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नीतीश के निशाने पर भाजपा! सवर्ण प्रकोष्ठ के जरिए वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी
सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश लव-कुश समीकरण को साधने के साथ ही सवर्ण मतदाताओं को पार्टी से जोड़कर मजबूत समीकरण बनाने की कोशिश में जुट गए हैं।
अंशुमान तिवारी
पटना: विधानसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता दल (यू) को मजबूत बनाने की कोशिश में जुट गए हैं। संगठन को मजबूत बनाने के लिए हाल के दिनों में उन्होंने कई कदम उठाए हैं। इसी कड़ी में नीतीश कुमार की नजर अब सवर्ण मतदाताओं पर टिक गई है। सवर्णों को रिझाने और सवर्णों में पार्टी की पैठ मजबूत बनाने के लिए जदयू में पहली बार सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन किया गया है।
इसे नीतीश का बड़ा सियासी कदम माना जा रहा है क्योंकि सवर्ण मतदाताओं को आमतौर पर भाजपा का समर्थक माना जाता रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि नीतीश लव-कुश समीकरण को साधने के साथ ही सवर्ण मतदाताओं को पार्टी से जोड़कर मजबूत समीकरण बनाने की कोशिश में जुट गए हैं।
पिछले चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं
पिछले विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने में तो जरूर कामयाब हो गए मगर उनकी पार्टी जदयू को चुनाव में अपेक्षा के अनुरूप सीटें नहीं मिल सकीं। जदयू प्रत्याशियों को सिर्फ 43 सीटों पर ही विजय हासिल हो सकी। भाजपा 74 सीटें जीतने में कामयाब रही जबकि राष्ट्रीय जनता दल के खाते में 75 सीटें आईं।
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भाजपा की ओर से पहले ही घोषणा कर दी गई थी कि एनडीए के बहुमत पाने की स्थिति में नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। भाजपा ने अपनी घोषणा पर अमल करते हुए नीतीश की ताजपोशी तो जरूर करा दी मगर नीतीश अब पार्टी की कमजोरी दूर करने में जुट गए हैं। पार्टी में पहली बार बनाए गए सवर्ण प्रकोष्ठ को भी इसी दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है।
पार्टी को मजबूत बनाने में जुटे नीतीश
विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद नीतीश ने संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। आरसीपी सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के साथ ही जातीय समीकरण भी दुरुस्त करने की कोशिश की जा रही है।
नीतीश कुमार ने पिछड़ों,अति पिछड़ों और दलितों को साधने के साथ ही अब सवर्णों पर भी नजरें गड़ा दी हैं। सवर्ण मतदाताओं को अभी तक भाजपा का समर्थक माना जाता रहा है और इस तरह नीतीश कुमार ने भाजपा के कोर मतदाताओं पर भी नजरें गड़ा दी हैं।
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(फोटो- ट्विटर)
करीबी को सौंपी प्रकोष्ठ की कमान
जदयू में बनाए गए सवर्ण प्रकोष्ठ की कमान डॉक्टर नीतीश कुमार विमल को सौंपी गई है। विमल जनता दल यू के गठन के समय से ही पार्टी में हैं और उससे पहले वे समता पार्टी में भी नीतीश कुमार के साथ ही थे।
उन्हें नीतीश कुमार के संघर्षों का साथी माना जाता रहा है। नीतीश कुमार विमल पर काफी भरोसा करते रहे हैं और इसीलिए उन्होंने काफी सोच समझकर विमल को सवर्ण प्रकोष्ठ की कमान सौंपी है। अभी तक सियासी दल सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन करने से परहेज करते रहे हैं मगर नीतीश कुमार इस मुद्दे पर खुलकर सामने आ गए हैं।
अब सवर्णों को साधेगी पार्टी
विमल का कहना है कि सवर्ण प्रकोष्ठ के जरिए पार्टी उच्च जाति के लोगों से संपर्क स्थापित करेगी और उनकी समस्याएं और मुद्दों को जानने की कोशिश करेगी। प्रकोष्ठ यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि सरकार के समावेशी विकास का लाभ सवर्णों तक भी पहुंचे। पार्टी की ओर से गांव, पंचायत और ब्लॉक स्तर तक भी प्रकोष्ठ का गठन करने की तैयारी है।
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बिहार में सवर्णों का जातीय समीकरण
बिहार में सवर्णों को काफी ताकतवर माना जाता रहा है। बिहार में सवर्णों की कुल आबादी करीब 19 फ़ीसदी है और इनमें मुख्य रूप से ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार और कायस्थ शामिल हैं। बिहार में ब्राह्मणों की आबादी लगभग साढ़े पांच फ़ीसदी, भूमिहारों की 6, राजपूतों की साढ़े पांच फीसदी और कायस्थों की 2 फ़ीसदी के आसपास बताई जाती है।
(फोटो- सोशल मीडिया)
भाजपा के कोर वोट बैंक पर नजर
पहले सवर्णों का अधिकांश वोट कांग्रेस के खाते में जाया करता था मगर भाजपा के ताकतवर बनकर उभरने के बाद अब सवर्णों का समर्थन आमतौर पर भाजपा को ही मिला करता है।
नीतीश कुमार का भाजपा से गठबंधन होने के कारण उन्हें भी सवर्ण मतों का लाभ मिलता रहा है। अब नीतीश कुमार ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए भाजपा के कोर वोट बैंक पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं।
नीतीश की बड़ी सियासी चाल
अगर नीतीश सवर्णों के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हुए तो निश्चित रूप से जदयू को काफी मजबूती मिलेगी। सियासी जानकारों के मुताबिक नीतीश कुमार ने सवर्ण प्रकोष्ठ का गठन करके बड़ी सियासी चाल चली है। नीतीश को पता है कि बिहार में जातीय समीकरण से ही कामयाबी हासिल की जा सकती है और इस कारण उन्होंने दलितों, पिछड़ों और अति पिछड़ों के साथ ही अब सवर्णों को साधने की भी तैयारी की है।
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