×

भाजपा पर मायावती की नरमी कुछ तो गुल खिलाएगी

उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों को लेकर चल रही राजनीतिक हलचल के बीच लोगों के मन में एक सवाल उठने लगा कि मायावती भाजपा सरकार की बजाय कांग्रेस पर क्यों हमलावर हो रही हैं? क्या भाजपा के साथ बीएसपी की कोई खिचड़ी पक रही है?

suman
Published on: 29 May 2020 8:58 PM IST
भाजपा पर मायावती की नरमी कुछ तो गुल खिलाएगी
X

सुशील कुमार

मेरठ : उत्तर प्रदेश में प्रवासी मजदूरों को लेकर चल रही राजनीतिक हलचल के बीच लोगों के मन में एक सवाल उठने लगा कि मायावती भाजपा सरकार की बजाय कांग्रेस पर क्यों हमलावर हो रही हैं? क्या भाजपा के साथ बीएसपी की कोई खिचड़ी पक रही है? अगर अब तक की राजनीति देखें तो जब भी दो पार्टियां आपस में मिलने की कोशिश करती हैं तो इस तरीके के ही रुझान देखने को मिलते हैं।

चुनाव एमपी का

मायावती द्वारा मध्य प्रदेश में कुछ दिन में होने वाले 24 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में अकेले सभी सीटों पर लड़ने की घोषणा से बसपा के भाजपा के करीब जाने की आंशकाओं को और बल मिला है। गौरतलब है कि बसपा ने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को समर्थन दिया था पर अब वह कांग्रेस के खिलाफ खड़ी है। राज्य में जिन 24 सीटों पर चुनाव होने वाले हैं उनमें से ज्यादा चंबल ग्वालियर संभाग के हैं, जिस इलाके में मायावती की पार्टी का पुराना असर रहा है। अगर वे साथ देतीं तो कांग्रेस कुछ टक्कर दे सकती थी। पर अगर वे अकेले सभी सीटों पर लड़ती हैं तो कांग्रेस का नुकसान ही करेंगी। यानी साफ है कि मध्य प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ कर बसपा परोक्ष रूप से भाजपा को फायदा पहुंचाएंगी।

कांग्रेस विरोध में तेजी

उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता बढ़ी है वैसे-वैसे मायावती का कांग्रेस पार्टी का विरोध तेज होता जा रहा है। शायद यही वजह रही है कि 22 मई को सोनिया गांधी की बुलाई विपक्षी पार्टियों की बैठक में भी मायावती शामिल नहीं हुईं। इसके अलावा मायावती ने मजदूरों की समस्या के लिए भाजपा के साथ साथ कांग्रेस को भी जिम्मेदार ठहराया है।

यह पढ़ें...तो हमारी ट्रेनें उम्रदराज होने के चलते भूल गयीं अपनी राह !!

यूपी की पॉलिटिक्स

ल 1989 के बाद से यूपी की सत्ता पर अलग अलग कार्यकाल में एसपी, बीएसपी और भाजपा का कब्जा रहा है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के आखिरी सीएम नारायण दत्त तिवारी रहे थे। जिनका कार्यकाल पांच दिसम्बर १९८९ को खत्म हुआ था। इसी तरह केन्द्र में भी कांग्रेस पिछले करीब छह साल से सत्ता से बाहर है। ऐसे में मायावती द्वारा कांग्रेस की आलोचना का कोई मतलब नहीं बनता है फिर भी मायावती ने भाजपा और योगी आदित्यनाथ के साथ साथ कांग्रेस की भी आलोचना की। यही नहीं मायावती कांग्रेस पार्टी को घेरने वाले कोई मौक़े नहीं छोड़तीं, चाहे राजस्थान में कोटा के एक अस्पताल में बच्चों की मौत का मामला हो या राहुल गांधी का दलितों के यहां भोजन करने का मामला हो। या फिर उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की सक्रियता हो, कांग्रेस पार्टी उनके निशाने पर प्रमुखता से रहती है।

कांग्रेस का पलटवार

मायावती के इस रुख के बाद कांग्रेस लगातार यह कह रही है कि अब भाजपा को प्रदेश में नया प्रवक्ता मिल गया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा सदस्य पीएल पुनिया कहते हैं कि भाजपा सरकार में हो रही दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर मायावती की चुप्पी साबित करती है कि वह दलित विरोधी भाजपा सरकार के साथ हैं और आगे चल कर भाजपा के साथ गठबंधन भी कर सकती हैं।

