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एक काम की उम्मीद की थी, उसमें भी फेल हुए मनोज तिवारी

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है मनोज तिवारी की पार्टी में अब भूमिका क्या होगी ये स्पष्ट नहीं बताया जा सकता। ताजा संकट कोरोना के फैलाव और श्रमिकों के पलायन, उनकी बदहाली का है। व्यापार और मंदी का अलग बड़ा मसला है। इन सबमें मनोज तिवारी कहाँ फिट बैठेंगे ये कहा नहीं जा सकता। 

राम केवी
Published on: 2 Jun 2020 6:53 PM IST
एक काम की उम्मीद की थी, उसमें भी फेल हुए मनोज तिवारी
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नई दिल्ली। मनोज तिवारी को जिस मकसद से दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाया गया था वह कामयाब नहीं हो सका। दिल्ली चुनाव भाजपा हार गई, कोरोना काल में दिल्ली में रह रहे यूपी – बिहार के मजदूरों और कामगारों को कोई तसल्ली या राहत देने में कामयाबी नहीं मिली।

सबसे बड़ी बात ये कि दिल्ली के बहुत बड़े व्यापारी वर्ग के संग मनोज तिवारी कोई कनेक्ट नहीं बैठा सके। ये भी कह सकते हैं कि मनोज तिवारी समूची दिल्ली से कोई कनेक्ट बना पाने में नाकामयाब रहे।

पूर्वाञ्चल के जिन वोटरों को लुभाने के लिए मनोज तिवारी को ये पद दिया गया था वो काम भी वह नहीं सके जिसका नतीजा दिल्ली चुनाव में साफ हो गया।

ये गलतियां पड़ीं भारी

मनोज तिवारी ने कोरोना के इस संकट के दौर में लॉकडाउन के नियम तोड़े, क्रिकेट मैच में पहुँच गए, प्रदर्शन की चेतवानी दी, ये सब ऐसी बातें हैं जिनको अनावश्यक राजनीतिक कदम माना गया।

मनोज तिवारी 2016 में दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष बने थे, और चार साल तक इस पद पर रहे। भाजपा ने दिल्ली में यूपी – बिहार के वोटरों को लुभाने के लिए मनोज तिवारी को अध्यक्ष बनाया था। चुनाव से पहले उनके दिल्ली सीएम के उम्मीदवार बनाए जाने की भी चर्चा भी काफी हुई थी।

दिल्ली के चुनाव में भाजपा लगातार दो बार हारी है और मनोज तिवारी से भी कोई फायदा पार्टी को नहीं मिला। कहाँ वो 48 सीटें जीतने का दावा कर रहे थे और असलियत में मिलीं सिर्फ 8 सीटें।

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सात साल पहले डॉ हर्षवर्धन के नेतृत्व में भाजपा दिल्ली में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी लेकिन अज्ञात कारणों से हर्षवर्धन हाशिये पर कर दिये गए। यही हाल विजय गोयल और किरण बेदी का हुआ।

मनोज तिवारी का जाना तय था

मनोज तिवारी पूर्वाञ्चल के वोटरों के भरोसे सबसे आगे रहे और चार साल दिल्ली भाजपा अध्यक्ष बने रहे। चुनावों में हार के बाद मनोज तिवारी का जाना तय था लेकिन तभी कोरोना का संकट आ गया। अब लोकप्रियता में आगे बढ्ने के लिए बदलाव जरूरी हो चला था सो फैसला कर दिया गया।

अब भाजपा की कोशिश है कि नया चेहरा लाकर संगठन में जान फूंकी जाए। हालांकि आदेश गुप्ता कोई नया चेहरा नहीं हैं। वो व्यापारी समाज से आते हैं जो भाजपा का कोर वोटर ग्रुप माना जाता है। ऐसे में एक बार फिर भाजपा इनको लुभाने की कोशिश में है।

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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि दिल्ली के पूर्व मेयर आदेश गुप्ता को दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष बना कर भाजपा ने डैमेज कंट्रोल की ही कोशिश की है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है मनोज तिवारी की पार्टी में अब भूमिका क्या होगी ये स्पष्ट नहीं बताया जा सकता। ताजा संकट कोरोना के फैलाव और श्रमिकों के पलायन, उनकी बदहाली का है। व्यापार और मंदी का अलग बड़ा मसला है। इन सबमें मनोज तिवारी कहाँ फिट बैठेंगे ये कहा नहीं जा सकता।



राम केवी

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