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नीतीश कुमार: सियासी मैदान के माहिर खिलाड़ी, अपनी चाल से सबको कर देते हैं हैरान

1951 में आज ही के दिन बख्तियारपुर में पैदा होने वाले नीतीश कुमार को सियासी मैदान का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। अपनी सियासी चाल से वे विपक्ष को हमेशा हैरान करते रहे हैं।

Shivani Awasthi
Published on: 1 March 2021 5:19 AM GMT
नीतीश कुमार: सियासी मैदान के माहिर खिलाड़ी, अपनी चाल से सबको कर देते हैं हैरान
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अंशुमान तिवारी

पटना। मौजूदा दौर में जो राजनेता खास रूप से चर्चा में रहते हैं उनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय है। करीब 15 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद एक बार फिर बिहार का मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए।

1951 में आज ही के दिन बख्तियारपुर में पैदा होने वाले नीतीश कुमार को सियासी मैदान का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। अपनी सियासी चाल से वे विपक्ष को हमेशा हैरान करते रहे हैं।

पिछले चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं

वैसे पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार अपनी पार्टी जनता दल यू को आशा के अनुरूप सीटें दिलाने में कामयाब नहीं हो सके। 2015 में 71 सीटें जीतने वाली पार्टी जदयू 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में मात्र 43 सीटों पर सिमट गई। हालांकि भाजपा ने अपने घोषणा को अमली जामा पहनाते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार को ही बैठाया।

बिहार में लंबे समय से दबदबा

देश के पिछड़े राज्यों में गिने जाने वाले बिहार को सुशासन देने का श्रेय नीतीश कुमार को ही दिया जाता है। इसी कारण बिहार में उन्हें सुशासन बाबू के नाम से भी जाना जाता है।

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वैसे नीतीश कुमार के विरोधी उन्हें अवसरवादी बताकर उन्हें घेरते रहे हैं, लेकिन सियासी पंडितों का मानना है कि नीतीश कुमार सियासी शतरंज की बिसात के माहिर खिलाड़ी हैं और इसी कारण उन्होंने इतने लंबे समय तक बिहार की सत्ता पर अपना दबदबा कायम रखा है।

इस तरह उतरे सियासी मैदान में

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले नीतीश कुमार ने जेपी आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। बाद में उन्होंने राज्य के बिजली विभाग में नौकरी का प्रस्ताव ठुकराकर राजनीति के मैदान में किस्मत आजमाने का फैसला किया। आगे चलकर उनकी कामयाबी की दास्तान किसी से छिपी नहीं है।

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राजनीतिक मैदान में नीतीश कुमार को शुरुआती दिनों में सफलता हासिल नहीं हुई मगर चुनाव हारकर भी वे निराश नहीं हुए। उन्हें 1985 में पहली बार लोकदल के उम्मीदवार के रूप में हरनौत विधानसभा सीट से चुनाव जीतने में कामयाबी मिली।

इस चुनाव में कांग्रेस को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर का फायदा मिला था मगर उस आंधी में भी जीतकर नीतीश कुमार ने सियासी मैदान में मजबूती से कदम बढ़ाए।

पहले किया था लालू यादव का समर्थन

इस बड़ी चुनावी जीत के 4 साल बाद नीतीश कुमार बाढ़ संसदीय सीट से चुनाव जीतने में कामयाब हुए। जयप्रकाश आंदोलन से ही निकले एक और नेता लालू प्रसाद यादव उस दौर में नीतीश कुमार से ज्यादा मजबूत बनकर उभरे और बिहार का मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए।

उस समय नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद के लिए जनता दल में लालू का समर्थन किया था। इसके बाद लालू प्रसाद यादव बिहार की सियासत में लगातार मजबूत होते गए। हालांकि बाद में चारा घोटाले में नाम आने व अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद वे विवादों में फंसते चले गए।

जार्ज के साथ मिलकर बनाई समता पार्टी

बाद में नीतीश कुमार का लालू प्रसाद यादव से मतभेद बढ़ता गया और 1990 के दशक के मध्य में ही उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। समता पार्टी ने भाजपा के साथ चुनावी गठबंधन किया। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में राजग की सरकार बनने पर नीतीश कुमार केंद्रीय मंत्री बने। उन्होंने मंत्री के रूप में अपने काम से हर किसी को प्रभावित किया।

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इस तरह वजूद में आया जनता दल यू

लालू प्रसाद यादव और शरद यादव के बीच विवाद पैदा होने पर शरद यादव ने अलग राह पकड़ ली। इसके बाद समता पार्टी का जनता दल के शरद यादव धड़े में विलय हुआ। इसके बाद जनता दल यू का वजूद सामने आया और जनता दल यू ने भाजपा के साथ गठबंधन जारी रखा। 2005 के विधानसभा चुनाव में राजग ने बिहार में ताकत दिखाई मगर राजग कुछ सीटों के अंतर से बहुमत का आंकड़ा नहीं हासिल कर सका। तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी जिसे लेकर काफी विवाद भी हुआ।

बिहार में दिखाई ताकत

इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी ताकत दिखाई। उनकी अगुवाई में राजग की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनने से बिहार में लालू युग के खात्मे की शुरुआत भी हुई। बाद में 2010 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश की अगुवाई में भाजपा जदयू गठबंधन को जीत हासिल हुई।

2013 में भाजपा से तोड़ा गठबंधन

भाजपा की सियासत में नरेंद्र मोदी के ताकतवर बनकर उभरने के बाद नीतीश ने 2013 में भाजपा से रिश्ता तोड़ दिया। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने बिहार में बड़ी जीत हासिल की और जदयू को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

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हार की जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया। बाद में मांझी का बागी लुक देखकर नीतीश कुमार सतर्क हो गए और उन्होंने एक साल के भीतर ही फिर मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल ली।

2015 के चुनाव में नया गठजोड़

बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया। इस महागठबंधन को बड़ी जीत हासिल हुई। कुछ समय बाद ही राजद नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को लेकर विवाद पैदा हो गया। तेजस्वी के कारण नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारियों का ठीक ढंग से निर्वाह नहीं कर पा रहे थे और इस कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

इस तरह बचाई अपनी सरकार

हालांकि इस्तीफा देने के पहले ही उन्होंने अपनी सरकार को बनाए रखने का इंतजाम कर लिया था। उन्होंने भाजपा के समर्थन से कुछ ही घंटों के भीतर फिर सरकार बना ली और बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। नीतीश के इस कदम के कारण उन्हें विश्वासघाती की संज्ञा दी गई है और उन्हें काफी आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा।

पिछले चुनाव के बाद फिर बने सीएम

बिहार में 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की अगुवाई में जेडीयू पिछले चुनाव जैसा प्रदर्शन नहीं कर सका। जदयू को सिर्फ 43 सीटों पर कामयाबी मिल सकी जबकि भाजपा ने 74 सीटों पर जीत हासिल की।

भाजपा ने पहले ही एनडीए गठबंधन को जीत मिलने पर नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की थी। इस घोषणा को पूरा करते हुए पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की ही ताजपोशी की गई। मौजूदा दौर में नीतीश कुमार की गिनती देश के ताकतवर राजनेताओं में की जाती है।

Shivani Awasthi

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