कांग्रेस नेता ये भी कहते हैं कि अयोध्या ,संभल कनौज सहित दर्जनों जगह दलितों पर हुई घटनाओं को लेकर मायावती को कोई चिंता नही है। कांग्रेस 30 वर्षों से सरकार में नही है मायावती बताएं कि उन्होंने बसपा की सरकार में दलितों के लिए क्या किया? पुनिया कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी लगातार दलित उत्पीड़न के मुद्दे को उठा रही है हम लड़ रहे हैं लेकिन स्वघोषित दलितों की नेता मायावती चुप हैं। मौजूदा सरकार में दलित समाज पर राज्य संरक्षण में हमले बढ़े हैं। प्रियंका जी की सक्रियता मायावती को खलती है। ट्विटर पर बहन जी भाजपा का प्रेस नोट ट्वीट करती हैं। खुद मायावती मजदूरों के लिए सड़क पर नहीं उतरती। भाजपा सरकार में दलितों पर अत्याचार के कृत्य उन्हें खराब नहीं लगते। स्व. कांशीराम के बताएं रास्ते को भूल चुकी हैं।

सफाई के स्वर

मायावती ने सभी अटकलों को खारिज किया है जो स्वाभाविक है। भाजपा के साथ बीएसपी के गठबंधन की आशंकाओं को सिरे से नकारते हुए वके इतना ही कहती हैं कि कांग्रेस अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए बीएसपी के बारे में ये तक कहने लगी है कि बीएसपी, बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली है। इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है। हमारी पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के साथ मिलकर कोई भी चुनाव नहीं लड़ने वाली है।

वैसे मायावती कुछ भी कहें लेकिन उत्तर प्रदेश को लेकर यह भी एक सच्चाई है कि मायावती को मुख्यमंत्री बनाने में भाजपा का सहयोग रहा। 1995 में वह पहली बार भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनीं थीं। सिर्फ एक बार वह बहुमत से सत्ता में आयीं। बाकी समय वह भाजपा के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बनी हैं। ऐसे में उनका भाजपा के साथ जाना उनके राजनीतिक लाभ को सूट करता है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि सीबीआई से डरीं मायावती फिलहाल भाजपा को खुश करना चाहती हैं, इसलिए बजाय मजदूरों के मामले में भाजपा की भूमिका पर सवाल उठाने के वह कांग्रेस को ही कटघरे में खड़ा कर रही हैं।

इतिहास के पन्ने पलटें तो साल 2007 में बसपा सुप्रीमो मायावती के इतिहास रचने के बाद से गोमती नदी में बहुत सारा पानी बह चुका है। उन्होंने ब्राह्मणों, मुसलमानों और दलितों का एक अजेय गठजोड़ रच कर बाज़ी मारी थी। लेकिन यह अजेय गठजोड़ कमजोर होने लगा। यही वजह रही कि 2014 में वेस्ट यूपी समेत पूरे प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी को एक भी लोकसभा सीट पर जीत नहीं मिली थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी का एक तरह से सूपड़ा साफ हो गया था। 2019 में मायावती ने एसपी और आरएलडी संग गठबंधन कर ताल ठोकी थी।

भाजपा को फायदा

भाजपा को भी आने वाले चुनावों के मद्देनजर बसपा से दोस्ती फायदे का सौदा लग रहा है। क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा भले ही प्रचंड बहुमत के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की लेकिन कुछ इलाकों में उसका तिलिस्म टूटता दिखा। वेस्ट यूपी की ही बात करें तो यहां 8 अहम सीटों पर भाजपा का किला ध्वस्त हो गया।

यह पढ़ें...वीडियो कांफेंसिग के जरिए विधानसभा अध्यक्षों के साथ बैठक, इस विषय पर हुई चर्चा

मुरादाबाद मंडल की सभी सीटें बीजेपी हार गई

मेरठ मंडल में भी पार्टी मामूली अंतर से जीत दर्ज कर पाई। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर गठबंधन को जीत हासिल हुई। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने 4-4 सीटें जीतने में कामयाब रहीं। मुरादाबाद, रामपुर और संभल में एसपी का झंडा लहराया। वहीं, अमरोहा से बीएसपी के दानिश अली ने जीत दर्ज कराई। सहारनपुर में भी बीएसपी उम्मीदवार को जीत मिली। बिजनौर और नगीना सीट पर भी बीएसपी जीत हासिल करने में कामयाब रही। वहीं, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, कैराना में बीजेपी भले ही जीत गई, लेकिन ये जीत शानदार नहीं रही।



suman

suman

Next Story