बदल गए ममता के सुर, पहली बार किया अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र

ममता के बदले रुख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार उन्होंने अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र करते हुए लोगों से इससे सावधान रहने की अपील की है।

Shivakant Shukla
Published on: 19 Nov 2019 8:45 AM GMT
बदल गए ममता के सुर, पहली बार किया अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र
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नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सुर बदलने लगे हैं। राज्य में भाजपा को जवाब देने के लिए अब उन्होंने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। ममता के बदले रुख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार उन्होंने अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र करते हुए लोगों से इससे सावधान रहने की अपील की है। ममता ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलीमीन (एमआईएम) का नाम लिए बिना इस पर निशाना साधा और कहा कि लोगों को इस अल्पसंख्यक कट्टरता को भी समझना होगा।

ओवैसी का नाम लिए बिना साधा निशाना

कूचबिहार में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक में ममता के तेवर बिल्कुल बदले हुए दिखे। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि अल्पसंख्यकों के बीच भी कई कट्टरपंथी हैं। इन्होंने हैदराबाद में ठिकाना बना रखा है। ऐसे लोगों की बात पर ध्यान देने की जरुरत नहीं है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि असदुद्दीन ओवैसी का नाम लिए बिना उन्हें निशाना बनाकर ममता भाजपा को जवाब देने की कोशिश में जुट गई हैं। बैठक के बाद राजनीतिक संदेश देने के लिए ममता ने एक और काम किया। वे कूचबिहार स्थित मदन मोहन मंदिर गईं और प्रार्थना की। वे यहीं नहीं रुकी बल्कि यहां से वह राजबाड़ी ग्राउंड में आयोजित रास मेला में भी हिस्सा लेने पहुंचीं।

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हिन्दू मतों को सहेजने की कोशिश

लोकसभा चुनाव में भाजपा के अच्छा प्रदर्शन करने के बाद ममता सतर्क हो गई हैं और विधानसभा चुनाव से पहले ही अपने सारे कील-कांटें दुरुस्त कर लेना चाहती हैं। उन्हें पता है कि भाजपा राज्य के हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश में जुटी है और माना जा रहा है कि अपने हिन्दू मतों को सहेजने के लिए ही उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार अल्पसंख्यक कट्टरता का जिक्र किया है। ममता को पता है कि उनका मुस्लिम वोट बैंक छिटकने वाला नहीं है क्योंकि इस वोट बैंक के सामने उनके अलावा कोई मजबूत विकल्प नहीं है मगर अब वे अपने हिन्दू वोटों को जरूर सहेजना चाहती हैं।

राजनीतिक संदेश देना चाहती हैं ममता

राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि अल्पसंख्यक कट्टरता के खिलाफ ममता बनर्जी का बयान और उनका मदन मोहन मंदिर दौरा हिंदू वोटरों को लुभाने की कोशिश ही है। ऐसा करके वे कूचबिहार के बहुसंख्यक हिंदू वोटरों और राज्य के विभिन्न इलाकों में रहने वाले हिन्दुओं को भी एक बड़ा राजनीतिक संदेश देना चाहती हैं। उन्हें लग गया है कि यह वोट बैंक उनसे धीरे-धीरे कट रहा है और भाजपा की यही असली ताकत है। इसी कारण अब उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी है। कूच बिहार के बहुसंख्यक हिन्दुओं में बंगाली और राजवंशी शामिल हैं। तृणमूल ने राजवंशी समुदाय का समर्थन पाने में तो कुछ हद तक सफलता पाई है मगर पार्टी के सामने बंगाली शरणार्थी हिंदुओं के बीच पैठ बनाने की चुनौती अभी भी बनी हुई है।

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पार्टी के लोगों से एकजुटता की अपील

भाजपा के खिलाफ लड़ाई लडऩे के लिए ममता ने पार्टी के सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं से एकजुट होने की अपील की। उन्होंने कहा कि हमारे कार्यकर्ता पार्टी के लिए मूल्यवान हैं। उन्होंने पार्टी से गुटबाजी दूर करने और एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला करने की अपील की। उन्होंने पार्टी नेताओं से एक-दूसरे के खिलाफ टिप्पणी करने से बाज आने को भी कहा। उन्होंने साफ किया कि पार्टी उनके उगले जहर को नहीं निगलेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी के नेता अब एकजुटा दिखा रहे हैं। यदि उन्होंने पहले से ही इस तरह काम किया होता तो पार्टी को इतनी सीटें नहीं गंवानी पड़ती।

विरोधियों पर बोला जोरदार हमला

ममता ने विरोधी राजनीतिक दलों पर जोरदार हमला बोला। उनके निशाने पर बीजेपी के साथ ही कांग्रेस और सीपीएम भी रहे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और सीपीएम नेताओं की रणनीति समझ से परे है। इन दोनों दलों के नेता दिल्ली में तो बीजेपी का विरोध करते हैं, लेकिन बंगाल आते ही तृणमूल के खिलाफ एकजुट हो जाते हैं। ममता ने तृणमूल कार्यकर्ताओं का ध्यान प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक में हिंदू शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने का बीजेपी की ओर से दिए जा रहे भरोसे की ओर भी खींचा। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं को समझना होगा कि नागरिकता संशोधन विधेयक फर्जीवाड़ा है। उन्हें इसकी याद तब आई जब असम में 19 लाख बंगालियों, गैर-बंगालियों, गोरखाओं का नाम फाइनल एनआरसी लिस्ट में नहीं आ सका। अब वे लोगों को बरगलाने में लगे हैं। अब वे ऐसे विधेयक की बात कर रहे हैं जबकि इसके अंदर लोगों को छह साल तक प्रवासी के तौर पर देखा जाएगा।

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हिन्दू शरणार्थियों को मरहम लगाने का प्रयास

बैठक के जरिये ममता ने हिन्दू शरणार्थियों को मरहम लगाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि आपका नाम वोटर लिस्ट में आ चुका है। आपके बेटे-बेटियां स्कूल जा रहे हैं। आपको राज्य की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिल रहा है। फिर आपको सोचना चाहिए कि नागरिकता के लिए नए सिरे से आवेदन करने की जरूरत ही क्या है? उधर भाजपा ने ममता के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा कि ममता बनर्जी असलियत जान चुकी हैं। उन्हें पता है कि बंगाल में उनका जनाधार कम हो रहा है। यही कारण है कि उनके बोल बदलने लगे हैं। उन्हें समझ लेना चाहिए कि रणनीति बदलने से भी उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है।

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