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Congress Politics: कहानी उन राज्यों की जहां कांग्रेस ने ज्यादा सीटें तो पाईं, लेकिन फिर भी हाथ से निकल गई सत्ता

Congress Politics: हम आज ऐसे राज्यों की कहानी बताएंग, जहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटें हासिल करने के बावजूद भी सत्ता को बरकरार नहीं रख पाई और पार्टी टूट भी हुई।

Ashish Pandey
Published on: 19 May 2023 10:49 PM GMT
Congress Politics: कहानी उन राज्यों की जहां कांग्रेस ने ज्यादा सीटें तो पाईं, लेकिन फिर भी हाथ से निकल गई सत्ता
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Congress Politics

Congress Politics: 20 मई को सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री और डीके शिवकुमार उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। कर्नाटक दूसरा ऐसा राज्य है जहां सालभर के अंदर कांग्रेस अपनी सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस भले ही राज्य में सरकार बनाने जा रही है, लेकिन कर्नाटक का नाटक अभी खत्म नहीं हुआ है। पार्टी में अभी भी हलचल तेज है। एक ओर जहां डीके शिवकुमार उप-मुख्यमंत्री पद मिलने से खुश नहीं हैं तो वहीं कई और भी ऐसे नेता हैं जो पार्टी के इस फैसले से नाराज हैं। इनमें पूर्व उप-मुख्यमंत्री जी. परमेश्वर भी शामिल हैं। परमेश्वर तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर कर्नाटक को दलित सीएम नहीं मिला तो वह इसका विरोध करेंगे। वैसे 20 मई को कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। लेकिन इसके बाद संभव है कि कई अन्य नेताओं की नाराजगी खुल कर सामने आ जाए और ऐसा हुआ तो यह पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है। लेकिन पार्टी को एक डर है और वह डर है बगावत का। कांग्रेस में चुनाव जीतने के बाद पार्टी में एकजुटता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होती है। ये पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को बगावत का डर सता रहा है। इसके पहले भी कई ऐसे राज्य हैं, जहां ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी पार्टी या तो सरकार बनाने से चूक गई या फिर सरकार बनाने के बाद सत्ता उसके हाथ से चली गई। अब कर्नाटक में क्या होगा यह तो समय ही बताएगा।

आज हम यहां ऐसे ही राज्यों की के बारे में बताएंगे। जहां ज्यादा सीटें पाने के बावजूद भी कांग्रेस अपने सरकार को बरकरार नहीं रख पाई। आइए यहां जानते हैं ऐसे ही राज्यों के बारे में...

शुरूआत गोवा से

बात 2017 की। जहां गोवा में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। गोवा में विधानसभा की 40 सीटें हैं। यहां किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए 21 सीटों की जरूरत पड़ती है। कांग्रेस ने चुनाव में 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए केवल चार विधायकों की जरूरत थी। वहीं, दूसरी ओर भाजपा ने कांग्रेस से कम केवल 13 सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर गोवा में सरकार बना ली। बाद में कांग्रेस के कई विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए थे। यहां अधिक सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस सरकार बनाने से तो चूकी ही, साथ में पार्टी के अंदर फूट भी हो गई।

मध्य प्रदेश में दो साल भी पूरी नहीं कर पाई सरकार-

अब बात 2018 की। मध्य प्रदेश में विधानसभा का चुनाव हुआ और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 230 सीटों वाले मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत थी। हालांकि, पार्टी को चुनाव में इससे महज दो ही सीटें कम मिलीं। किसी तरह कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ ने व्यवस्था कर अपनी सरकार भी बना ली। उस समय भी मुख्यमंत्री पद को लेकर कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच जंग छिड़ी थी, लेकिन बाजी मार ले गए कमलनाथ। हालांकि, ज्यादा दिन तक उनकी बाजीगरी बरकरार नहीं रही। दो साल भी पूरे नहीं हुए थे कि 2020 में पार्टी के अंदर फूट पड़ गई और ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और उनके समर्थन में कई विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी। नतीजा यह हुआ कि कमलनाथ की सरकार गिर गई और ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। एक बार फिर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चैहान मुख्यमंत्री बन गए। वहीं इस बगावत का भाजपा ने सिंधिया को इनाम भी दिया। उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया।

बात अब मणिपुर की-

साल 2017 की बात है। मणिपुर में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस को 28 सीटें मिलीं। बहुमत के लिए पार्टी को चार सीटों की जरूरत थी और वहीं बीजेपी के पास 21 सीटें थीं, लेकिन दिल्ली से लेकर मणिपुर तक कांग्रेस का कोई भी ऐसा नेता नहीं था जो सरकार बनाने के लिए चार सीटें जुटा सके। वहीं भाजपा ने बाजी मार ली। भाजपा ने छोटे-छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली। वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई है।

क्या हुआ मेघालय का हाल-

2018 में मेघालय में 59 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी थी लेकिन इसके बाद भी वह बहुमत से दूर रह गई थी। पार्टी को 59 सीटों में से 21 पर जीत मिली थी। वोट प्रतिशत 28.5 फीसदी था। दूसरे नंबर पर नेशनल पीपल्स पार्टी (छच्च्) रही, जिसके खाते में 20 सीटें आई थीं। बीजेपी को राज्य में सिर्फ दो सीटों पर ही जीत मिली थी। पार्टी 47 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। वोट प्रतिशत 9.6 फीसदी रहा था। यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को छह सीटों पर जीत मिली थी। तीन पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे। कांग्रेस को बहुमत के लिए 10 सीटों की जरूरत थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। उधर, एनपीपी ने भाजपा, यूडीपी व अन्य निर्दलियों के समर्थन से सरकार बना ली। एनपीपी अध्यक्ष कॉनराड संगमा ने छह मार्च 2018 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। संगमा ने 34 विधायकों का समर्थन हासिल किया था। 19 विधायक उनकी पार्टी से थे। दो विधायक बीजेपी के भी उनके साथ थे। पीडीएफ के चार विधायक, हिल स्टेट डेमोक्रेटिक पार्टी (एचएसपीडीपी) के दो विधायक और एक निर्दलीय विधायक भी सरकार में शामिल हुए।

Ashish Pandey

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