूपी के वामपंथी दलों ने इसके विरोध में आगामी 11 मई को लाक डाउन का पालन करते हुये अपने आवासों या कार्यालयों पर भूख हड़ताल व धरना जैसे अधिकारियों को ज्ञापन देंगे।

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वामपंथी दलों, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा (माले) तथा आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक ने कहा है कि लाक डाउन के कारण बदतर आर्थिक हालात के बावजूद केन्द्र सरकार ने पेट्रोल पर 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क बड़ा दिया जो अब तक की सबसे बढ़ी बदोत्तरी है।

ऊपर से उत्तर प्रदेश सरकार ने पेट्रोल पर 2 रुपये तथा डीजल पर 1 रुपये प्रति लीटर वैट बढ़ा कर रही-सही कसर पूरी कर दी। इस कदम से पेट्रोल डीजल पर 69 प्रतिशत टैक्स हो गया है, जो दुनियां में सबसे अधिक है। यह सब उस समय किया जा रहा है जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बेहद कम हैं।

यूपी सरकार ने तो एक कदम और आगे बढ़ा कर तीन साल के लिये श्रम कानूनों को ही रद्द कर दिया। काम के घंटे बड़ा दिये जबकि काम के घंटे घटाये जाने चाहिये ताकि सभी को रोजगार मिल सके। विशेष ट्रेनों में उनसे किराया भी वसूला जा रहा है।

कईयों को तो रास्ते में खाना- पानी तक नहीं मिला। परदेश में वे अभाव, भूख और गंदे शेल्टर होम्स में नारकीय जीवन बिता रहे थे, यहां जिन क्वारंटाइन केन्द्रों में उन्हें रखा गया है, उनकी स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। आजादी के बाद मजदूर वर्ग इतिहास की सबसे बड़ी विपत्ति का सामना कर रहा है, और यह विपत्ति सरकारों ने उनके ऊपर थोपी है।

वामपंथी दलों ने कहा कि पूंजीपतियों के कहने पर प्रवासी मजदूरों को अपने घरों को वापस आने से रोका जा रहा है। कर्नाटक सरकार ने मजदूरों को लाने वाली रेल गाड़ियां रद्द करा दीं।

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कोरोना से निपटने में सरकार ने अक्षम्य गलतियां की

गुजरात और अन्य कई भाजपा की राज्य सरकारें मजदूरों के घर लौटने में तरह-तरह की बाधाएं खड़ी कर रही हैं। तमाम मजदूर, महिलाओं-बच्चों और बुजुर्गों को लेकर पैदल और साइकिलों से ही घर पहुंचने को मजबूर हैं। उनमें से अनेकों की भूख-प्यास, बीमारी और दुर्घटनाओं से रास्ते में ही मौत होगयी।

इन तीन माहों में कोरोना से निपटने में सरकार ने अक्षम्य गलतियां की हैं और कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। यह सरकारे कोरोना के इलाज में लगे सवास्थ्यकर्मियों को अच्छी और पर्याप्त पीपीई किटें व अन्य जरूरी उपकरण समय पर नहीं दे पायी और उनमें से अनेक संक्रमित हो रहे हैं, कई की तो जान चली गयी।

लेकिन उनके सम्मान और सुरक्षा के नाम पर तमाम नाटक किए जारहे हैं। बीमारी छिपाने, यात्रा करने, थूकने और कोरोना योद्धाओं की रक्षा के नाम पर कड़ी सजाओं वाले कानून बना दिये गए हैं और उन कानूनों के दुरुपयोग को रोकने की कोई गारंटी नहीं की गयी है।

आरोग्य सेतु को जबरिया लोगों पर थोपा जा रहा

आरोग्य सेतु को जबरिया लोगों पर थोपा जा रहा है। गौतम बुध्द नगर जनपद में तो आरोग्य सेतु डाउन लोड न करने पर मुकदमा दर्ज करने का प्राविधान कर दिया गया है। यह सब कोरोना के बहाने जनता को अधिकाधिक भयभीत और दंडित करने वाली कार्यवाहियां हैं, जिनके परिणाम आम जनता को बहुत दिनों तक भुगतने पड़ेंगे।

सरकार ने तमाम अस्पतालों और निजी अस्पतालों को बन्द कर दिया है। इससे कैंसर, ह्रदय, लिवर, टीवी एवं किडनी आदि गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों को मौत के मुंह में जाने को छोड़ दिया है। जबकि कई निजी चिकित्सालय छिप कर इलाज कर रहे हैं और मरीजों से कई गुना धन वसूल रहे हैं। गरीब लोग इतना महंगा इलाज करा नहीं पा रहे है।

इलाज के अभाव में लोग मर रहे हैं और मौतों की खबर को छिपाया जा रहा है। अवसाद और अभाव के चलते कई लोग एकाकी तो कई ने परिवार सहित आत्महत्याएं की हैं।

बिगड़ते मौसम से फसलें बर्बाद

आए दिन बिगड़ने वाले मौसम से किसानों की फसलें बर्बाद हुयी हैं और लाक डाउन के चलते सब्जियों और फलों की कीमत गिरी है। किसान सब्जी की फसलों को खेतों में ही नष्ट करने को मजबूर हुये हैं। गेहूं खरीद केन्द्रों पर भीगा गेहूं बता कर अथवा बारदाने का अभाव बता कर किसानों को वापस किया जारहा है और वे निजी व्यवसायियों को कम कीमत पर गेहूं बेचने को मजबूर हैं। खरीदे माल का तत्काल भुगतान भी नहीं किया जा रहा।

इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालत में भारी गिरावट आयी है। महिला हिंसा, दलितों- अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न आदि अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है।

लाक डाउन में छोटी छोटी गलतियां करने पर लोगों को सीधे जेल भेजा जारहा है, लाठियों से धुना जा रहा है और बड़े पैमाने पर वाहनों के चालान काटे जा रहे हैं।

लोग जरूरी सामान तक नहीं खरीद पा रहे। छोटे व्यवसायी कारोबार कर नहीं पा रहे। गरीबों को धन और खाद्य पदार्थों के अभाव से जूझना पढ़ रहा है। सरकार की मदद पर्याप्त नहीं है।

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Aditya Mishra

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