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महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे से भाजपा के सामने खड़ी हुई दोहरी चुनौती
महाराष्ट्र में हुए सत्ता संग्राम और उसमे मिली हार से भारतीय जनता पार्टी के लिए दोहरी मुश्किलें खड़ी हो गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस के एक बचकाने फैसले ने पूरी भगवा ब्रिगेड को बैकफुट पर धकेल दिया है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: महाराष्ट्र में हुए सत्ता संग्राम और उसमे मिली हार से भारतीय जनता पार्टी के लिए दोहरी मुश्किलें खड़ी हो गई है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस के एक बचकाने फैसले ने पूरी भगवा ब्रिगेड को बैकफुट पर धकेल दिया है। अब भाजपा के सामने विभिन्न राज्यों में एक के एक कई चुनौतियां खड़ी होने का खतरा आसन्न है। पूरे देश में कांग्रेस का सफाया करने के बाद अब क्षेत्रीय क्षत्रपों की राजनीति को समेटने या फिर भाजपा की बी टीम के तौर पर आने को मजबूर करने के भाजपाई रणनीतिकारों को मंसूबों पर पानी फिरता दिख रहा हैं।
महाराष्ट्र के 80 घंटे के हाइवोल्टेज ड्रामे के राज्य में भाजपा की बी टीम मानी जाने वाली शिवसेना, वर्ष 2014 से चले मोदी के विजयरथ की राह में स्पीड़ ब्रेकर के तौर पर सामने आयी। इसके साथ ही महाराष्ट्र एक नजीर भी बन गया है कि भाजपा को रोकने के लिए राजनीतिक दलों की विचारधाराओं में मतभेद भी उनके एक साथ आने में बाधक नहीं है।
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दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद से शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस आपसी विवाद सुलझाने में जरूर जुटे रहे, लेकिन उनमें सहमति नहीं बन पा रही थी। महाराष्ट्र कांग्रेस के दबाव के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने बड़ी समस्यां शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर थी, वह इसे सहज स्वीकार नहीं कर पा रही थी।
भाजपा के देवेंद्र फणनवीस ने ली थी सीएम पद की शपथ
कांग्रेस इस उहापोह की स्थिति से उबर पाती, उससे पहले ही भाजपा ने उसे खुलकर खेलने का मौका दे दिया। बीते शनिवार को तड़के भाजपा के देवेंद्र फणनवीस ने एनसीपी के अजित पवार के साथ मिल कर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सामने न केवल सरकार बनाने का दावां पेश किया बल्कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। भाजपा के इस दांव ने सरकार के दावेदार तीनों दलों के पैर के नीचे से सत्ता की कालीन खींच ली।
लिहाजा तीनो ही दल भाजपा से निपटने के मूड में आ गये कि करीब एक महीने से समर्थन पाने और देने की पहेली एक झटके में सुलझ गई और कल तक एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहाने वाले इन तीनों दलों की एकता इतनी प्रगाढ़ हो गई कि तीनों दलों ने मिलकर न केवल सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगा दी बल्कि मीडिया की मौजूदगी में फलोर टेस्ट करके पूरे देश के सामने भाजपा को एक्सपोज करने का प्रयास शुरू कर दिया।
फलोर टेस्ट हुआ था होटल में
यह फलोर टेस्ट भले ही एक होटल में हुआ हो और इसका कोई संवैधानिक महत्व न रहा हो लेकिन इस फलोर टेस्ट ने दो तरफा काम किया। पहला यह कि इसने तीनों दलों के विधायकों के सामने यह स्थिति स्पष्ट कर दी कि अगर वह साथ रहे तो सरकार का गठन करना कोई मुश्किल नहीं है। भाजपा की सरकार बनाने की जल्दबाजी ने तीनो दलों के विधायकों में यह उम्मीद जगा दी कि वह भी सरकार बना सकते हैं, और जब सरकार बनाने का आभास होता है, तो विधायक टूटता नहीं, अपने दल के प्रति और मजबूत हो जाता है। दूसरा यह कि मीडिया पर चली इस फलोर टेस्ट के दृश्यों ने नैतिकता के मामलें में भाजपा को बैकफुट पर आने को मजबूर कर दिया। इसके बाद जो हुआ वह सबके सामने है।
क्या अब दूसरे राज्य में भाजपा ए टीम के साथ रह पाएगी
महाराष्ट्र के इस राजनीतिक सरगर्मी का असर केवल यहीं तक सीमित नहीं रहेगा अब आने वाले समय में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की राजनीतिक राह में भी कई रोड़े अटकायेगा। अब विभिन्न राज्यों में जो भाजपा का गठबंधन है या होने वाला है उनमे भाजपा के ए टीम बने रहने की संभावनाओं पर सवालिया निशान लग गया है। जल्द ही होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में नीतिश कुमार के जनता दल यू के साथ भाजपा के रिश्तों में इसका असर देखने को मिल सकता है।
इसके अलावा महाराष्ट्र में विपक्षी एकता के सफल प्रयोग ने यह भी साफ कर दिया है कि अगर विपक्षी दल एकता दिखाये तो सियासी बिसात पर मोदी-शाह की जोड़ी को मात दी जा सकती है। इधर, कांग्रेस ने भी शिवसेना को समर्थन दे कर साफ कर दिया है कि वह भाजपा की सत्ता में पहुंचने की राह मुश्किल करने के लिए अब क्षेत्रीय दलों की सत्ता में अगुवाई भी स्वीकार करने को तैयार दिख रही है। कांग्रेस किसी भी तरह से राज्यों में बढ़ रहे भाजपा के प्रभाव को रोकना चाहती है।
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महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम ने शरद पवार के रूप में विपक्षी दलों को एक ऐसा नेता भी दे दिया है जो मोदी-शाह की जोड़ी का सामना कर सकता है। जाहिर है कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद शरद पवार एक राष्ट्रीय नेता के तौर पर सामने आये है। पिछले दिनों उनके खिलाफ ईडी के नोटिस के बाद से ही वह भाजपा से हिसाब बराबर करने को आतुर थे और इसके लिए वह दिल्ली बनाम मुंबई की राजनीतिक मुकाबले और मराठा स्वाभिमान की बात कर रहे थे। अब आगे देखना यह है कि महाराष्ट्र में अनायास बनी इस विपक्षी एकता को शरद पवार राष्ट्रीय स्तर पर कितना कामयाब बना पायेंगे।